 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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                    कब क्या करें और क्या नहीं?
रविवार, पूर्णिमा और अमावस्या को रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए। अजीर्ण और पित्त आधिक्य की संभावना रहती है।
एकादशी तिथि को अन्न नहीं खाना चाहिए। भोजन सदा किसी पात्र (थाली या पत्तल) में रखकर करना चाहिए। एक हाथ में अन (रोटी) रखकर दूसरे हाथ से नहीं खाएं। सिर भिगोकर या गीले कपड़े पहनकर भोजन नहीं करना चाहिए। जठराग्नि के मंद होने से अपच की शिकायत होती है।
नमक, घी, तेल, सब्जी, हलुआ आदि पदार्थ हाथ से नहीं परोसने चाहिए। भोजन के समय नमक हाथ से परोसने पर रिश्तों में कटुता आती है। इन पदार्थों को चम्मच आदि से ही परोसना चाहिए।
तांबे के पात्र में दूध नहीं पीना चाहिए। यह हानिकारक होता है। शिवजी को भी तांबे के पात्र से दूध चढ़ाना चाहिये। काँसे के पात्र में नारियल का जल व गन्ने का रस नहीं पीना चाहिए।
दही में गुड़ मिलाकर तथा घी में समान मात्रा में शहद मिलाकर एवं गर्म दूध के साथ मूली नहीं खानी चाहिए।
भोजन करते समय कुत्ता, मुर्गा या अन्य पतित व्यक्ति अथवा दूसरे परिवार की रजस्वला स्त्री दिखाई देवें तो भोजन को त्याग देना चाहिए।
यदि पुष्प नहीं मिलें तो पत्तों से भी पूजा की जा सकती है। तुलसी पत्र, बिल्व पत्र और तीर्थ का जल कभी बासी नहीं होता, उन्हें एक बार लाकर 4-5 दिन या अधिक दिनों तक यहाँ तक कि तुलसी व बिल्वपत्र को तो सूखने पर भी प्रयोग में लिया जा सकता है। शनिवार और मंगलवार को ब्याज पर धन नहीं देना चाहिए तथा शेयर्स में भी धन नहीं लगाना चाहिए।
ज्येष्ठा, मूल, श्रवण, स्वाति, मृदु संज्ञक (मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा), क्षिप्र संज्ञक (अश्विनी, तथा पुनर्वसु नक्षत्र तथा गुरु, शुक्र एवं सोमवार को पुष्य, प्रथम बार औषध भक्षण करना अर्थात औषधि का प्रयोग प्रारंभ करना सुखकारी होता है। को फूलों से भर देता है, जो उसे दिलाते हैं।"
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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