एक बार दैत्यराज बलि ने गुरु शुक्र(वीनस) आचार्य के निर्देशन में एक महान यज्ञ का आयोजन किया | देव इच्छा से भगवान विष्णु वामन रूप में यज्ञ में पधारे तथा बलि से दान की कामना की |
शुक्र(वीनस) आचार्य ने विष्णु को पहचान लिया और बलि को सावधान किया कि वामन रूप में यह अदिति पुत्र विष्णु है, इन्हें दान का संकल्प मत करना, तुम्हारा समस्त वैभव नष्ट हो जाएगा | बलि दानवीर थे | उन्होंने अपने गुरु के परामर्श पर ध्यान नहीं दिया |
वामन रूपधारी विष्णु ने तीन पग भूमि मांग ली जिसे देने का संकल्प विरोचन कुमार बलि जल से भरा कलश हाथ में ले कर करने लगे | पर कलश के मुख से जल की धारा नहीं निकली| भगवान विष्णु समझ गए कि कुलगुरु शुक्र (वीनस) आचार्य अपने शिष्य का हित साधने के लिए सूक्ष्म रूप में कलश के मुख में स्थित हो कर बाधा उपस्थित कर रहे हैं |
उन्होंने एक तिनका उठा कर कलश के मुख में दाल दिया जिस से शुक्र(वीनस) का एक नेत्र नष्ट हो गया और उसने कलश को छोड दिया | कलश से जलधारा बह निकली और बलि ने तीन पग भूमि दान का संकल्प कर दिया |
अपने दो पगों में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड व लोकों को माप कर तीसरा चरण बलि की इच्छानुसार उसके मस्तक पर रख कर संकल्प पूर्ण किया |
बलि के इस विकट दान से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें रसातल का राज्य प्रदान किया और अगले मन्वन्तर में इंद्र पद देने कि घोषणा की |
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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