“धर्म” बन रहा है मानवता के लिए खतरा, मिथ्या धारणाएं सबसे बड़ा संकट..सरयूसुत मिश्रा
धर्म की मिथ्या धारणाओं और स्वार्थ के लिए उसकी गलत व्याख्याओं से धर्म शब्द ही धूल-धूसरित हो रहा है. धन-संपत्ति और पैसे के लिए संघर्ष तो समझ में आता है, लेकिन धर्म के नामपर युद्ध मानवता और मानव जाति के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गया है. अफगानिस्तान के ताजा हालात पूरी दुनिया को चिंतित कर रहे हैं. वहाँ धर्म के आधार पर राजनीतिक सत्ता हथियाने के लिए हजारों लोगों की हत्या क्या धर्म सम्मत मानी जा सकती है ? पूरी दुनिया, मुख्यतः इस्लाम और ईसाइयत में विभाजित है. सनातन हिन्दू धर्म का झंडा तो केवल भारत में ही बुलंद है. कोई भी धर्म मानव के स्वयं आनंद से जीने और दूसरों को जीने देने के लिए होता है. धर्म मानव के लिए है न कि मानव धर्म के लिए. धर्म व्यक्तिगत आस्था और आचरण का विषय है. धर्म की “अफीम” चटा कर इंसान की विचार प्रक्रिया को नफरत और हिंसा के आधार पर तैयार करना क्या किसी धर्म का तकाजा होना मान्य हो सकता है? जो मनुष्य अपने शरीर में बम बांधकर किसी की हत्या करते हुए स्वयं भी मर जाता है, उसकी परवरिश और धर्म के प्रति उसकी मान्यता का अंदाजा लगाते हुए सिहरन हो जाती है. इस्लाम को मानवता का धर्म माना गया है. इसी धर्म के अनुयायी अपनी धार्मिक विचारधारा, विश्वास और राजनीतिक सरकार बनाने के लिए अफगानिस्तान में जो कर रहे हैं, वह इस धर्म के अनुयायियों को गलत क्यों नहीं दिख रहा है? अपने ही धर्म की महिलाओं और बच्चियों के जीवन के साथ दरिंदगी पूर्ण व्यवहार को धर्म का शासन बताया जा रहा है. महिलाओं की स्वतंत्रता को धर्म के कानून के आधार पर 21वीं सदी में रोका जा रहा है. सड़कों पर महिलाओं को कोड़ों से पीटा जा रहा है. बंदूकों के साए में औरतों के मान-सम्मान और स्वाभिमान को रौंदा जा रहा है और इसे धर्म के शासन के अनुरूप बताया जा रहा है. जिहाद और धर्मांतरण को धर्म का आधार बताया जा रहा है. धर्म में त्याग को महत्व दिया गया है. यह किसी को धर्म का आधार बनाकर पूरी दुनिया में भय व आतंक से अपनी विचारधारा और विश्वास को फैलाने का जोखिम क्या धार्मिक रहनुमाओं को नहीं मालूम है? इस्लाम धर्म के अनुयायी आपस में ही लड़ते रहे हैं. इमाम खलीफा यहां तक कि पैगंबर मोहम्मद साहब के परिवार जनों की हत्याएं भी मुसलमानों ने ही की थीं. ऐसा नहीं है कि इस्लाम को मानने वाले सारे लोग धर्म के प्रति कट्टर और मानवता विरोधी हैं. लेकिन कुछ लोग इस धर्म की आड़ में जिस तरह की गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं, वह किसी के लिए भी उचित और हितकर नहीं है. किसी भी धर्म की कोई भी ऐसी शिक्षा जो हमें अमानवीय बनाती है, उसे तुरंत छोड़ देना सब के लिए बेहतर है. आज दुनिया जिस तरह की त्रासदियों से गुजर रही है वह अधिकांश मानव निर्मित है. यह त्रासदी ईश्वर, अल्लाह या गॉड ने नहीं पैदा की है. कोरोना जैसा विश्वव्यापी संकट भी मानव जनित ही है. दुनिया के सामने सबसे गंभीर संकट यह है कि लड़ने वाले लोग ऐसा मानते हैं कि वह धर्म, ईश्वर, अल्लाह या गॉड के लिए लड़ रहे हैं, इसलिए इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता. कोई भी व्यक्ति किसी भी विश्वास पर अड़ा रहेगा या कहें कि कट्टर रहेगा तो फिर दूसरे विश्वास वालों से विवाद सुनिश्चित है. क्रोध में किए गए कार्य के लिए पछतावा होता है, लेकिन धार्मिक कट्टरता में निर्दयता की पराकाष्ठा की जाती है और कोई पछतावा भी नहीं होता. ऐसा इसलिए होता है कि धर्म के नाम पर गलत धारणाओं पर शिक्षित व्यक्ति ऐसा मानता है कि उसकी निर्दयता भी उसके धर्म और उसके ईश्वर के लिए है. ईश्वर अल्लाह और गॉड के बारे में सच्चाई की बातें तो हमें पता नहीं हैं, लेकिन हम युद्ध इसी नाम पर कर रहे हैं. धर्म की शिक्षा और कानून कैसे व्यक्ति को पागल बना देता है, इसका उदाहरण तालिबानी और आतंकवादी है. खुद की जिंदगी को नरक बना कर दूसरों की जिंदगियों को नर्क बनाने वाले कथित धर्म युद्ध किसकी कोख से जन्मा है? धर्म के नाम पर आतंकवादी अपना जीवन इसलिए बर्बाद कर रहे हैं कि मरने के बाद उन्हें जन्नत मिलेगी. धरती की जन्नत को जहन्नुम बना रहे हैं और जिस जन्नत का कुछ पता नहीं उसकी कल्पना कर रहे हैं. कोई भी धर्म देश-काल और परिस्थितियों के अनुसार सुधार की मांग करता है. हिंदू और सनातन धर्म नें अपनी कितनी ही धार्मिक विकृतियों और बुराइयों को छोड़ा है. कुछ ऐसी प्रथाएं चल रही थीं, जो मानवता की अस्मिता पर कलंक बन गयी थीं. उन्हें समाप्त किया गया. हिंदू धर्म आज भी चिंतन-मनन के साथ प्रकृति की रक्षा और सुरक्षा के लिए अपनी धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं में बदलाव लाने से पीछे नहीं रहता. बाकी धर्मों में इतनी उदारता क्यों नहीं है? जीवन की गरिमा से ज्यादा धार्मिक कानून कैसे महत्वपूर्ण हो सकते हैं ? जो व्यवस्था मानव गरिमा को प्रभावित करती हो, उसे छोड़ना तो पड़ेगा ही, आज नहीं तो कल. बुद्धिमानी इसी में है कि दूसरे के अनुभवों से सीख लिया जाए. खुद ही मिट गए तो अनुभव किस काम के. धर्म के नाम पर हिंसा एवं नफरत के साथ प्रशिक्षित लोग जब खलीफा और पैगंबर के परिवार की हत्या कर सकते हैं, तो फिर ऐसे लोग किसी को छोड़ेंगे क्या? इंसान आज वैज्ञानिक प्रगति और विकास की नई-नई ऊंचाइयां छू रहा है. सूचना, प्रौद्योगिकी प्रगति और बुद्धि के इस युग में धार्मिक मान्यताओं के नाम पर मानवता को नष्ट करने के प्रयास इंसान की बुद्धि पर ही सवालिया निशान है. कोई आंख उठा कर तो कोई आंख झुका कर इबादत करता है. जब आँख ही नहीं रहेगी, तो उठाकर और झुका कर इबादत कैसे करेंगे? हर व्यक्ति को अपना धर्म मानने और पूजा पद्धति तथा आस्था के अनुसार आचरण की पूरी आजादी हो. धर्म व्यक्तिगत विषय हो और वही धार्मिक शिक्षा एवं कानून स्वीकार किए जाएं जो मानवतावादी हो. धर्म के नाम पर जन्नत और अमर होने का विचार कायराना और भ्रामक है. मिथ्या धारणाओं पर खुद को नष्ट नहीं करें. इस खूबसूरत दुनिया और आवाम को नष्ट करने का काम नहीं करें. ऐसा जीवन बनाएं कि खुद जिए और दूसरों को भी जीने दे. आपकी सांस ही आपका धर्म है. सांस ही जन्नत है सांस ही स्वर्ग है. साफ हवा, स्वच्छ पानी, अच्छी सेहत, स्वतंत्र माहौल, सही शिक्षा और सही चिंतन होगा, तभी सांस मजबूत होगी. दुनिया में ऐसा माहौल बने कि हर मानव को यह सब मिले, तभी हमारे धर्म और मनुष्य होने का कोई मतलब होगा. जिस धर्म की मिथ्या धारणाओं पर हम लड़े जा रहे हैं, क्या कोई भी धर्म साँसों को बंद होने से रोक सकता है?