 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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पूजा में हो जाती है भूल, इससे खत्म होता है अहंकार, पूजा होती है पूर्ण। यह तथ्य है कि हम सभी मानव होते हैं और कभी-कभी हमसे गलतियां हो जाती हैं। इसलिए, भगवान के सामने आपने अपनी अवस्था और भूल को स्वीकार करना महत्वपूर्ण है। इसके लिए, आपको विशेषतः तैयार किए गए क्षमायाचना मंत्र का उपयोग करना चाहिए।
क्षमायाचना मंत्र:
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥
इस मंत्र का अर्थ है कि हे परमेश्वर, मैं आपको बुलाना नहीं जानता हूं और न ही विदा करना जानता हूं। पूजा करना भी नहीं जानता। कृपा करके मुझे क्षमा करें। मुझे न मंत्र याद है और न ही क्रिया। मैं भक्ति करना भी नहीं जानता। यथा संभव पूजा कर रहा हूं, कृपया मेरी भूल को क्षमा कर इस पूजा को पूर्णता प्रदान करें।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।
यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे॥
इस मंत्र के अर्थ से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमारी पूजा में जो भूल हो जाती है, उसके बावजूद हमें भगवान की कृपा मिलती है। भगवान क्षमा करते हैं और हमें पूर्णता प्रदान करते हैं। इसलिए, हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारी भूलें हमें प्रगट करके भगवान के सामने रखी जा सकती हैं और हम उनसे क्षमा मांग सकते हैं।
इस तरह, क्षमायाचना मंत्र हमें भूलों की माफी की अनुपम शक्ति प्रदान करते हैं और हमारी पूजा को पूर्ण बनाने में सहायक होते हैं। हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि प्रार्थना और माफी की भावना से ही हमारी पूजा और भक्ति में सफलता मिलती है।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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