गंगा तेरा पानी अमृत, अकबर, औरंगजेब और पेशवा तक गंगाजल ही पीते थे.. -दिनेश मालवीय

गंगा तेरा पानी अमृत, अकबर, औरंगजेब और पेशवा तक गंगाजल ही पीते थे.. -दिनेश मालवीय

 

पिछले कुछ वर्षों से भारत की आत्मा, गंगा नदी की सफाई का अभियान चल रहा है. कई लोग इसे गंगा शुद्धिकरण अभियान भी कह देते हैं. लेकिन देवनदी के साथ-साथ लोकनदी   भी है. देवलोक से मानव के कल्याण के लिए पृथ्वी अवतरित हुयी यह नदी सदा पतितपावनी और पवित्र है और रहेगी. इसे लोकमाता के रूप में पूजा जाता है. यह करोड़ों लोगों के लिए जीवनदायनी होने के साथ-साथ मोक्षदायनी भी है. गंगा के साथ भारतवासियों के प्रेम का कितना घनिष्ठ और गहरा सम्बन्ध है, कि इसे वे इसे माँ कहकर बुलाते हैं. गंगा सिर्फ एक नदी नहीं, अपितु एक सम्पूर्ण संस्कृति है. कुछ लोगों की नासमझी और अनदेखी के कारण आज इस पुण्य-सलिला का पानी कुछ मैला हो गया है, जिसे साफ़ कर दिया जाएगा. लेकिन इसके बाबजूद गंगा की पवित्रता में कोई कमी नहीं आयी है.  इसके पानी में आज भी कीड़े नहीं पड़ते. श्रद्धालु पात्रों में गंगाजल लेकर जाते हैं, जो वर्षों तक वैसा ही बना रहता है.

 

गंगा के तट पर अनेक मेले और उत्सव आयोजित किये जाते हैं. हरिद्वार और प्रयाग में हर बारह वर्ष में कुम्भ और छह वर्ष में अर्धकुम्भ का आयोजन होता है. विशेष ग्रह नक्षत्रों के मेल के दौरान आयोजित इन मेलों में करोड़ों लोग डुबकी लगाते हैं. प्रयाग में संगम पर हर साल माघ मेले का आयोजन किया जाता है. इसमें  बड़ी संख्या में श्रद्धालु “कल्पवास” करते हैं. अनेक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के चलते, वहाँ समय मानों एक तरह से  थम ही जाता है. रात और दिन एक जैसे होते हैं. “मौनी अमावश्यास्या” पर तो इतनी बड़ी संख्या में लोग आते हैं, कि कोई गणना ही नहीं कर सकता. गंगा के साथ भारतीयों का जुड़ाव सिर्फ भावुकता के कारण नहीं  है. इसके पानी की अद्भुत विशेषताएं वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हुयी हैं. प्राचीनकाल में विभिन्न देशों से भारत आने वाले प्रसिद्ध यात्रियों ने गंगा और उसके साथ भारतियों के मातृवत सम्बन्ध का बहुत सुंदर विवरण लिखा है.

 

पुणे स्थित भंडारकर ओरियंटल इंस्टिट्यूट में अठारहवीं शताब्दी  का एक ग्रंथ “भोजनकुतूहल” है. इसमें कहा गया है, कि गंगाजल, श्वेत, स्वादु, स्वच्छ, बहुत रुचिकर, पथ्य, भोजन पकाने योग्य, पाचनशक्ति बढ़ाने वाला, आपोन का नाश करने वाला और भूख तथा बुद्धि को बढ़ाने वाला है. इब्नेबतूता नाम का प्रसिद्ध यात्री मोहमद बिन तुगलक के शासंकाल में 1333 में अफ्रिका से भारत यात्रा पर आया था. उसने जो यात्रावृत्तांत लिखा उसका नाम “रेहला” है. गंगा के बारे में उसने लिखा, कि सुल्तान मोहम्मद तुगलक के लिए दौलताबाद से गंगाजल नियमित रूप से जाया करता था. इसके वहाँ पहुँचने में चालीस दिन लगते थे.

 

अकबर गंगाजल को अमृततुल्य मानता था. अबुलफजल में  “आईने अकबरी” में लिखा है, कि “बादशाह गंगाजल को अमृत” समझते थे. इसका लगातार इंतज़ाम करने के लिए अकबर ने कुछ काबिल लोगों को तैनात कर रखा था. वह घर में और यात्रा में गंगाजल ही पीता था. जब वह आगरा  या फतेहपुर सीकरी में रहता था, तब गंगाजल सोरों से आता था. जब वह पंजाब जाता था, तब गंगाजल हरिद्वार से आता था. खाना पकाने के लिए वर्षाजल या यमुनाजल में थोडा-सा गंगाजल मिला दिया जाता था. घोर कट्टर धर्मांध ओरंगजेब का काम भी गंगाजल के बिना नहीं चलता था. फ्रांसीसी यात्री बर्नियार 1459 से 67 तक भारत में रहा. वह शहजादा दाराशिकोह का चिकित्सक था. अपने यात्रा विवरण में वह  लिखता है, कि “ दिल्ली और आगरा में औरंगजेब के लिए खाने-पीने की सामग्री के साथ गंगाजल भी रहता था. यात्रा में भी इसका इंतज़ाम रहता था. उसके अनेक दरबारी भी सिर्फ गंगाजल का सेवन करते थे. रोज़ाना सवेरे नाश्ते के साथ एक सुराही में गंगाजल बादशाह को भेजा जाता था.

 

अन्य अनेक मुस्लिम नवाबों द्वारा सिर्फ गंगाजल के सेवन का उल्लेख विदेशी यात्रियों ने किया है. इनके द्वारा गंगाजल का सेवन धार्मिक श्रद्धा के कारण नहीं, बल्कि स्वास्थ्यगत  कारणों से किया जाता था. टैवर्नियर ने अपने यात्रा वृत्तान्त में लिखा है, कि उन दिनों हिन्दुओं में विवाह के  अवसर पर भोजन के बाद अतिथियों को गंगाजल पिलाने का चलन था. जो जितना अमीर होता  था, उतना ही अधिक गंगाजल पिलाता था. इस पर काफी खर्च किया जाता था. पेशवाओं के लिए भी कावड़ों में भरकर गंगाजल पूना ले जाया जाता था. मरते समय गंगाजल मुंह में डालने का चलन दक्षिण भारत में भी है.     भारत के विभिन्न अंचलों में मरते हुए व्यक्ति को गंगाजल पिलाना अनिवार्य माना जाता है. मान्यता है, कि इससे उसे सद्गति मिलती है.

 

गंगा के महत्त्व को वे ही लोग जान और महसूस कर सकते हैं, जिन्होंने गंगा को देखा है, इसमें पवित्र डुबकी लगायी है और गंगाजल पीने से अनके शारीरिक विकारों की  समाप्ति का अनुभव किया है. गंगा किनारे स्थिति तीर्थस्थलों पर आने वाले श्रद्धालु पात्रों में जो गंगाजल भरकर ले जाते हैं, उसे किसी ख़ास अवसर पर खोला जाता है. वह ख़ास अवसर आने  में कई वर्ष भी लग जाते हैं. गंगाजली खोलने के लिए बहुत भव्य आयोजन होता है. कन्याएं और सुहागन स्त्रियाँ गंगाजल को सिर पर लेकर चलती हैं. उनके पीछे बड़ी संख्या में लोग भजन-कीर्तन करते हुए चलते हैं. इसके बाद गंगाजली खोली जाती है. इस अवसर पर सामाजिक भोज भी दिया जाता है.