Published By:धर्म पुराण डेस्क

वास्तु शास्त्र के अनुसार भूमि का चयन: Selection of Land

वास्तु शास्त्र के अनुसार वास्तु का निर्माण करने हेतु भूमि के लक्षण एवं जल प्रवाह दिशा की ओर दृष्टि डालना आवश्यक होता है। 

लक्षणों के अनुसार भूमि के निम्न प्रकार हैं-

1. गज पृष्ठ भूमि जो भूमि: दक्षिण, पश्चिम, नैऋत्य तथा वायव्य दिशा में ऊंची हो तथा ईशान में नीची हो तो उसे गज पृष्ठभूमि कहते हैं। यह भूमि गृह स्वामी को धन, आयु तथा लाभ देती है।

2. कूर्म पृष्ठ भूमि: यह भूमि मध्य में ऊंची तथा चारों ओर नीची

होती है। ऐसी भूमि पर वास्तु निर्माण करने से प्रतिदिन घर में उत्साह, सुख तथा धन धान्य की विपुलता होती है।

3. दैत्य पृष्ठभूमि पूर्व: आग्नेय तथा ईशान दिशा में ऊंची तथा पश्चिम दिशा में नीची होती है, वह भूमि दैत्य पृष्ठभूमि कही जाती है। ऐसी भूमि पर वास्तु निर्माण से धन, जल तथा परिवार की सुख शांति की हानि होती है।

4. नाग पृष्ठभूमि पूर्व:और पश्चिम दिशा में लंबी, उत्तर दक्षिण दिशा में ऊंची तथा बीचो-बीच जो भूमि नीची होती है उस भूमि को नाग पृष्ठभूमि कहते हैं। ऐसी भूमि पर वास्तु निर्माण करने से उद्वेग, मृत्यु भय, स्त्री-पुत्रादि को मरण तुल्य कष्ट तथा शत्रु वृद्धि होती है।

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि भूमि का नैसर्गिक उतार अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इससे वास्तु निर्माण में निवास करने वालों के भाग्य का अनुमान लगाया जाता है। 

वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा में उतार रहना उत्तम है। साथ ही पूर्व में नैसर्गिक उत्तर भाग्योदय का स्थान है। पूर्व की ओर उतार रहने से उदीयमान सूर्य की किरणें उस जमीन पर तथा उस पर निर्मित वास्तु पर पड़ती हैं तथा भूमि को सुपक्व बनाती हैं एवं वास्तु को तथा उसमें निवासी परिवार को बलदायक होती हैं।

पूर्व की ओर से सूर्य का उदय सबको प्रकाशमान करता है तथा सर्व अभ्युदय का कारण है। इसी कारण पूर्व दिशा शुभ मानी जाती है। वर्षा का पानी पूर्व की ओर उतार होने से सीधा जमीन में जाता है। उस पर पतित प्रातः कालीन सूर्य किरणें सभी को समृद्धिदायी होती है। इससे परिवार आर्थिक दृष्टि से सबल होता है। धन धान्य में वृद्धि होती है। परिजन स्वस्थ, बल एवं तेज से पूर्ण होते हैं।

उत्तर दिशा का स्वामी कुबेर माना जाता है। कुबेर की दृष्टि जमीन एवं मकान पर होती है। इस कारण उत्तर की ओर नैसर्गिक उतार उत्तम फलदायी है। इससे परिवार में धन, बल, बुद्धि की प्राप्ति होती है। 

उत्तर दिशा की ओर विद्यमान विदेह क्षेत्र से बीस तीर्थंकरों का सहज स्मरण पुण्य प्राप्ति में सहायक होता है। पुण्य से नाना प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। उत्तर की ओर मुख करके शुभ क्रियाओं को करने की परम्परा भी पुरातन है। यही कारण है कि उत्तर दिशा शुभ मानी गई है।


 

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