शनि को पश्चिम दिशा के स्वामी तथा विनाश का अधिपति माना गया है।
मेष, सिंह व धनु लग्न के लोगों की जन्म पत्रिका में शनि बाधक होते हैं।
मेष लग्न में शनि दशम व एकादश स्थान का स्वामी होता है, इसलिए दशम (कर्म) एकादश आय के क्षेत्र में रुकावट पैदा करता है।
सिंह लग्न में शनि छठे (शत्रु स्थान) एवं सप्तम भाव (पति-पत्नी, व्यापार, पार्टनर) सम्बन्धी दिक्कतें अर्थात् सफलता में शत्रुओं द्वारा परेशानी तथा पति-पत्नी, व्यापार आदि में परेशानी देता है।
धनु लग्न वालों के लिए शनि द्वितीय भाव (धन, वाणी, कुटुम्ब स्थान) तृतीय भाव (पराक्रम, छोटे भाई बहन साहस बल) के विषय में बाधाएँ उपस्थित करता है।
लेकिन धनु लग्न की जन्मपत्रिका में यदि धनिष्ठा नक्षत्र, मकर राशि में शनि के साथ केतु ग्रह विराजमान हो, तो ऐसे लोग अपने बल पर शून्य से शिखर पर पहुँच जाते है व जीवन में अनंत ऊँचाइयाँ पाते हैं।
जन्म पत्रिका में अष्टम व दशम भाव में होकर शनि विशेष कारक होते है। यदि अष्टम व दशम भाव में उदय व मार्गी मकर राशि का शनि हो, तो इसके शुभाशुभ प्रभाव को कोई भी शक्ति नहीं रोक सकती।
ऐसे जातक धर्म-न्याय सम्बन्धी कार्यों में बेहिसाब धन खर्च करते हैं। अनन्त श्री (अरबों-खरबों की सम्पदा के स्वामी) होते हैं। यदि अष्टम व दशम भाव में उच्च के शनि हो, तो अष्टम शनि की द्वितीय भाव में, दृष्टि नीच कार्यों में बर्बाद करवा देता है तथा दशम में तुला के शनि (उच्च राशि) होने पर सुख स्थान पर नीच दृष्टि होने से जातक को सुखहीन बना देगी।
इसलिए मान्यता है कि उच्च के शनि अर्थात तुला राशि के शनि की अपेक्षा मकर राशि के शनि विशेष फल दायक होते हैं। मकर राशि में स्थित शनि की दृष्टि शुभ ही होती है।
राहु व शनि की दृष्टि नीची होती है। मान्यता है कि शनि की दृष्टि जिस भाव (स्थान) पर पड़ती है, वह स्थान दूषित हो जाता है।
त्रिकालदर्शी ऋषियों का मत है कि पत्रिका में शनि जिस स्थान पर विराजमान होता है, उस स्थान से तृतीय, सप्तम एवं दशम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है और जहाँ-जहाँ शनि की निगाह पड़ती है, उस भाव (स्थान) को अशुभ कर देता है।
लेकिन अनेकों पत्रिकाओं के अनुसन्धान तथा अनुभव से ज्ञात हुआ है कि यदि शनि मार्गी होकर मकर राशि में स्थित हैं, तो उनकी दृष्टि जिन भावों पर पड़ेगी, वह शुभदायक ही होगी। क्योंकि मकर राशि के शनि कर्क, मीन एवं तुला राशि को देखते हैं।
अतः कर्क में कोई विराजमान ग्रह अथवा दृष्टि अशुभ फलदायक नहीं होती। मीन राशि के स्वामी गुरु हैं। इसलिए शनि गुरु का कभी अहित नहीं करते एवं तुला राशि में शनि उच्च का फल प्रदान करते हैं। इसलिए शनि मकर राशि में स्थित होकर अपनी दृष्टि से जातक का कल्याण ही करते हैं।
मकर राशि के शनि की सबसे विशेष बात यह है कि ऐसे जातक भावुक व कल्याण करने वाले तथा परम शिव भक्त होते हैं। यदि मकर राशि में स्थित शनि वाले जातक अहंकार, जिद्दी व अड़ियलपन त्याग कर अनावश्यक प्रशंसा तथा भेदभाव से बचकर रहें, तो इनकी यश कीर्ति, समृद्धि का दुनिया में यशोगान करती है, गुणगान करती है।
द्वादश भावों में शनि के शुभ-भाव ..
1. जब शनि में तृतीय भाव में स्थित होता है, तो जातक को अनेक प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं, चित्त आनन्दित और प्रफुल्लित रहता है, किसी प्रकार का मानसिक तनाव नहीं होता तथा उसे पशुधन एवं संपत्ति की प्राप्ति होती है।
2. इसी प्रकार जब शनि एकादश भाव में स्थित होता है, तो जातक को पत्नी, संतान एवं सम्पत्ति से सब प्रकार , सुख होता है। सेवकों (नौकरों) और कृषि कर्म (खेती) से लाभ एवं जीवन में अनेक प्रकार से यश की प्राप्ति होती है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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