देव थिंकिंग और दानव थिंकिंग - अतुल विनोद
इस दुनिया में दो तरह की सोच है एक सोच देवत्व की तरफ ले जाती है और दूसरी सोच दानवत्व की तरफ़। देव थिंकिंग देने की थिंकिंग है। हम कितना दे सकते हैं। हम कैसे दे सकते हैं? दानव सोच हम कैसे ले सकते हैं, हम कितना ले सकते हैं? देवता लेने से पहले देने की सोचता है लेने में उसे बहुत संकोच होता है। देने में उसे कोई संकोच नहीं होता। दानव की सोच लेने की सोच है, लेने में भी तृप्ति नहीं मिलती तो छीनने लगता है, झपटने लगता है। ये भी पढ़ें..दानवों के सिर पर क्या सचमुच सींग होते थे? -दिनेश मालवीय देव थिंकिंग में मिली हुई शक्ति, सामर्थ्य का उपयोग कैसे बेहतर से बेहतर हो सके और दानव थिंकिंग में मिली हुई शक्ति और सामर्थ्य से कैसे दूसरों का दमन शोषण और उत्पीड़न किया जा सके। देव थिंकिंग में भावनाएं इच्छायें और आकांक्षाएं ईश्वरीय सृष्टि के विकास से जुड़ी होती हैं। दानव थिंकिंग में भावनाएं इच्छाएं और आकांक्षाएं सिर्फ “मैं” से जुड़ी होती हैं। देव थिंकिंग में देखने का तरीका दूसरों की दृष्टि दानव थिंकिंग में देखने का तरीका स्वयं की दृष्टि। मैं कैसे देखता हूं? मैं क्या जानता हूं? मैं क्या सोचता हूं? मैं कैसे सोचता हूं? ये भी पढ़ें.. जिंदगी कैसे बदलेगी? क्या देव-दानवों के कारण अच्छा या बुरा होता है? humans-and-the-cosmos देव थिंकिंग में अपना रास्ता बड़े से बड़े लाभ लालच या भय और पक्षपात में नहीं छोड़ा जाता। दानव थिंकिंग में कोई भी रास्ता छोटे से छोटे स्वार्थ लालच प्रलोभन आकर्षण या भय से बदल दिया जाता है। देव थिंकिंग में दूसरों की खुशी अपनी खुशी होती है। दानव थिंकिंग में दूसरों की खुशी जलन पैदा करती है। अपनी ही खुशी सब कुछ होती है। देव थिंकिंग स्वर्ग कही जाती है क्योंकि वह सबसे ऊंची होती है उस थिंकिंग में वास्तविक आनंद है, विस्तार है, अनंतता है, सर्व व्यापकता है। दानव थिंकिंग नरक थिंकिंग होती है क्योंकि उसमें संकोच है, दूसरों से जलन है, क्रोध है, अग्नि है, दाह है, अहंकार रूपी विष है, बदले का डंक है। यह आपको तय करना है कि आपकी थिंकिंग देव थिंकिंग है या दानव थिंकिंग। ये भी पढ़ें.. क्या देवता जागते-सोते भी हैं? देवशयनी एकादशी, जानें चार महीने क्यों बंद होते हैं शुभ कार्य : दिनेश मालवीय आपकी थिंकिंग स्वर्ग थिंकिंग है या नरक थिंकिंग। अतुल विनोद