Published By:धर्म पुराण डेस्क

सुहागिन के माथे का चांद-करवाचौथ

भारतीय संस्कृति में जप, तप, व्रत का बहुत महत्व है। भारतीय संस्कृति में पुराण तथा धार्मिक ग्रंथ व्रतों के संग से भरे पड़े है। भारत में शायद ही कोई महीना व्रत और त्योहार के बिना बोलता हो बल्कि यहां तो हर दिन यानी सोमवार, मंगलवार वीरवार, शुक्रवार आदि को भी व्रत रखे जाते हैं। प्यार और विश्वास की अभिव्यक्ति से जुड़ा ऐसा हो एक व्रत है करवा चौथ हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आने वाला तथा भारतीय नारी को अखंड सुहाग देने वाला करवाचौथ का व्रत सुहागिनों का सबसे बड़ा पर्वोत्सव है। 

पहले यह व्रत मुख्यतः उत्तरी भारत में मनाया जाता था। लेकिन आज देश के सभी भागों में इस व्रत का जबरदस्त आकर्षण एवं उल्लास नजर आता है। अब विदेशों में भारतीयों की संख्या में वृद्धि होने के कारण वहां भी करवाचौथ एक जाना-माना पर्व बन गया है।

"करवे का महत्व"

'कर' का अर्थ है- मिट्टी का बर्तन और चौथ का अर्थ है चतुर्थी करवाचौथ का व्रत सुहागिन रखती है तथा अपने पति को लम्बी आयु और खुशहाल जीवन की कामना करती है। करवाचौथ पर 'करवे' का विशेष रूप से पूजन किया जाता है। वो धर्म को मर्यादा 'कर' की भांति ही होती है। जिस प्रकार 'कर' को सीमाएं है, उसी प्रकार स्त्री धर्म को भी अपनी सीमाएं है।

व्रत की शुरुआत-

विभिन्न पौराणिक कथाओं के अनुसार, करवाचौथ के व्रत का उद्गम उस समय हुआ था जब देवों और दानवों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था और युद्ध में देवता परास्त होते नजर आ रहे थे। तब देवताओं ने ब्रह्मा जी से इसका कोई उपाय करने को प्रार्थना की ब्रह्माणी ने देवताओं को करुण पुकार सुनकर उन्हें सलाह दी कि अगर आप सभी देवों को पत्नियां सच्चे और पवित्र हृदय से अपने पतियों के लिए प्रार्थना एवं उपवास करें तो देवता दैत्यों को परास्त करने में सफल होंगे। ब्रह्माजी की सलाह मानकर सभी देव पत्नियों ने कार्तिक मास को चतुर्थी को व्रत किया और रात्रि के समय चंद्रोदय से पहले ही देवता युद्ध जीत गए। तब चंद्रोदय के पश्चात दिन भर से भूखी प्यासी देव पत्नियों ने अपना-अपना व्रत खोला। ऐसी मान्यता है कि तभी से करवाचौथ व्रत किए जाने की परंपरा शुरू हुई।


 

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