निमोनिया: कारण और लक्षण
विद्वानों ने इसे अनेक नाम दिये हैं - फुफ्फुस प्रदाह, फुफ्फुस सन्निपात, कार्कोटक, श्वसनक ज्वर, आदि, और यही आम भाषा में प्रसिद्ध है निमोनिया. बच्चों में होने वाला यही रोग डब्बा या उत्फुल्लिका के नाम से जाना जाता है.
यह एक कठिन संक्रामक रोग है, जिसमें ज्वर का बेग अधिक तीव्र हो जाता है. उस समय खांसी आदि के साथ पसलियों में दर्द होता है, श्वास में रुकावट सी प्रतीत होती है, मुख पर लालिमा छा जाती है तथा शरीर बलहीन जैसा हो जाता है. कभी-कभी खांसी के कफ के साथ रक्त भी आ जाता है.
इसकी उत्पत्ति में एक कीटाणु विशेष को कारण मानते हैं. वह फुफ्फुस में रह कर बढ़ते रहते हैं और रोगी की किसी कमी के कारण रोगोत्पत्ति में सहायक होते हैं. ज्वार वेग कम होने पर जोर का पसीना छूटता है और शीतांगता आने लगती है. उस समय बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है. यदि तत्काल उपाय नहीं हो पाये तो प्राणों का खतरा हो सकता है.
इस रोग की परीक्षा रोगी की नाड़ी, आकृति, श्वास क्रिया तथा मल मूत्रादि की जांच के द्वारा भी की जाती है. थर्मामीटर तो ज्वर का तापमान जानने के लिए प्रयुक्त होता है. निमोनिया की पहचान का एक साधन स्टेथोस्कोप नामक यंत्र भी है, जिसके द्वारा फुफ्फुस में होने वाले ध्वनि परिवर्तनों का पता लगाया जाता है. जैसे कि उसमें सूँ- सूँ जैसी ध्वनि सुनाई दे तो वह फुफ्फुस के कफ-लिप्त रहने की सूचक है.
यदि श्वास- गति की मन्द ध्वनि हो तो वह वहां विजातीय द्रव्यों की अधिकता का आभास देती है. लोहार की धौंकनी जैसे शब्द से कफ के शुष्क होने का अनुमान लगाया जाता है. इसी प्रकार उस यंत्र के माध्यम से ध्वनि बोध के द्वारा रोग-भेद के अनुमान में सुविधा रहती है.
इस रोग को चिकित्सकीय सुविधा की दृष्टि से तीन अवस्थाओं में बाँट सकते हैं. प्रारम्भिक अवस्था प्रायः तीन दिन मानकर दूसरी अवस्था तीन से सात दिन तक और तीसरी अवस्था सात दिन से आगे अधिक दिन तक की हो सकती है.
कुछ चिकित्सकों के मत में वह तीन सप्ताह तक रह सकती है. किन्तु अवस्था का समय निर्धारण रोगी की आयु और शक्ति तथा रोग की मंदता और तीव्रता पर निर्भर करती है.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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