 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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एक बार वह पुत्र प्राप्ति की कामना से शनिदेव के निकट आई | उस समय शनि ध्यान मग्न थे अतः उन्होंने अपनी पत्नी की ओर दृष्टिपात तक नहीं किया |
लंबी प्रतीक्षा के बाद भी जब शनि का ध्यान भंग नहीं हुआ तो वह ऋतुकाल निष्फल हो जाने के कारण से क्रोधित हो गयी और शनि को शाप दे दिया कि – अब से तुम जिस पर भी दृष्टिपात करोगे वह नष्ट हो जाएगा |
तभी से शनि की दृष्टि को क्रूर व अशुभ समझा जाता है | शनि भी सदैव अपनी दृष्टि नीचे ही रखते हैं ताकि उनके द्वारा किसी का अनिष्ट न हो | फलित ज्योतिष में भी शनि की दृष्टि को अमंगलकारी कहा गया है |
ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी शनि की क्रूर दृष्टि का वर्णन है |
गौरी नंदन गणेश के जन्मोत्सव पर शनि बालक के दर्शन की अभिलाषा से गए | मस्तक झुका कर बंद नेत्रों से माता पार्वती के चरणों में प्रणाम किया, शिशु गणेश माता की गोद में ही थे |
मां पार्वती ने शनि को आशीष देते हुए प्रश्न किया,” हे शनि देव ! आप गणेश को देख नहीं रहे हो इसका क्या कारण है |” शनि ने उत्तर दिया –“ माता ! मेरी सहधर्मिणी का शाप है कि मैं जिसे भी देखूंगा उसका अनिष्ट होगा, इसलिए मैं अपनी दृष्टि नीचे ही रखता हूँ |
पार्वती ने सत्य को जान कर भी दैववश शनि को बालक को देखने का आदेश दिया | धर्म को साक्षी मान कर शनि ने वाम नेत्र के कोने से बालक गणेश पर दृष्टिपात किया |
शनि दृष्टि पड़ते ही गणेश का मस्तक धड़ से अलग होकर गोलोक में चला गया | बाद में श्री हरि ने एक गज शिशु का मस्तक गणेश के धड़ से जोड़ा और उसमें प्राणों का संचार किया | तभी से गणेश गजानन नाम से प्रसिद्ध हुए |
 
 
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