इस धरती पर मनुष्य सबसे बुद्धिमान कहलाता है लेकिन वह कर्म योनि में माना गया है। यानी वो कर्म करने के लिए पैदा हुआ है। जबकि मनुष्य से कमतर आंके जाने वाले कीट पतंगे, पशु, पक्षी, भोग, योनि के माने गए हैं।
आखिर मनुष्य को कर्म योनि में क्यों कहा जाता है? बहुत इंटरेस्टिंग पॉइंट यहां पर आता है, धरती पर तीन प्रकार के प्राणी रहते हैं और इसी आधार पर उनका वर्गीकरण किया गया है।
पहले प्रकार का प्राणी ऊर्ध्वगामी होता है, जिसमें ऊर्जा नीचे से ऊपर की ओर बहती है। जितने भी पेड़ पौधे हैं यह ऊर्ध्वगामी है क्योंकि इनमें ऊर्जा नीचे से ऊपर की ओर बहती है। वो नीचे से ऊर्जा ग्रहण करते हैं और ऊपर की तरफ ले जाते हैं। जितने भी जीव जंतु है उनकी ऊर्जा धरती के समानांतर बहती है। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जिसकी ऊर्जा ऊपर से नीचे की ओर बहती है। वह भोजन मुंह से करता है और उसका निस्तारण नीचे के अंगों से होता है।
तो प्रकृति में सबसे श्रेष्ठ कौन हुआ, मनुष्य पेड़ पौधे या जीव जंतु?
ऊर्जा के हिसाब से देखा जाए तो पेड़ पौधे सर्वश्रेष्ठ हैं क्योंकि उनमें ऊर्जा नीचे से ऊपर की ओर आती है। पशु पक्षी मनुष्य से श्रेष्ठ हैं क्योंकि उनकी ऊर्जा पृथ्वी के समानांतर बहती है। लेकिन मनुष्य की उर्जा ऊपर से नीचे की ओर बहती है। उसकी अधोगामी होती है।
पेड़ पौधों के बच्चों को यहां आकर सीखना नहीं पड़ता। अपने आप को पुष्पित और पल्लवित करने के लिए पेड़ पौधे जन्म से ही ज्ञानी होते हैं। इसी तरह से पशु पक्षी और जीव-जंतुओं के बच्चे भी पैदा होते से ही उतने ज्ञान को लेकर आते हैं जो ज्ञान उनके जीवन यापन के लिए जरूरी होता है।
लेकिन मनुष्य के बच्चे पूरी तरह से अज्ञानी होते हैं। पैदा तो होते हैं लेकिन उन्हें ना तो खाने का होश होता है ना पीने का होश। ना ही वह चल सकते हैं।
उनको सब कुछ यहां सीखना होता है इसलिए मनुष्य कर्म योनि का प्राणी कहा गया है। बंदर के बच्चे को पेड़ पर चढ़ना सिखाना नहीं पड़ता, गाय के बछड़े को तैरना नहीं सिखाना पड़ता, पक्षी को उड़ना नहीं सिखाना पड़ता, शेर को शिकार करना नहीं सिखाया जाता, सब कुछ वह खुद ही सीख लेते हैं।
मनुष्य के बच्चे को चलना भी सिखाना पड़ता है खाना भी सिखाना पड़ता है बोलना भी सिखाना पड़ता है। इसीलिए कहते हैं कि मनुष्य का बच्चा कर्मयोनि में आया है उसे कुछ भी सिखा कर भेजा नहीं गया है। उसे सब कुछ इसी धरती पर सीखना है। उसे सीखने की क्षमता दी गई है और सीखने की क्षमता ऐसी दी गई है कि मनुष्य की अन्य प्राणियों से आगे निकल सकता है।
मनुष्य को पानी में उतार दिया जाए तो डूब जाएगा। अन्य जीव-जंतुओं को पानी में उतारा जाए तो ना डूबें। मनुष्य के बच्चे को तैरना सिखाना पड़ेगा।
परिस्थितियों के अनुसार मनुष्य को अपने आपको ढालना पड़ता है, सिखाना पड़ता है।
देवता या एंजेल्स को कर्म योनि का प्राणी नहीं कहा जाता क्योंकि उन्हें स्थूल शरीर नहीं मिला। वह भोग योनि के प्राणी हैं। वह सब कुछ भोगते हैं, कर्म नहीं करते।
पृथ्वी को इसलिए कर्मभूमि माना जाता है। बाकी लोकों को भोग भूमि माना जाता है। यह जो धरा है इसे कर्मभूमि माना जाता है यहां किए हुए कर्मों का भोग अन्य लोकों में मिलता है और अन्य लोकों के लोग उस भोग को निर्मित करने के लिए इस धरती पर आते हैं और कर्म करते हैं।
देवताओं को भी कर्म करने के लिए पृथ्वी पर आना होता है। मनुष्य रूप में अवतार लेना पड़ता है। पृथ्वी को उद्धार भूमि भी कहा गया है। यहां पर आकर कर्मों या योग साधना के जरिए समस्त प्रकार की जन्म मरण से मुक्त हुआ जा सकता है। इसलिए मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है। पशु पक्षी वृक्ष सब अपनी तरक्की स्वयमेव कर रहे हैं। पशु पक्षी और पेड़ों को नीचे नहीं जाना है उनको हमेशा ऊपर ही उठना है।
मनुष्य नीचे जा सकता है यदि मनुष्य ने अपने कर्मों पर ध्यान नहीं दिया तो नीचे जा सकता है। उसे अपनी उर्जा को अधोमुखी होने से रोकना है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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