Published By:धर्म पुराण डेस्क

शुक्र के कारकत्व..

प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार शुक्र(वीनस) स्त्री, काम सुख, भोग –विलास, वाहन, सौंदर्य, काव्य रचना, गीत–संगीत-नृत्य, विवाह, वशीकरण, कोमलता, जलीय स्थान, अभिनय, श्वेत रंग के सभी पदार्थ, चांदी, वसंत ऋतु, शयनागार, ललित कलाएं, आग्नेय दिशा, लक्ष्मी की उपासना, वीर्य, मनोरंजन, हीरा , सुगन्धित पदार्थ, अम्लीय रस और वस्त्र आभूषण इत्यादि का कारक है |

रोग —

ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार जन्म कुंडली में  शुक्र(वीनस) अस्त, नीच या शत्रु राशि का छठे-आठवें-बारहवें भाव में स्थित हो, पाप ग्रह(प्लेनेट) से युत या दृष्ट, षड्बल विहीन हो तो नेत्र रोग, गुप्तेन्द्रिय रोग, वीर्य दोष से होने वाले रोग, प्रोस्टेट ग्लैंड्स, प्रमेह, मूत्र विकार, सुजाक, कामान्धता, श्वेत या रक्त प्रदर, पांडु इत्यादि रोग उत्पन्न करता है | 

कुंडली में शुक्र(वीनस) पर अशुभ राहु का विशेष प्रभाव जातक के भीतर शारीरिक वासनाओं को आवश्यकता से अधिक बढ़ा देता है जिसके चलते जातक अपनी बहुत सी शारीरिक ऊर्जा तथा पैसा इन वासनाओं को पूरा करने में ही गंवा देता है| 

जिसके कारण उसकी सेहत तथा प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है तथा कुछ के मामलों में तो जातक किसी गुप्त रोग से पीड़ित भी हो सकता है जो कुंडली के दूसरे ग्रह(प्लेनेट) की स्थिति पर निर्भर करते हुए जानलेवा भी साबित हो सकता है।

फल देने का समय—

शुक्र(वीनस) अपना शुभाशुभ फल 25 से 28 वर्ष की आयु में, बसंत ऋतु में, अपनी दशाओं व गोचर में प्रदान करता है | तरुणावस्था पर भी इसका अधिकार कहा गया है |


 

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