भारत में ईशनिंदा हमेशा से स्वीकार्य रही है, ईशनिंदा कानून भारत की संस्कृति से मेल नहीं खाता…..अतुल विनोद

भारत में ईशनिंदा हमेशा से स्वीकार्य रही है, ईशनिंदा कानून भारत की संस्कृति से मेल नहीं खाता…..अतुल विनोद

सैयद वसीम रिजवी ने अपनी किताब में मोहम्मद साहब को लेकर कुछ ऐसी बातें कहीं जो इस्लाम के अनुयायियों को रास नहीं आ रही, वे भारत में ईशनिंदा कानून की मांग कर रहे हैं। हालांकि भारत इस तरह के किसी भी कानून को बनाने के पक्ष में कभी नहीं रहा। भारत में ईशनिंदा हमेशा से स्वीकार्य रही है। 

भारत ने ईशनिंदा को कभी भी गलत नहीं माना।

भारत सनातन परंपरा को मानने वाला देश है। सनातन धर्म में ईश्वर को प्राप्त करने के हर मार्ग को स्वीकार्यता दी गई है। सनातन धर्म कहता है "एकम सत बहुधा विप्रा वदन्ति" सत्य एक है लोग उसे अलग-अलग रूप में मानते और बताते हैं। कोई श्रीराम के सहारे ईश्वर तक पहुंचना चाहता है कोई कृष्ण के सहारे। कोई आकार की साधना करता है कोई निराकार की। कोई मोहम्मद के मार्ग पर चलता है कोई गुरु नानक देव के मार्ग पर। 

भारतीय सनातन चिंतन कहता है कि यह सब मार्ग मनुष्य निर्मित हैं। ईश्वर इन मार्गों से प्राप्त किया जा सकता है लेकिन ईश्वर इन मार्गों के अधीन नहीं है।

भारत में अनास्तिकवाद को भी प्रश्रय दिया गया।

भारत में हिंदू धर्म में ईश्वर प्राप्त करने के अनेक मार्ग है। सनातन धर्म ने कहा कि कोई भी मार्ग पकड़ लीजिए लेकिन ध्यान ईश्वर पर रखिए आप ईश्वर तक पहुंच जाएंगे। कोई भी मार्ग अंतिम नहीं होता। आप चल पड़ते हैं धीरे-धीरे ईश्वर आपको अपने पास तक पहुंचने का सही रास्ता स्वयं दिखा देता है। बस आपकी भावना प्रबल होनी चाहिए। 

भारत में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को शिद्दत से पूजा जाता है लेकिन भगवान श्रीराम को गलत ठहराने और कोसने वाले कम नहीं हैं। श्री राम को लेकर आपत्तिजनक साहित्य की भारत में भरमार है। 

सनातन धर्म कहता है कि आप हर प्रकार के साहित्य का अध्ययन कर सकते हैं, क्योंकि सत्य की खोज आपकी जिज्ञासा से शुरू होगी। सत्य आपको आपके अंदर ही मिलेगा। जब तक संदेह और जिज्ञासा नहीं होगी, प्रश्न नहीं होंगे तब तक उत्तर नहीं मिलेगा।

इस्लाम में ईशनिंदा स्वीकार्य नहीं है। क्योंकि मोहम्मद साहब के मानने वालों का यह मत है कि यदि उनके आराध्य के खिलाफ कुछ लिख दिया गया तो उनका धर्म खतरे में पड़ जाएगा। लेकिन धर्म कभी भी खतरे में नहीं पड़ता। 

आराध्य को कोसने या आराध्य के बारे में कुछ लिख देने से धर्म खतरे में पड़ जाए तो यह चिंता का विषय है। लोग धर्म की रक्षा करना चाहते हैं, लेकिन वो शायद यह नहीं जानते कि मनुष्य धर्म की रक्षा नहीं कर सकता, धर्म मनुष्य की रक्षा करता है। लोग धर्म का झंडा बुलंद करते हैं, लेकिन वे यह नहीं जानते उल्टा धर्म मनुष्य का झंडा बुलंद करता है।

धर्म है तो मनुष्य हैं, मनुष्य रहे या ना रहे धर्म हमेशा रहेगा।

मनुष्य को ईश्वर ने सोचने समझने की सामर्थ्य दी है। ईश्वर ने कहा है कि हर व्यक्ति को अपने धर्म को चुनने की स्वतंत्रता है। अपने मार्ग से वास्तविक धर्म तक पहुंचने की लोकतांत्रिक व्यवस्था स्वयं ईश्वर ने उसे दी है।

सनातन धर्म तो बच्चे को भी कोई “मार्ग” पकड़ाने के ख़िलाफ़ है। उसे मार्ग बताईये थोपिए मत।

ईश्वरीय चेतना कहती है मनुष्य अपने द्वारा निर्मित धर्मों को “संपूर्ण” ना माने। मनुष्य द्वारा निर्मित “मार्ग” हमेशा अपूर्ण होता है। धर्म और ईश्वरीय मार्ग को लेकर अनेक तरह की किताबें लिखी गई हैं। इन किताबों को लिखने वाले मनुष्य ही हैं और मनुष्य कभी भी लेखनी के माध्यम से पूर्ण सत्य को अभिव्यक्त नहीं कर सकते। 

सनातन चिंतन कहता है सत्य का साक्षात्कार सम्भव है पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं, क्यूंकि ईश्वर प्रत्यक्ष अनुभूति का विषय है| इसलिए कोई भी किताब अंतिम किताब नहीं है, ना ही कोई व्यक्ति अंतिम अवतार है।

ईश्वर हमेशा विविध रूपों में अवतार लेता रहता है, इसलिए कोई भी प्रोफेट, Advent, रसूल, अवतार, इंकार्नेशन अंतिम नहीं है। हर वक्त कोई न कोई व्यक्ति सत्य को जानने में सक्षम होता है।

एक वक्त में एक साथ ऐसे लाखों मनुष्य हो सकते हैं जो ईश्वरीय गुणों की अभिव्यक्ति कहे जा सकते हैं।

अवतार यानी कोई एक व्यक्ति नहीं। अवतार यदि हर वो व्यक्ति जिसके अंदर ईश्वरीय धर्म अभिव्यक्त होता है, जिसके अंदर सत्य प्रकट होता है, जिसके अंदर आंतरिक शक्ति प्रज्वलित होती है। हम सब ईश्वर के अवतार हैं इनमे से कुछ ऐसें हैं जिनमे ईश्वरीय अभिव्यक्ति अधिक होती है कुछ में  कम| जिसमे ईश्वरीय कलाएं अधिक हैं वे अवतार कहे जाते हैं| 

लेकिन इसका फैसला कैसे हो कि फलां में वाकई ईश्वरीय कलाएं अधिक थी? क्या सुनकर या पढ़कर इसका फैसला हो सकता है? इसलिए कहा जाता है यकीन मत करो अनुभव के मार्ग पर आगे बढ़ो| 

ईशनिंदा कानून की मांग इसलिए उठी क्योंकि इस्लाम में मोहम्मद साहब को किसी भी स्तर पर सवालों के सवालों से परे माना गया। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कहता है कि भारत में ईशनिंदा कानून बनाया जाए| 

ईशनिंदा कानून एक ऐसा लॉ है जिसके नाम पर पाकिस्तान अपने देश के हिंदू, सिख और ईसाइयों पर अमानवीय अत्याचार करता रहा है| इस कानून के ज़रिये इन लोगों को मौत की सज़ा देता रहा है| 

ईशनिंदा एक ऐसा कानून/लॉ है जिसे मानवाधिकार संगठन अमानवीय बताते हैं, ये कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधे तौर पर हमला करता है और इसलिए पूरा जगत इस कानून को लागू करने वाले देशों की कटु आलोचना करता है| तो कोश्चन यही है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस तरह के कानून की मांग क्यों कर रहा है|

कुछ दिनों से इस्लामिक संगठनों को यह लग रहा है कि मोहम्मद साहब की शान में गुस्ताखी के मामले बढ़ रहे हैं।

भारतीय सनातन धर्म कहता है कि सवाल उठने दीजिए जब तक क्वेश्चन नहीं आएंगे तब तक सत्य तक पहुंचने की जिज्ञासा पैदा नहीं होगी। जब तक जिज्ञासा और मुमुक्षा नहीं होगी तब तक ईश्वर प्राप्त नहीं होगा। अंधानुकरण कभी भी ईश्वर प्राप्ति का मार्ग नहीं हो सकता।

पाकिस्तान में ईशनिंदा करने का क्या अंजाम होता है यह सब जानते हैं। उन्मादी भीड़ ईशनिंदा करने वाले को मौत के घाट उतार देती है।

भारत में ये ना तो स्वीकार्य था ना कभी स्वीकार हो सकता, क्योंकि यहां पर एक नहीं अनेक अवतार हुए हैं। हर अवतार को मानने वाले यहां रहते हैं और उन्हें अस्वीकार करने वाले भी यहां होते हैं। उनकी पूजा करने वाले भी यहां रहते हैं और निंदा करने वाले भी।

निंदा को धर्म ने कभी भी अस्वीकार नहीं किया, क्योंकि ये व्यक्ति की स्वाभाविक सहज प्रकृति है। वह किसी को पूजे ना पूजे। वह अपना दीपक स्वयं बने।

भगवान बुद्ध ने कहा "आत्म दीपो भवः" अपना दीपक स्वयं बनिए। अंधानुकरण मत कीजिए ईश्वर को अपने अंदर प्रकट कीजिए।

किसी और ने आपको ईश्वर के बारे में कुछ बताया है तो वह अंतिम सत्य है जरूरी नहीं। बताई गई बातें हमेशा सच नहीं होती। लिखी गई धार्मिक किताबें पूर्ण नहीं होती क्योंकि ईश्वर के अलावा कोई और पूर्ण नहीं हो सकता।

मनुष्य जब भी कुछ लिखता है उसमें वह अपने मन बुद्धि चित्त अहंकार के मुताबिक गठजोड़ कर देता है। इसीलिए हर धार्मिक किताब में कोई न कोई मीन मेख निकल जाती है।  

मनुष्य की बुद्धि कहीं ना कहीं कमी रख छोड़ती है जिसकी वजह से वह किताब आलोचना का शिकार बनती है।

हो सकता है कि किसी व्यक्ति में ईश्वर को लेकर कुछ बातें, ज्ञान या मार्ग उसके अंतःकरण में प्रकट हुये हों, लेकिन जब भी वह लिखेगा तो देश, काल, परिस्थिति, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार के मुताबिक उसे अभिव्यक्त करने की कोशिश करेगा।

मनुष्य की चेतना कितनी ही ऊपर उठ जाए, उसके अंदर अहम भाव शेष रहता है यही अहम कई बार स्वयं को अवतार घोषित करवा देता है।  

देहधारी व्यक्ति में लोकैषणा होती है जो खुद को पुजवाने के लिए कुछ ना कुछ ऐसी बातें भी जुड़वा देती है जो लोगों को सिर्फ उस तक सीमित कर दे। 

वास्तविक अवतार कभी भी अपने अनुयायियों को स्वयं तक सीमित नहीं करता। चेतना की अंतिम अवस्था में ऐसा ईश्वरीय कृपा प्राप्त व्यक्ति लोगों को मुक्त कर देता है। हर प्रकार के बंधनों से अलग कर देता है। और यह संदेश देता है, कि तुम अपने दीपक स्वयं बनो, मेरी भी मत मानो, मेरी भी मत सुनो, ईश्वर की खोज स्वयं करो।

इस दुनिया में अनेक स्वयंभू अवतार हुए हैं और होते रहेंगे। लेकिन मनुष्य कब तक धर्म ग्रंथों और सुनी सुनाई या बताई गई बातों में अपने आप को सीमित करेगा?

मनुष्य को अपने अंदर के अंधकार को दूर करने के लिए सत्य की किरण स्वयं खोजनी पड़ेगी। जब तक वह बचपन में मिली प्रोग्रामिंग के साथ बंधा रहेगा तब तक वह सत्य का साक्षात्कार नहीं कर सकेगा।

भारत में धर्म के इतने मार्ग इसलिए है कि व्यक्ति चाहे तो इनके मार्ग से आगे बढ़ जाए और यदि वह कंफ्यूज, भ्रमित हो जाए तो अपने अंदर ईश्वर को खोजे।

सारे मत पंथ संप्रदाय इसलिए है ताकि एक दिन वह इन सब से थक जाए जाए और फिर ईश्वर से मिलने की करुण पुकार करे, वही करुण पुकार, भक्ति, समर्पण उसे ईश्वर से मिला देगा।

मनुष्य के अंदर के तार्किक सवालों के जवाब ईशनिंदा जैसे कानून से नहीं मिल सकते। आप कानून बनाकर लोगों को अभिव्यक्ति से रोक सकते हैं, लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों पर पर्दा नहीं डाला जा सकता। 

ऐतिहासिक तथ्यों को कानून से बंद नहीं किया जा सकता।

व्यक्ति सहज रूप से जिज्ञासु होता है, उसके अंदर प्रश्न खड़े होते हैं। प्रश्न करना उसका स्वरूप है यह बचपन में ही पता चल जाता है। वह पिता, Dada, शिक्षक से अनेक प्रकार के सवाल करता है।

जो बिना जाने मान ले, यकीन कर ले, जो अंधविश्वास में पड़कर, लिखी लिखाई बातों को स्वीकार कर ले, भारतीय सनातन चिंतन कहता है कि वह ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता,उसे ईश्वरीय मार्ग नहीं मिल सकता, वह भटकता रहेगा वह सिर्फ अनुयायी बन सकता है, किसी का चमचा बन सकता है, लेकिन वह ना तो स्वयं का दीपक बन सकता है ना ही समाज के लिए किसी प्रकार से लाभदायक हो सकता है।

भारत एक लोकतांत्रिक देश है यहां धर्म, मत पंथ और संप्रदाय सब मार्ग हैं|  हर व्यक्ति को इन्हें चुनने की आज़ादी है| 

ईशनिंदा कानून कहता है कि यदि आप भगवान, अल्लाह, गॉड की शान में कोई गुस्ताखी करते हैं या उनको लेकर कुछ कहते हैं तो फिर आप को सजा दी जाएगी| ईशनिंदा कानून इस समय सऊदी अरब इंडोनेशिया पाकिस्तान ईरान और मलेशिया जैसे देशों में लागू है| यहां ईशनिंदा करने वालों को मौत की सजा देने तक के प्रावधान हैं| 

एक रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में 1990 के बाद से अब तक 100 से ज्यादा लोगों को ईशनिंदा के आरोप में भीड़ ने लिंचिंग करके मौत के घाट उतार दिया|  पंजाब विधानसभा ने भी इस तरह के कानून को लेकर विधानसभा में एक प्रस्ताव पास कर राष्ट्रपति को भेजा था लेकिन राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी नहीं दी| 

सिंधु बॉर्डर पर एक दलित पंजाबी युवक लखबीर सिंह की गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी के आरोप में नृशंस हत्या कर दी गई थी| देश और दुनिया भर में धर्म के नाम पर हर रोज कई हत्याएं होती हैं| 

धर्म कभी भी हत्या को जायज नहीं ठहरा था| जिसे ईश्वर ने पैदा किया है उसे ईश्वर के नाम पर कैसे मारा जा सकता है? ईश्वर अपने विरोधी को स्वयं सजा दे सकता है| लेकिन परमात्मा इतना दयालु है कि वह उसे ना मानने वाले या उसकी आलोचना करने वाले कभी पालन-पोषण करता है| जब अपनी निंदा से ईश्वर को कोई फर्क नहीं पड़ता तो मनुष्य क्यों उसके नाम पर हैवानियत की हदें पार करता है?