"कसार देवी" उत्तराखंड राज्य में अल्मोड़ा जिले के पास एक गाँव है। जो अल्मोड़ा क्षेत्र से 8 किमी की दूरी पर कश्यप (कश्यप) पर्वत पर स्थित है। यह स्थान "कसर देवी मंदिर" के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर दूसरी शताब्दी का है।
अल्मोड़ा बागेश्वर राजमार्ग पर "कसर" नामक गाँव में स्थित, मंदिर कश्यप पहाड़ी की चोटी पर एक गुफा जैसी जगह पर बना है। मंदिर में मां दुर्गा के आठ रूपों में से एक देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है।
माता कसार देवी का मंदिर उत्तराखंड के देवभूमि में स्थित है। इस मंदिर में स्वयं मां कात्यायनी का वास माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण दूसरी शताब्दी में हुआ था। स्वामी विवेकानंद ने 1890 में मंदिर की गुफा में साधना की थी। कसारा मेला कार्तिक पूर्णिमा को लगता है। जिसमें हजारों की संख्या में लोग माता कसार देवी के दर्शन करने आते हैं।
कसार देवी मंदिर के पास कई बौद्ध आश्रम है जो ध्यान और योग अभ्यास के केंद्र हैं। यहाँ पृथ्वी के नीचे चुंबकीय ऊर्जा का भंडार है। यहां कई वैज्ञानिक शोध भी हुए हैं। यहां आप पाषाण युग के अवशेष भी देख सकते हैं। यह देवी कात्यायनी का मंदिर है। हिप्पी आंदोलन के दौरान यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध हुआ।
यह मंदिर बहुत ही सुंदर है, इसकी बनावट सरल और भव्य है। यहां देवी मां की मूर्ति है। यहां आपको किसी दैवीय शक्ति का आभास होता है। यह पहाड़ों के बीच में स्थित है। इसे दूसरी शताब्दी में बनाया गया था, यहां आपको एक अलग ही मन की शांति मिलेगी। यहां की प्राकृतिक सुंदरता इस मंदिर की शान में चार चांद लगाती है। इस मंदिर के अंदर छोटे-छोटे मंदिरों का समूह है जो आपको इस मंदिर की प्राचीन महिमा का अंदाजा देते हैं।
मंदिर की विशेषता-
मंदिर के नीचे चुंबकीय ऊर्जा का भंडार है। यहां बहुत सारे वैज्ञानिक शोध चल रहे हैं। यह मंदिर पूर्ण विकिरण क्षेत्र है। अब तक किए गए शोध में दक्षिण अमेरिका के पेरू के कसार देवी मंदिर और माचू पिच्चू और इंग्लैंड के स्टोनहेंज में समानताएं पाई गई हैं। यह मंदिर अलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण है। अनुसंधान के माध्यम से इस मंदिर क्षेत्र में विकिरण के मानव पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाया जा रहा है।
कसार देवी मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा के पास कसार गांव में स्थित है। इस मंदिर के कारण यह गांव काफी प्रसिद्ध है। यह अल्मोड़ा शहर से आठ किलोमीटर दूर है। यहां आपको यातायात के साधन आसानी से मिल सकते हैं। यह अल्मोड़ा-बागेश्वर राजमार्ग के पास है।
बड़ा मेला लगता है-
कसार देवी मंदिर का निर्माण दूसरी शताब्दी में हुआ था। यहां आप उस सदी से जुड़े कई खंडहर देख सकते हैं। यहां हर साल कार्तिक पूर्णिमा को कसारा मेला लगता है। जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। यहां विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में आते हैं।
स्वामी विवेकानंद ने यहां साधना की थी|
स्वामी विवेकानंद ने कसार देवी मंदिर में योग किया। उनके लिए यह एक अलग आध्यात्मिक अनुभव था। उसके बाद स्वामी जी ने स्वयं को मानव कल्याण के कार्यों में समर्पित कर दिया।
स्वामीजी को यहां की चुंबकीय शक्ति का आभास हुआ। बाद में उन्होंने इसका वर्णन अपनी डायरी में भी किया। यह मंदिर योग के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। बाबा नीम करोरी, माता आनंदमयी जैसे संतों ने योगाभ्यास किया, इस प्रकार इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व ज्ञात होता है।
कसार देवी मंदिर कैसे जाएं-
कसार देवी मंदिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा में स्थित है, निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। यहां से आपको कसार देवी मंदिर के लिए आसानी से परिवहन मिल सकता है। यदि आप हवाई यात्रा करना चाहते हैं, तो निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है, जो यहाँ से 124 किमी दूर है। दिल्ली से कसार देवी की दूरी 357 किलोमीटर है।
कार्तिक पूर्णिमा के दौरान यहां जाना सबसे अच्छा है। मंदिर सुबह 7 बजे खुलता है और शाम 7 बजे बंद होता है।
इस स्थान पर 2500 वर्ष पूर्व शुंभ-निशुंभ नामक दो राक्षसों का वध करने के लिए "मां दुर्गा" ने "देवी कात्यायनी" का रूप धारण किया था।
देवी दुर्गा ने मां कात्यायनी का रूप धारण किया और राक्षसों का वध किया। तभी से इस जगह को खास माना जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार, दूसरी शताब्दी में बना यह मंदिर 1970 के दशक से 1980 के दशक के प्रारंभ तक डच भिक्षुओं का निवास स्थान था। यह मंदिर हवाबाघ की सुरम्य घाटी में स्थित है।
1890 में स्वामी विवेकानंद कुछ महीनों के लिए इस स्थान पर ध्यान करने आए थे। अल्मोड़ा से 22 किलोमीटर दूर काकड़ीघाट में उन्हें विशेष ज्ञान की अनुभूति हुई। साथ ही बौद्ध गुरु "लामा अंगिका गोविंदा" गुफा में रुके और विशेष साधना की।
उत्तराखंड देवभूमि का यह स्थान भारत का एकमात्र और विश्व का तीसरा स्थान है, जिसमें विशेष चुंबकीय शक्तियां हैं। कसार देवी मंदिर की अपार शक्ति से बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी चकित हैं।
दुनिया में तीन ऐसे पर्यटन स्थल है जहां प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ मन को शांति भी मिलती है।
अल्मोड़ा में कसार देवी मंदिर के अलावा आप द्वाराहाट इलाके में चितई गोलू देवता मंदिर और दूनागिरी मंदिर भी जा सकते हैं।
कसार देवी मंदिर का इतिहास-
इस स्थान पर प्रकृति की सुंदरता को देखा जा सकता है और मन की शांति का भी अनुभव किया जा सकता है।ध्यान और योग के लिए यह स्थान बहुत उपयुक्त है। सैकड़ों सीढ़ियां चढ़ने पर भी भक्तों को थकान महसूस नहीं होती। यहां आकर श्रद्धालुओं को अपार मानसिक शांति मिलती है।
कसार देवी मंदिर "चुंबकीय" क्षेत्र-
यह स्थान अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति का केंद्र भी है। नासा के वैज्ञानिक इस स्थान पर चुंबकीय आवेश के कारणों और प्रभावों की जांच कर रहे हैं।
यह वह पवित्र स्थान है जहाँ भारत का प्रत्येक सच्चा आस्तिक अपने जीवन के अंतिम दिन बिताने की इच्छा रखता है। अद्वितीय मानसिक शांति के कारण देश-विदेश से अनेक पर्यटक यहां आते हैं।
कसार देवी का मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर-दिसंबर) को लगता है।
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