मुनाफिकीनों को मस्जिद में जाने का हक नहीं दिया गया है ..
मुनाफिकीनों को मस्जिद में जाने का हक नहीं दिया गया है ..
पवित्र ज्ञानवापी परिसर के जिस हिस्से को अवैध रूप से मस्जिद प्रचारित कर दिया गया है, उसके स्थलीय सर्वेक्षण का न्यायिक आदेश होने पर उसे बाधित करने के लिये अचानक जो भीड़ स्वयं को मुसलमान कहने वालों की उमड़ पड़ी, उसे दंडित करना शासन का कर्तव्य है। क्योंकि हमारा शासन और प्रशासन इस्लाम के प्रति श्रद्धाभाव रखता है और पैगम्बर मुहम्मद साहब तथा उनकी इल्हामी किताब जो आसमानी किताब है|
कुरान को सुप्रीम कोर्ट ने भी मूल प्रमाण माना है। अतः यह आवश्यक है कि उन सभी लोगों को जो मोमिन होने का दावा करते हैं परन्तु अल्लाताला द्वारा पैगम्बर के जरिये दिखाये गये रास्तों पर नहीं चलते, उन्हें मस्जिद परिसर या मस्जिद घोषित किसी भी परिसर में प्रवेश नहीं करने दिया जाये।
क्योंकि स्वयं कुरान के जरिये अल्लाताला ने कहा है, जो बात कुरान शरीफ के सूरा 9 (सूरा अत-तौबा), आयत 17 और 18 में स्पष्ट कही गई है कि ‘यह मुशरिकों का काम नहीं कि वे अल्लाह की मस्जिदों को आबाद करें और उसके प्रबंधक हों। अल्लाह की मस्जिदों का प्रबंधक और उसे आबाद करने वाला वही हो सकता है जो अल्लाह और कयामत पर ईमान लाये।’
मुशरिक वह है जो नंदी महाराज प्रत्यक्ष विराजमान के परिसर में इबादत का दिखावा करता है। जब वहाँ भगवान शिव की पूजा का कोई लक्षण या संकेत या चिन्ह मिल जाये तब तो वहाँ इबादत करना पूरी तरह मुशरिक का ही काम है। क्योंकि वहाँ एक ही परिसर में अल्लाह का शरीक आप नंदी महाराज को बना रहे हैं।
परन्तु इससे भी बड़ी बात यह है कि मुनाफिकीनों को किसी भी रूप में मस्जिद में प्रवेश का हक नहीं है। मुनाफिकीन वह है जो बाहरी तौर पर स्वयं को मुसलमान कहे परन्तु जो कुरान शरीफ में प्रतिपादित गुनाहों से तौबा न करे।
सहीः मुस्लिम की हदीस 4226, 4231 कहती है कि शराब पीना या किसी भी नशीली वस्तु का सेवन करना या उसका व्यापार करना या उसके व्यापार से मुनाफा कमाना - ये सब हदूद गुनाह हैं। हदूद गुनाह का अर्थ है अल्लाह द्वारा तय की गई हद के बाहद जाकर कोई गुनाह करना।
ऐसे गुनाह अक्षम्य हैं और इनकी सजा मृत्युदंड है। जो खुद को मुस्लिम कहने वाले लोग वहाँ उस दिन इकट्ठे हुये थे, उनमें से बहुत से लोग ऐसे हैं जो किसी न किसी प्रकार का नशा करते हैं या नशे के व्यापार से जुड़े हुये हैं। वे सब मुनाफिकीन हैं और हदूद गुनाह के अपराधी हैं। मुनाफिकीन का मस्जिद में प्रवेश वर्जित है।
इसी प्रकार सहीः मुस्लिम की 5255, 5261 एवं 5268 वीं हदीस है कि अल्लाह की बनाई हुई किसी भी चीज की नकल करना अर्थात मनुष्य, पशु-पक्षी आदि किसी का भी चित्र या मूर्ति बनाना या खुद किसी मनुष्य जैसा या पशु पक्षी जैसा अभिनय करना और अल्लाह की बनाई हुई कायनात की किसी भी चीज की नकल करना हदूद गुनाह है जो अक्षम्य अपराध है।
स्पष्ट रूप से वहाँ ऐसे लोग उपस्थित थे। उन मुनाफिकीन को मस्जिद के भीतर जाने का हक नहीं है। क्योंकि जो लोग खुद को मुसलमान कहते हैं और मुहम्मद साहब के कहे गये कथनों पर और कुरान शरीफ पर नहीं चलते, वे सब मुनाफिकीन हैं और कठोरता पूर्वक दंडनीय हैं।
वस्तुतः तो मुहम्मद साहब ने केवल यह कहा था कि हुक्मरान के विरुद्ध किसी भी तरह का विद्रोह करना हदूद गुनाह है और उसकी सजा मृत्युदंड है। जैसा कि सहीः मुस्लिम 4543 एवं 4568 में बताया गया है। परन्तु बाद में इसकी व्याख्या यह कर दी गई कि केवल मुस्लिम हुक्मरान के विरुद्ध विद्रोह करना हदूद गुनाह है।
स्पष्ट है कि ऐसे लोग जो कुरान शरीफ में बताये गये आचरण से अलग कोई आचरण करते हैं, वे मोमिन कहे जाने के अधिकारी (हकदार) नहीं हैं। इसलिये उन्हें मस्जिद में प्रवेश का अथवा मस्जिद कही जाने वाली किसी भी जगह में प्रवेश का अधिकार (हक) नहीं दिया गया है।
इसलिये उस दिन सच्चे मोमिनों के अतिरिक्त और किसी भी व्यक्ति को स्वयं को मुसलमान कहने के आधार पर यदि ज्ञानवापी परिसर में जाने दिया गया तो यह अल्लाह ताला की, कुरान शरीफ की और पैगम्बर मुहम्मद साहब की तौहीन है और प्रदेश के या वाराणसी के प्रशासकों को इस तौहीन की इजाजत मुनाफिकीनों को नहीं देनी चाहिये थी।