हिन्दुओं के प्रसिद्ध जलतीर्थ और उनकी विशेषताएँ.. दिनेश मालवीय

हिन्दुओं के प्रसिद्ध जलतीर्थ और उनकी विशेषताएँ.. दिनेश मालवीय

 

हिन्दू संस्कृति की एक सबसे बड़ी विशेषता यह  है, कि इसके लोगों को जल बहुत प्रिय होता है. हिन्दू संस्कृति में जल को देवता माना गया है. हिन्दुओं के अधिकतर तीर्थस्थल नदियों के तट पर स्थित हैं. ज्यादातर उत्सव भी नदियों-जलाशयों के किनारे ही मनाये जाते हैं. सभी नदियों की अपनी अलग विशेषता होती है. विशेष पर्वों पर विशेष ग्रह-नक्षत्रों के संयोग के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने की परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है, जो यह आज भी अनवरत जारी है. नदियों को सिर्फ बहता हुआ जल नहीं, बल्कि चेतन देवी या माँ मानकर उनकी पूजा होती है. कोई बड़े से बड़ा पापी भी गंगा की झूठी कसम खाने का साहस नहीं कर पाता.  

 

नदियों  की अपनी-अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं. सभी नदियों का जल एक जैसा नहीं होता. किसी नदी के पानी में जल्दी ही कीड़े पड़ जाते हैं, किसी नदी में देर से कीड़े पड़ते हैं, लेकिन कुछ नदियों के पानी में कभी कीड़े नहीं पड़ते. गंगा और नर्मदा ऎसी नदियाँ हैं, जिनका जल वर्षों तक बोतल या बर्तन में बंद रहने पर भी यथावत रहता है. नदियों की बालू भी अलग-अलग प्रकार की होती हैं. किसी नदी की बाली में सुवर्ण कण होते हैं, किसी में रजत कण, किसी में ताम्र कण और किसी नदी की बालू में लोह कण होते हैं. बुंदेलखंड की केन नदी में ऐसे पत्थर मिलते हैं, जिनके ऊपर मूर्ति अंकित होती है. गण्डकी नदी में शालग्राम मिलते हैं. हर नदी में रहने वाले जलचर भी अलग होते हैं. ऐसा कहा जा सकता है, कि हर नदी अपने आँचल में एक सम्पूर्ण संस्कृति को समेटे होती है.  

 

ऋषिकेश में भागीरथी लक्ष्मण झूले के पास समतल धरती पर आती है. इसके बाद ऋषिकेश और हरिद्वार इसके तट पर बसे हैं. इन स्थानों पर गंगा के जल में पत्थर के छोटे-छोटे कण बहुत रहते हैं. इसके  कारण इसका जल थोड़ी  देर रखकर पीया जाता है. इन स्थानों पर शाम को गंगा आरती का दृश्य बहुत मनोरम होता है. हरिद्वार ही गंगा-द्वार है. यहीं पर महर्षि वेदव्यास ने अपने तप से महाभारत में मरे हुए कौरवों और अन्य वीरों का साक्षात्कार उनके परिजनों से करवाया था. पास ही कनखल में सती-यज्ञ का प्रसंग हुआ था. हिन्दुओं का दूसरा परम प्रसिद्ध तीर्थस्थल काशी है. यह गंगा के किनारे बसा है. काशी का मुख्य भाग प्राचीन नगर कंकड़ नामक एक लम्बी पहाड़ी पर बसा है. यह पवित्र नगरी पहाड़ी तीन-चार मील लम्बी पहाड़ी पर बसी है.  इसी कारण गंगा काशी के नीचे सदा बहती रहती है. ऐसा माना जाता है, कि इस पहाड़ी में पुराने घरों की नींव के नीचे टांकों में अनेक महायोगियों के जीवित समधि लिए हुए शरीर के अवशेष हैं. यह पहाड़ी ओंकारेश्वर, विश्वेश्वर और केदारेश्वर नाम के तीन खण्डों में विभाजित है.

 

काशी से पहले प्रयाग तीर्थ भागीरथी तथा यमुना के संगम पर बसा है. संगम स्नान का विशेष महत्त्व है. यहाँ हर बारह वर्ष में कुम्भ, हर छह वर्ष में अर्धकुम्भ और हर वर्ष माघ का एक माह का पर्व होता है. माघ पर्व के दौरान बड़ी संख्या में लोग “कल्पवास” भी करते हैं. वे एक माह तक जिस कुटिया में रहते हैं, “कल्पवास” संपन्न हो जाने पर उसको दान कर देते हैं. इन पर्वों पर देशभर में स्थापित सन्यासियों के अखाड़ों की सहभागिता विशेष आकर्षण का केंद्र होती है. नागाओं का सबसे अधिक सम्मान होता है. उनके चरणों की रज को माथे पर लगाया जाता है. उन्हें भगवान् शिव का अंश मानकर अतिरिक्त मान-सम्मान दिया जाता है. हर अखाड़े की अपनी अलग परम्पराएं, रीति-रिवाज और बहुत-सी अन्य विशेषताएँ होती हैं.

 

यमुना नदी के तट पर भगवान् श्रीकृष्ण की लीलाभूमि मथुरा है. यहाँ भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आकर यमुना जल में स्नान कर मंदिरों और अन्य प्रमुख स्थानों में जाकर दर्शन-लाभ लेते हैं. वे दान-पुण्य भी करते हैं. व्रज भूमि में अनेक रमणीय स्थल विद्यमान हैं, जिनके विषय में अनेक किंवदंतियाँ जुड़ी हैं. मध्यभारत में नर्मदा सबसे पुनीत नदी मानी जाती है. नर्मदा का जल भी कभी नहीं सड़ता और लोग इसे बंद बर्तनों में वर्षों तक अपने घर में रखते हैं. इसके बाद किसी विशेष अवसर पर इस पात्र को खोला जाता है. इसका बहुत सुंदर समारोह होता है. इसकी तुलना गंगा से की जाती है. नर्मदा एक मात्र ऎसी नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है. इसके किनारों पर बड़ी संख्या में मंदिर, आश्रम और मठ  हैं, जहाँ साधक अपनी आध्यात्मिक साधना में लीन रहते हैं. शाम के समय नर्मदा आरती का दृश्य भी बहुत नयनाभिराम होता है. धायवी-कुंड से नर्मदेश्वर नामक शिवलिंग प्राप्त होते हैं, जो देश के हर कोने तक जाते हैं.

 

नर्मदा के  तट पर ओंकारेश्वर तीर्थ बहुत प्रसिद्ध है. यहीं पर आदिशंकराचार्य की अपने गुरु श्री भगवत्पाद से भेंट और दीक्षा हुयी थी. इसके अलावा इस पवित्र नदी के तट पर परम पावन महेश्वर तीर्थ भी है. लोकप्रसिद्ध अहिल्या बाई ने इसे अपनी राजधानी बनाया था. उनके द्वारा रचित नर्मदा स्तुति को बहुत श्रद्दा के साथ गाया जाता है. दक्षिण भारत में कृष्णा और कावेरी पवित्र नदियों में शामिल हैं. कृष्णा नदी के तट पर “पांचलिंगा” महोत्सव मनाया जाता है. यह ब्रह्मगिरी पहाड़ी से निकलती है और बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है. पूर्व में ब्रह्मपुत्र एशिया की सबसे प्रमुख नदियों में शामिल है. एक एक मात्र ऐसी नदी है, जिसका नाम पुल्लिंग है. ब्रह्मपुत्र यानी ब्रह्माजी का पुत्र   

 

उज्जैन में परम पावन क्षिप्रा नदी है. यहाँ पर श्रीमहाकालेश्वर का जगत प्रसिद्ध मंदिर है. क्षिप्रा नदी के तट पर हर बारह वर्ष में एक माह का “सिंहस्थ” मेला लगता है, जिसमें करोड़ों लोग आते हैं. वे क्षिप्रा में स्नान कर उज्जैन के मंदिरों के दर्शन करते हैं और संतों के साथ सत्संग का लाभ लेते हैं.  नासिक में गोदावरी के तट पर बहुत सुंदर तीर्थ स्थल हैं.  त्रियम्बकेश्वर का प्रसिद्ध मंदिर जगविख्यात है. यहीं पर पंचवटी स्थित है, जहाँ भगवान् राम वनवास के समय कुछ समय रहे थे, यहीं से माता सीता का अपहरण हुआ था. राजस्थान में अजमेर के पास पुष्कर तीर्थ भी बहुत प्रसिद्ध है. संसार में ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर यहीं स्थित है. इसके सरोवर में पूर्वजों के पिण्डदान का बहुत महत्व है.