रामलीलाओं ने पोषित किये भारतीय जीवन-संस्कार, सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में महत्वपूर्ण भूमिका.. दिनेश मालवीय

रामलीलाओं ने पोषित किये भारतीय जीवन-संस्कार, सांस्कृतिक विरासत को सहेजने में महत्वपूर्ण भूमिका.. दिनेश मालवीय

 

शारदीय नवरात्रि के दौरान भारत के कोने-कोने में “रामलीला” का आयोजन किया जाता है. अनेक युग बीत जाने पर भी भगवान राम आज भी जितने लोकप्रिय हैं, उतनी ही “रामलीला” भी लोकप्रिय है. अनेक प्रान्तों में स्थानीय देश-काल परिस्थति, उपलब्ध संसाधों, रीति-रिवाजों आदि के कारण रामलीला के बाहरी स्वरूप में थोड़ा परिवर्तन होता है, लेकिन उसके मूलतत्व समान होते हैं. आजकल साधन-संसाधनों के विकास के कारण बड़े शहरों में रामलीला के बहुत भव्य आयोजन होने लगे हैं, लेकिन कस्वों और गांवों में बाहरी तड़कभड़क कम होने पर भी रामलीला की गरीमा और लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आयी है. रामलीला यानी भगवान राम के जीवन और कर्मों का रंगमंचीय प्रदर्शन है. रामलीला ने सदियों से भारत में उच्च जीवन मूल्यों को पोषित करने के साथ ही, जनसाधारण के आचरण को मर्यादित रखने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. पहले लोग पढ़े-लिखे कम होते थे. अधिकतर लोग तो अनपढ़ ही होते थे. वे न तो रामायण या दूसरे शास्त्र पढ़ सकते थे और न  उनकी भाषा को वे पूरी तरह समझ पाते थे. ऎसी स्थिति में रामलीला के माध्यम से आनंद के साथ उन्हें नैतिक आचरण के संदेश बहुत सहज रूप से मिलते रहे हैं. आधुनिक समय में रामानंद सागर ने “रामायण” नाम से जो सीरियल बनाया था, उसकी लोकप्रियता अपार रही. आज तक कोई टीवी सीरियल इतना लोकप्रिय नहीं हुआ. रामायण सीरियल शुरू होने से पहले ही लोग अपने घर के सब काम निपटाकर टीवी के सामने बैठ जाते थे. ऐसे लोगों की संख्या भी बहुत थी, जो रामायण सीरियल शुरू होने से पहले, टीवी पर चन्दन तिलक लगाकर उसकी पूजा करते थे. भारत ही क्यों दुनिया के अनेक देशों में कुछ प्रकारांतर से रामलीला का मंचन आज भी होता है और उसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आयी है.

 

कब और कैसे शुरू हुयी रामलीला :

 

इस अद्भुत लोकनाट्य का प्रारंभ कैसे और कब हुआ, इस विषय पर कुछ लोगों का कहना है, कि जब भगवान् राम वनवास को चले गये, तब अयोध्यावासियों ने उनके जीवन के विभिन्न पक्षों को दर्शाने के लिए रामलीला का मंचन शुरू किया. द्वापर युग में भी एक प्रसंग मिलता है. इसमें श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव यग्य कर रहे थे. यज्ञयग्य के बाद उत्सव हुआ, जिसमें “भाद्र्नामा” नाम के एक नट ने सुंदर नाट्यकला का प्रदर्शन किया. यह जानकारी दैत्यराज वज्रभान की पुरी तक्पहुंची. उन्होंने उस नट की मंडली को बुलवाकर पहला “रम्भाभिसार” (रामायण) का आयोजन करवाया.  बहरहाल आधुनिक युग में रामलीला का मंचन संत तुलसीदास ने बनारस से शुरू किया. सौलहवीं शताब्दी में हुए इस महाकवि ने सबसे पहले काशी में रामलीला का मंचन करवाया. उन्होंने यह आयोजन शरद पूर्णिमा पर वाराणसी के तुलसीघाट पर किया. आजकल यह रामलीला विश्वविख्यात हो गयी है. यह रामलीला 31 दिन चलती है.

 

मंच योजना :

 

दक्षिण पूर्व एशिया मेंरालीला बहुत लोकप्रिय है. इनमें अभिनय करने वाले कलाकारों को लोग सचमुच के चरित्रों कीतरह पूजते हैं. अलग-अलग क्षेत्रोंमें रामलीला के मंचन, साज-सज्जा और मंचीय योजना में कुछ भेद पाए जाते हैं. भारत में कुछ जगहों पर होने वाली रामलीला और उनकी मंडलियाँ बहुत पसिद्ध हैं. चित्रकूट  रामलीला, वाराणसी  बहुत प्रसिद्ध है. इस संस्था की स्थापना 1543 में  एक भक्त वैष्णव नारायाण उर्फ़ मेघा भगत ने की थी. इसमें पूजा पद्यति वैष्णवों के मंदिरों जैसी है. इसमें 22 प्रसंगों को मंचित किया जाता है. हर प्रसंग की एक छवि चुनकर उसकी झांकी करायी जाती है. इस लीला में बहुत कम संवाद होते हैं. शुरू में वाल्मीकि रामायण का पाठ होता था, क्योंकि तब तक “रामचरित मानस” की रचना नहीं हुयी थी. बाद में मेघा भगत संत तुलसीदास के शिष्य बने और मानस का गायन होने लगा. इसमें श्रृंगारपर बहुत जोर दिया जाता है. इस विधा की मुख्य लीलाओंमें राम का दंगा पार करना, शबरी मिलन, गिरि सुवेल की झांकी, राम-रावण युद्ध, भारत मिलाप और राजतिलक मुख्य रूप से शामिल हैं.

 

रामनगर की रामलीला :

 

यह बहुत अद्भुत आयोजन है, जो तीस दिन तक चलता है.  इसमें पूरा रामनगर ही एक मंच बन जाता है. रामनगर गंगा पार बसा एक उपनगर है. सभी कथा-स्थल सुनिश्चित है.. कथा में जहाँ जैसा प्रसंग है, उसीके अनुसार लीला उसी स्थल पर होती है. यदि किसी दिन की कथा में स्थान परिवर्तन होता है, तो पात्रों के साथ सभी दर्शन चलकर दूसरे लीलास्थल पर जाते हैं. इस पूरे आयोजन को लोग बहुत संजीदगी से देखते हैं.उनका अनुशासन अनुकरणीय होता है. उनके लिए लीला में भाग लेने वाले कलाकार मनुष्य नहीं होकर सजीव  चरित्र होते  हैं. बनारस की अधिकतर लीलाएं गोस्वामी तुलसीदास द्वारा प्रकल्पित मंच और आकल्पन के अनुसार होती हैं.

 

भारत के विभिन्न प्रान्तों में  बाहरी स्वरूप में अंतर के साथ रामलीला का मंचन होता है. इनकी मंडलियाँ भगवान्  के लिए जीवन समर्पित करती हैं. इसका मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना नहीं, बल्कि भगवान् की लीलाओं से लोकरंजन और शुभ संस्कारों का प्रसार करना होता है. कथा के विभिन्न प्रसंगों को देखते हुए और उनका रसास्वादन करते हुए, दर्शक कब जीवन के शुभ संदेशों को ग्रहण कर लेते हैं, यह उन्हें स्वयं ही पता नहीं चलता. रामलीला मंडलियों से जुड़े सभी लोग बहुत अनुशासित और पवित्र जीवन जीते हैं. यह उनके लिए रोजी-रोटी का साधन नहीं होकर ईश्वर की  आराधना का रूप होता है. वर्तमान में अयोध्या में बहुत भव्य रामलीला का आयोजन शुरू हो गया है, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत लोकप्रिय हो रहा है. लेकिन छोटे-छोटे गांवों और  कस्बों में रामलीलाओं का आयोजन बहुत साधारण रूप से भले ही होता हो, लेकिन इसकी गरिमा में कोई कमी नहीं होती. भारत में जिन स्थानों की रामलीलाएं बहुत प्रसिद्ध हैं, उनमें कशी, अयोध्या, आगरा, मिथिला, मथुरा, आलीगढ़, एटा, इटावा, कानपुर आदि शामिल हैं. प्रमुख रामलीला शैलियों में ब्रज शैली, काशी शैली, हड़ौती शैली, असमी शैली, कर्नाटक शैली और पर्वतीय शैली प्रमुख हैं.  भगवान् राम भारत ही नहीं अन्य अनेक देशों में पूजे जाते हैं. उनके जीवन और कृत्यों पर वहां भी रामलीला होती हैं. इन देशों में म्यांमार, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया,श्रीलंका, थाईलेण्ड, जावा, बाली रूस, जर्मनी आदि शामिल हैं. इनके मंचन में स्थानीय देशज तत्व शामिल होते हैं. इनकी लोकप्रियता भी भारत से किसी प्रकार कम नहीं है.