मधुमेह में उपयोगी गुड़मार-
गुड्मार (Gymnema Sylvestre जिमनेमा सिलवेस्ट्रिस)-
प्राचीन समय से ही मधुमेह में उपयोग की जाने वाली एक चिरपरिचित वनस्पति रही है। सुश्रुत ने इस लता को शर्करा निवारक और विष-प्रभाव को दूर करने वाली बताया है।
ऐसा देखा गया है कि गुड़मार बूटी के कुछ पत्तों को चबाकर यदि उनके ऊपर कोई भी मीठा पदार्थ खाया जाए तो उसका स्वाद मीठे के बजाय फीका या कड़वा प्रतीत होने लगता है। गुड़मार की लता मध्यप्रदेश (भोपाल, ग्वालियर) और दक्षिण भारत और राजस्थान के पथरीले क्षेत्रों में पैदा होती है।
ऐसा माना जाता है कि गुड़मार की पत्तियों में अन्य रसायनों (संभव है शर्करा रोधी) के अतिरिक्त एक अत्यन्त जटिल उच्च भारयुक्त हाइड्रो-कोलाइड पॉली सैकेराइड पदार्थ पाया जाता है जो आंत संस्थान में पहुँच कर पाचक रसों के सहयोग और पानी को सोखकर गाढ़े, लिसलिसे, जैली जैसे पदार्थ का रूप ले लेता है। यह जैली के अवचूषण में बाधा डालने लग जाती है, परिणामस्वरूप भोजनोपरान्त रक्त में ग्लूकोज का स्तर तेजी से नहीं बढ़ पाता है।
मधुमेह रोगियों को अकेले गुड़मार पर निर्भर रहने के बजाय इसका उपयोग अन्य औषधियों के साथ करना चाहिए। इससे एक तरफ तो उन औषधियों के गुणों में वृद्धि हो जाती है, साथ ही शरीर में भी ग्लूकोज का उपयोग बढ़ जाता है क्योंकि अभी तक के अनुसंधान से गुड़मार के ग्लूकोज की चयापचय क्रिया पर पड़ने वाले किसी सीधे प्रभाव को सिद्ध नहीं किया जा सकता है।
इसके साथ आप मेथी दाना, सदा पुष्पी, गिलोय, करेला बीज, जामुन गुठलियों का चूर्ण इत्यादि को मिलाकर चूर्ण बनाकर सुबह खाली पेट व शाम को खाने के एक घंटा बाद पानी में एक-एक चम्मच चूर्ण का सेवन करना चाहिए।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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