Published By:धर्म पुराण डेस्क

प्रेरक प्रसंग - अशुभ चिंतन ना करो तो प्रेत भी नहीं सता सकते

एक प्रेत वीरान जंगल में था, जिसके कारण पास के गाँव वाले उस स्थान को नटबाबा का इलाका कहा करते थे। कोई उस ओर दिन में भी चला जाय तो पागल हो जाए। 

एक पंडित जी उस गांव में कथा कहने आए और शाम हो जाने के कारण छोटा रास्ता जानकर जंगल वाले मार्ग से जाने लगे। लोगों ने रोका और प्रेत की बात बतायी। पंडित जी ने कहा कि मैंने किसी का अशुभ चिन्तन नहीं किया है, प्रेत मुझे क्यों सतायेगा ? ऐसा कहकर वे उसी रास्ते पर चल पड़े। 

मार्ग में प्रेत ने कई प्रकार से उन्हें हटाने का प्रयत्न किया, किंतु पंडित जी पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब प्रेत सामने आकर खड़ा हो गया। पंडित जी बोले कि हम किसी का बुरा नहीं सोचते, तुम्हारा भी बुरा नहीं सोचेंगे, फिर हमें क्यों डराते हो ? प्रेत शांत हो गया और बोला, 'आपकी क्या सेवा करूँ ?' 

पंडित जी ने वहां सीताफल के अनेक वृक्ष देखकर कहा कि तुम्हारा मन है तो थोड़े सीताफल दे दो। उस निर्जन प्रदेश में कोई फल तोड़ता नहीं था, अतः प्रेत ने पेड़ हिलाकर बहुत सारे सीताफल गिरा दिये और पूछा कि मैं इन्हें आपके गाँव पहुँचा दूँ?

पंडित जी ने मना किया और स्वयं ही यथेच्छ फल लेकर आगे चल पड़े। यह प्राणी मात्र पर दया का भाव रखने का परिणाम है। कालक्रम से उनके गाँव के पास रेल दुर्घटना हो गयी और अनेक लोग मर गये। 

पंडित जी ने कहा कि आज गांव में किसी घर में रसोई नहीं बननी चाहिये। सभी लोग मृतात्माओं की शान्ति हेतु यथासाध्य कीर्तन-भजन करें। ऐसा ही हुआ। संतों का प्राणीमात्र पर दया भाव रखने का यह उत्तम उदाहरण है।" - 'प्रेम'


 

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