Published By:धर्म पुराण डेस्क

दुर्भाग्य और श्राप विचार

प्रस्तावना-

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में ग्रहों और राहु-केतु के स्थितियों से हम व्यक्ति के जीवन में आने वाले दुःख-सुख, सफलता-असफलता की भविष्यवाणी कर सकते हैं। कभी-कभी जन्म कुंडली में विभिन्न योगों के बावजूद भी व्यक्ति अपने प्रयासों में सफल नहीं हो पाता और उसे जीवन में अनजाने दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है। इसमें राहु-केतु योगों और दुर्भाग्यपूर्ण कर्मों का खास महत्व होता है।

दुर्भाग्य के प्रकार:-

1. संतान बाधा-

कई बार जन्म कुंडली में कालसर्प योग होने के कारण जातक को संतान सुख में बाधा आ सकती है। इससे विवाह और परिवार के क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

2. पति-पत्नी के झगड़े-

दुर्भाग्यशाली योगों के कारण जीवनसंगी क्षेत्र में आने वाले झगड़ों से जूझना पड़ सकता है, जिससे व्यक्ति को आत्मिक और सामाजिक तंगी हो सकती है।

3. धनहीनता-

कुंडली में दुर्भाग्य स्थान स्थित होने पर व्यक्ति धन की कमी और आर्थिक समस्याओं का सामना कर सकता है।

4. शारीरिक और मानसिक दुर्बलता-

दुर्भाग्यपूर्ण कर्मों के परिणामस्वरूप व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर हो सकता है, जिससे उसे जीवन में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

श्रापों का सामना-

जन्म कुंडली में श्रापों का होना व्यक्ति को पूर्वजन्म में किए गए कर्मों के दुःखद फलों का सामना करने पर बाधित कर सकता है। श्रापित कुंडलियों के कारण व्यक्ति विभिन्न तरह की सामाजिक, आर्थिक, और आत्मिक परेशानियों का सामना करता है।

दुर्भाग्य और श्राप का सामना करना कठिन हो सकता है, लेकिन ध्यान और प्रयास से व्यक्ति इन चुनौतियों को पार कर सकता है। अच्छे कर्मों के प्रति समर्पण, आत्म विकास, और आत्मनिरीक्षण से व्यक्ति अपने जीवन की दिशा को सुधार सकता है और उच्चता की ऊँचाइयों को छू सकता है।

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