Published By:धर्म पुराण डेस्क

महालक्ष्मी अष्टकम्..

ॐ  श्रीं हृीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः

इन्द्र ने जब अपना ऐश्वर्य, यश, सम्मान खोया तो उसे फिर से पाने के लिए उन्होंने ने भी सुख और ऐश्वर्य की देवी माता लक्ष्मी की उपासना की।

महालक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इंद्रदेव ने लक्ष्मी की स्तुति की। इसी इन्द्र स्तुति से स्वर्ग और उसकी रौनक फिर से लौटी।

इन्द्र स्तुति का पाठ शुक्रवार के दिन विशेष प्रभावी माना गया है। वैभव, सुख, आनंद के लिए इस दिन महालक्ष्मी की यथाविधी पूजा के बाद इस स्तुति का पाठ करें।

व्यावहारिक जिंदगी के नजरिए से यह लक्ष्मी स्तुति आमदनी को बढ़ाकर घर-परिवार में खुशहाली लाती है। संस्कृत भाषा की जानकारी न होने पर इसके हिन्दी अर्थ का पाठ भी सुफल देता है –

इंद्र उवाच् ..

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।

शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥1॥

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि।

सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥2॥

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि।

सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥3॥

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि।

मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥4॥

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।

योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥5॥

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।

महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥6॥

पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।

परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥7॥

श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।

जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥8॥

महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:।

सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा॥9॥

एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।

द्विकालं य: पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वित:॥10॥

त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।

महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥11॥

॥ इतीन्द्रकृतम् महालक्ष्म्यष्टकम् सम्पुर्णम्॥


 

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