Published By:धर्म पुराण डेस्क

शनि शान्ति के उपाय ..

जन्मकालीन शनि निर्बल होने के कारण अशुभ फल देने वाला हो या शनि की साढ़ेसाती व ढैया अशुभ कारक हो तो निम्नलिखित उपाय करने से बलवान हो कर शुभ फल दायक हो जाता है |

शनि ग्रह की शान्ति के लिये हर शनिवार को पीपल के पेड़ में सरसों के तेल का दीपक लगाएं, हनुमान जी के दर्शन करे तथा हनुमान चालीसा का पाठ करें|

प्रत्येक शनिवार को शनिदेव को तेल चढ़ाएं तथा दशरथ कृत शनि स्त्रोत का पाठ करें, तथा शनि की होरा में जलपान नहीं करे, साथ ही काले कपडे पहने नही| केवल शनि ही नहीं, सभी नौ ग्रहों की शांति के लिए ‘ग्रहमक’ नमक यज्ञ घर में किया जाता है जिससे नवग्रहों की शांति हो पीड़ा समाप्त होती है. किसी पंडित द्वारा किया जाता है.  

रत्न धारण – नीलम लोहे या सोने की अंगूठी में पुष्य, अनुराधा, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्रों में जड़वा कर शनिवार को सूर्यास्त के बाद पुरुष दायें हाथ की तथा स्त्री बाएं हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण करें | 

धारण करने से पहले ॐ  प्रां प्रीं प्रौं  सः शनये नमः मन्त्र के 108 उच्चारण से इस में ग्रह प्रतिष्ठा करके धूप, दीप, नीले पुष्प, काले तिल व अक्षत आदि से पूजन कर लें|

नीलम की सामर्थ्य न हो तो उपरत्न संग्लीली, लाजवर्त भी धारण कर सकते हैं | काले घोड़े की नाल या नाव के नीचे के कील का छल्ला धारण करना भी शुभ रहता है |

दान व्रत ,जाप –  शनिवार के नमक रहित व्रत रखें | ॐ  प्रां प्रीं प्रों  सः शनये  नमः मंत्र का 23000 की संख्या में जाप करें | 

शनिवार को काले उड़द, तिल, तेल, लोहा, काले जूते, काला कम्बल, काले रंग का वस्त्र इत्यादि का दान करें |

किसी लोहे के पात्र में सरसों का तेल डालें और उसमें अपने शरीर की छाया देखें | इस तेल को पात्र व दक्षिणा सहित शनिवार को संध्या काल में दान कर दें|

श्री हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करना भी शनि दोष शान्ति का उत्तम उपाय है |

                          —-दशरथ  कृत शनि  स्तोत्र—

नमः कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च | नमः कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नमः ||

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च | नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ||

नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः | नमो दीर्घाय शुष्काय कालद्रंष्ट नमोस्तुते||

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरिक्ष्याय वै नमः|  नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करालिने ||

नमस्ते सर्वभक्षाय बलि मुख नमोस्तुते| सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे ऽभयदाय च ||

अधोदृष्टे नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोस्तुते| नमो मंद गते तुभ्यम निंस्त्रिशाय नमोस्तुते ||

तपसा दग्धदेहाय नित्यम योगरताय च| नमो नित्यम क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः||

ज्ञानचक्षु नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे | तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ||

देवासुर मनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा | त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः||

प्रसादं कुरु में देव वराहोरऽहमुपागतः ||

पद्म पुराण में वर्णित शनि के दशरथ को दिए गए वचन के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक शनि की लौह प्रतिमा बनवा कर शमी पत्रों से उपरोक्त स्तोत्र द्वारा पूजन करके तिल, काले उड़द व लोहे का दान प्रतिमा सहित करता है तथा नित्य विशेषतः शनिवार को भक्ति पूर्वक इस स्तोत्र का जाप करता है उसे दशा या गोचर में कभी शनि कृत पीड़ा नहीं होगी और शनि द्वारा सदैव उसकी रक्षा की जाएगी |


 

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