छठ पर्व प्रारंभ:भगवान सूर्य और छठ माता की पूजा अर्चना का क्या है महत्व, कौन हैं छठ माता
Chhath festival begins, What is the importance of worshiping Lord Surya and Chhath Mata, who is Chhath Mata
नदी में स्नान करके क्यों सूर्य को चढ़ाया जाता है अर्घ्य, इससे कैसे खुश होती हैं सूर्यदेव की बहन छठ माता
बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा उत्सव छठ पूजा 20 नवंबर को पढ़ रही है। इसके उत्सव की शुरुआत/ आगाज आज से हो रही है। इस महोत्सव में छठ माता का पूजन और सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पूरे बिहार का ये अकेला ऐसा पर्व है, जिसे समाज का हर वर्ग एक साथ मनाता है। ये महाउत्सव चार दिन चलता है। प्रथम दिन यानी 18 नवंबर को नहाय-खाय है, 19 नवंबर को खरना, 20 नवंबर को छठ पूजा और 21 नवंबरको सुबह सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। ये सूर्य और प्रकृति के प्रति आभार/ कृतज्ञता प्रकट करने का महापर्व है।
क्यों अहम माना जाता है सूर्य पूजन?
सूर्य को हिंदू ग्रंथों में प्रत्यक्ष देवता यानी ऐसा भगवान माना है जिसे हम स्वयं देख सकते हैं। सूर्य ऊर्जा का भंडार और स्रोत है और इसकी किरणों से विटामिन डी जैसे कई महत्वपूर्ण तत्व शरीर को मिलते हैं। दूसरा, सूर्य मौसम चक्र को चलाने वाला केंद्रीय ग्रह है। ज्योतिष के नजरिए/ दृष्टिकोण से देखा जाए तो भास्कर आत्मा का ग्रह माना गया है। सूर्य/ सन पूजा आत्मविश्वास जागृत करने के लिए की जाती है।
पुराणों के अनुसार रवि पंचदेवों में से एक है, ये पंच देवता हैं ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा और भास्कर। किसी भी शुभ कार्य के आरंभ में सूर्य की पूजा अनिवार्य रूप से की जाती है।
शादी विवाह करते समय भी सूर्य की स्थिति खासतौर/ विशेष तौर पर देखी जाती है। भविष्य पुराण से ब्राह्म पर्व में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र सांब को सूर्य पूजा का महात्म बताया है। बिहार में यह मान्यता है कि पूर्व काल में सीता, कुंती और द्रोपदी ने भी ये व्रत किया था।
भास्कर की ही बहन हैं छठ माता
कहा जाता है कि छठ माता रविदेव की बहन हैं। जो व्यक्ति इस तिथि पर छठ माता के भाई सूर्य को जल चढ़ाते हैं, उनकी मनोकामनाएं छठ माता अवश्य पूर्ण करती हैं। छठ माता बाल बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। इस व्रत को करने से संतान/ पुत्र पुत्री को लंबी/ दीर्घ आयु का वरदान मिलता है। मार्कण्डेय पुराण में इस बात का विशेष उल्लेख मिलता है कि प्रकृति ने अपने आप को छह भागों में विभक्त किया है। इनके छठवें अंश को सबसे बेहतर मातृ देवी के रूप में जाना जाता है, जो भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं। कहा ये भी जाता है कि देवी दुर्गा का छठवां स्वरूप कात्यायनी ही छठ माता हैं।
छठ माता के लिए व्रत करने वाला भक्त करीब 36 घंटे तक निर्जल/ बिना पानी के रहता है। सप्तमी की प्रातः काल सूर्य पूजा के बाद व्रत खोला जाता है और अन्न-जल लिया जाता है।
नहाय-खाय में करते हैं घर की साफ-सफाई/ स्वच्छता
छठ तिथि से दो दिन पहले चतुर्थी तिथि पर पूरे घर की स्वच्छता की जाती है। इसे नहाय-खाय कहा जाता हैं। परंपरा के अनुसार इस दिन पूजा-पाठ के बाद शुद्ध सात्विक भोजन लिया जाता है। इसी से छठ पर्व की शुरुआत/ प्रारंभ मानी जाती है।
36 घंटे का निरंतर व्रत, खाने और पानी के बिना होती है पूजा
छठ माता के लिए पानी पिए बिना व्रत किया जाता है, यानी व्रत करने वाले भक्त लोग लगभग 36 घंटे तक जल भी नहीं पीते हैं। अक्सर ये व्रत महिलाएं ही करती हैं। इसकी शुरुआत/ प्रारंभ पंचमी तिथि पर खरना करने के बाद होती है। खरना यानी तन और मन का शुद्धिकरण/ डिटॉक्सिफिकेशन। इसमें व्रत करने वाला भक्त शाम को गुड़ या कद्दू की खीर ग्रहण करता है।
इसके बाद छठ पूजन पूरा करने के बाद ही भोजन प्रसाद किया जाता है। छठ तिथि की प्रातः काल छठ माता का प्रसाद भोग बनाया जाता है और शाम डूबते सूर्य को जल/ आदि चढ़ाया जाता है। इसके बाद सप्तमी की प्रातः काल फिर से सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस तरह 36 घंटे का व्रत पूर्ण होता है।
इस तरह है छठ व्रत की कथा
कथा सत-युग की बताई जाती है। उस समय “शर्याति” नाम के राजा/King थे। राजा/ king की कई पत्नियां/ wifes थीं, लेकिन बेटी/ daughter एक ही थी। उसका नाम था सुकन्या/ Sukanya। एक दिन राजा/ king शिकार खेलने के लिए गए। उनके साथ में daughter सुकन्या भी थीं। जंगल/ forest में च्यवन नाम के ऋषि बैठकर तपस्या कर रहे थे।
ऋषि लंबे समय से तपस्या कर रहे थे, इस कारण से उनके शरीर/ body के आसपास दीमकों ने घर बना लिए थे। इसी दौरान सुकन्या ने खेलते हुई दीमक की बांबी में सूखी घास के कुछ तिनके डाल दिए। उस जगह पर ऋषि की आंखें/नेत्र थीं। तिनकों से ऋषि की आंखें/EYES फूट गईं। इससे ऋषि क्रोधित हो गए, उनकी तपस्या भंग हो गई ।
जब ये घटना राजा को मालूम हुई तो वे क्षमा मांगने के लिए ऋषि के पास पहुंचे। राजा ने ऋषि को अपनी बेटी सुकन्या सेवा सुश्रुषा के लिए सौंप दी। इसके बाद सुकन्या ऋषि च्यवन की सेवा/service करने लगी।
कार्तिक मास में एक दिन सुकन्या पानी/ water भरने जा रही थी, तभी उसे एक नागकन्या के दर्शन हुए। नागकन्या ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य/ sun पूजा और व्रत करने के लिए कहा, और विधि बताई । सुकन्या ने पूरे विधि-विधान और सच्चे मन से छठ/CHHAT का व्रत किया। व्रत के असर से च्यवन मुनि की आंखें ठीक हो गईं। कहते हैं तभी से हर साल छठ पूजा का पर्व मनाया जाने लगा।
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