भगवान श्री राम की कृपा प्राप्त करने के लिए रामायण से दुर्लभ दूसरी कोई वस्तु नहीं है..!
रामायण को श्री राम जी का वाङ्मय स्वरूप माना जाता है । रामायण से वक्ता और श्रोता पवित्र बनते है । राम का सच्चा भक्त कैसा होता है ये जानने के लिए पवन पुत्र के पावन चरित्र को जानना जरूरी है ।
किष्किंधाकांड के अनुसार जटायु के भाई संपाती के पास से सीतामाता का पता मिलने के बाद समुद्र पार करके लंका में कोन जाये उसकी चर्चाये होती है । सबसे पहले जाम्बवान जी ने अपनी मज़बूरी बताई अंगद ने भी अपनी मर्यादा दिखाई , परन्तु जाम्बवान जी को ये बात खबर थी की हनुमान जी को ऋषियो का श्राप लगा हुआ है । जब तक कोई आके हनुमान जी को उनका बल याद नहीं करायेगा तब तक हनुमान जी में बल नहीं आएगा ।
तब जाम्बवान जी ने हनुमान जी से कहा ” राम काज लगि तव अवतारा, का चुप साधि रहेहु बलवाना” हे हनुमान जी आपका जन्म राम के काज करने के लिए हुआ है कब तक ऐसे चुप बैठे रहोगे । जाम्बवान जी की ये टकोर सुनते के साथ ही ” सुनतहिं भयउ पर्वताकारा” पर्वत जैसा आकार धारण कर लिया ।
हनुमान जी सच्चे सत्संगी है हनुमान जी ने जाम्बवान जी को राजा कहकर प्रणाम किया है और हनुमान जी जाम्बवान जी से कहते है आपकी आज्ञा हो तो रावण को परिवार के साथ मार के आऊ, आपकी आज्ञा हो तो त्रिकुट पर्वत को मुलसहित उखाड़ के लाऊ । अरे भाई आप भक्ति की खुमारी तो देखो प्रभु का भक्त चाहे तो भक्ति के बल से त्रिभुवन को भी हिला दे ।
सब बारी बारी से रामजी के चरणों में वंदन कर रहे है संकटमोचन हनुमान जी सबसे अंत में खड़े है । राम के आशीर्वाद और रामनाम अंकित मुद्रिका लेकर हनुमानजी माता सीता को सन्देश पहुचाने हेतु तैयार होते है ।
सुंदरकांड के प्रारंभ में शांत, सनातन, अप्रमेय, निष्पाप, मोक्ष रूप, परम शांति देने वाले, ब्रम्हा, शम्भू और शिवजी द्वारा वन्दित, वेद और वेदों में वर्णित प्रभु श्री राम जी का सुंदर वर्णन किया है ।
संपूर्ण रामायण में तुलसीदास जी ने मात्र सुंदरकांड के प्रारम्भ में श्री राम जी से याचना की है । ” हे रघुनाथ”! आप मुझ पर प्रसन्न हुए हो तो मेरे हृदय में आपकी शुद्ध भक्ति के सिवा किसी भी प्रकार की कामना जागृत नहीं हो ।
एक श्रेष्ठ भक्त भगवान के पास से शुद्ध भक्ति के सिवा कुछ भी याचना नहीं करता है । हनुमान जी महाराज ने सबसे पहले अपने हृदय में श्रीराम का ध्यान किया है ।
कोई भी बड़ा काम करने से पहले प्रभु स्मरण अवश्य करे । आपके काम जरुर पुरे होंगे जेसे हनुमान जी महाराज ने राम नाम लेके राम काज पूर्ण किये थे । हनुमान जी ने लंका जाने हेतु एक बड़े पर्वत पर चढ़कर छलांग लगायी पर्वत हनुमान जी के बल से पाताल लोक में घिर पड़ा । समुद्र के बिच सर्पो की माता ‘सुरसा’ मिली । सुरसा ने हनुमान जी के बल बुद्दि की परीक्षा ली । आगे एक राक्षसी मिली जो उड़ते हुए पक्षियों को उनकी परछाई से पकड़ लेती थी । हनुमान जी उसको मुक्ति देकर खूब परिश्रम करके लंका में पहुचते है । वहा लंकिनी को मारकर सूक्ष्म रूप धारण करके लंका में प्रवेश किया । राक्षसों के महलो में सीतामाता को ढूंढते हुए हनुमानजी ने श्रीराम के धनुष बाण चिन्हों से चिन्हित एक घर देखा ” लंका निकर निशिचर वासा , इहा कहा सज्जन कर बासा” लेकिन तुलसी के पोधो को देखकर कपिराज हनुमानजी बहुत प्रसन्न हुए ।
ब्राह्मण रूप धारण करके विभीषण से मिले । प्रभु श्रीराम की कुशल कही स्वयं यहाँ किस लिए आये है वो भी कहा । विभीषण जी से माता सीता का पता लेके अशोक वाटिका में जाते है । माँ को राम नाम की मुद्रिका देकर माता सीता की आज्ञा लेकर फल खाते है । राक्षसों का संहार करते है ।
रावण के मद को उतरते है । लंका में आग लगाकर समुद्र तट पर पुनः आते है । हनुमानजी को देखते ही सभी वानर एक दुसरे से गले मिल पड़ते है ” नाथ पवनसुत किन्ही जो करनी
सहस मुख नहीं जायसी बरनी ”
राम का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद हर्षित वानर सेना समुद्र तट पर आकर समुद्र से मार्ग देने की विनती करती है ।
समुद्र श्री राम की महिमा को सुनकर श्री राम को नल नील के द्वारा समुद्र सेतु की बात बताते है । विभीषण जी प्रभु श्री राम की शरणागति प्राप्त करते है ” निर्मल मन जन सो मोहि पावा , मोहि कपट छल छिद्र न भावा”
श्री राम युद्ध से पहले विभीषण का राज तिलक करते है । पत्थर पर श्री राम नाम लिखकर समुद्र पर पुल बनाया जाता है । हनुमान जी बड़े बड़े पर्वत लाकर समुद्र में पधराते है ।
नल नील के मार्गदर्शन के अनुसार सेतुबंध की रचना की जाती है । इस प्रकार से सुंदरकांड सचमुच बहुत सुंदर है । ये भक्ति की पराकाष्ठा है । सुंदरकांड का पाठ करने से इस कलयुग में पापी से पापी भी तर जाता है समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और प्रभु श्री राम के चरणों की प्राप्ति होती है ।
सुंदरकांड एक तरीके से देखे तो एक समंवाध्याय है । जिसमे शोर्य के साथ शांत रस , भक्ति के साथ कर्म योग, और बल के साथ बुद्धि के समन्वय की महिमा गान हुआ है । गोस्वामी जी की इस रचना में उनकी हनुमान जी के प्रति प्रगाढ़ भक्ति के दर्शन होते है । इस प्रकार से गोस्वामी जी गुरु दक्षिणा दी है । तुलसीदासजी ने तो अपने ऋषिरिण में से मुक्त होने का काम कर लिया है पर इसके साथ ही हमारे लिए एक बड़ा कर्तव्य बोध भी दिया है ।
मित्रो ! थोड़ा समय निकाल कर रामचरित मानस से सुंदरकांड की दस – बार चौपाई का पाठ करने का नियम बना ले ।
सुंदर कांड में व्यक्त हुई भावनाओं को जीवन में उतारने का अनिष्ट प्रयास करेंगे तो हनुमान जी विशेष प्रसन्न होंगे । जो सुंदरकांड और हनुमान जी की उपासना सच्चे मन से करते है उनमे शक्ति, संस्कार और विवेक का त्रिगुण समन्वय होता है । ऐसे व्यक्ति कभी निष्फल नहीं होते है ।
यही है सुंदरकांड की आध्यात्मिक और व्यवहारिक महिमा !
जय जय जय बजरंग
जय जय जय श्री राम
by: bagoraph
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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