Published By:धर्म पुराण डेस्क

पाँच वर्ष पहले तक शल्यकर्म बार-बार करने से भी प्राय: यह रोग नहीं जाता था, किंतु आयुर्वेदिक औषधी सेवन से यह रोग समूल नष्ट किया जा सकता है।
औषध -
(1) कांचनार गुग्गुल - 25ग्राम,
(2) चन्द्रप्रभा वटी- 5ग्राम,
(3) चतुर्मुख रस- 1/4 ग्राम,
(4) प्रवालपञ्चामृत- 3ग्राम,
(5) ताम्रभस्म - 1/8 ग्राम इन सबकी 21 पुड़िया बनाएं। एक पुड़िया दवा खाकर निम्नलिखित काढ़े में 8 बूँद शिलाजीत और 2 ग्राम शीतल चीनी चूर्ण मिलाकर पी लें। सुबह-शाम लें। अपने संतोष के लिये दो-दो महीने पर जांच कराएं। छः महीने में रोग समाप्त हो जाएगा।
काढ़ा –
(1) वरुण (वरुणा) - की छाल- 15ग्राम,
(2) गदहपूर्णा की जड़- 10ग्राम,
(3) छोटी गोखरू- 6ग्राम,
(4) बड़ी गोखरू- 6ग्राम,
(5) पंचतृणमूल अर्थात (क) ईख की जड़- 3ग्राम, (ख) कास की जड़- 3ग्राम, (ग) साठी धान की जड़- 3ग्राम, (घ) कुश की जड़- 3ग्राम। (ङ) सरकण्डे की जड़- 3ग्राम,
(6) सहजन की छाल 10 ग्राम ।
आधा किलो पानी में काढ़ा बनाएं । 100 ग्राम शेष रहने पर 50 ग्राम सुबह तथा 50 ग्राम शाम दवा के साथ लें।
विशेष – यदि मूत्र में दाह हो तो तीन बूँद चन्दन का तेल तथा तीन ग्राम शीतल चीनी का चूर्ण काढ़े में मिला लें।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024