व्यंग आलेख श्लाघा-श्रवण और श्लाघा -शृगाल..

संतकवि कबीर दास ने कहा है "निंदक नियरे राखिए" लेकिन आजकल इसका उल्टा हो रहा है।

आजकल हर आदमी अत्यधिक महत्वाकांक्षी हो गया है। वह अपनी प्रशंसा सुनने का इतना आदि हो चुका है कि वह अपनी सत्य आलोचना भी नहीं सुनना चाहता। 

महत्वाकांक्षी में एक गुण जन्मजात होता है- श्लाघा श्रवण। श्लाघा-श्रवण की शुरूआत तो एक शौक के रूप में होती है लेकिन बाद में यह शग़ल नशे का रूप ले लेता है। श्लाघा श्रवण का यह नशा इतना प्रभावी होता है कि साल के 365 दिन, बारह महीने, सप्ताह के सातों दिन और दिन-रात के चौबीस घंटे में से सोलह घंटे वह इस नशे की खुराक लेता रहता है, जिससे रात में 8 घंटे चैन की नींद सोता है। 

जिस दिन उसे यह खुराक नहीं मिलती उस दिन उसे सिरदर्द, बेचैनी घेर लेती है। उस दिन उसे न भूख लगती है और न ही कुछ खाने-पीने का मन करता है। यदि अनिच्छा पूर्वक कुछ खा-पी लेता है तो पचता नहीं। जब पचता नहीं तो पेट साफ नहीं होता। और... पेट साफ नहीं होने से अनेक बीमारियों का शिकार हो जाता है। जिसमें अवसाद सबसे प्रमुख है। 

अतः प्रत्येक महत्वाकांक्षी व्यक्ति जिसमें नेता, अभिनेता, गुंडा, मुंडा, मुस्टंडा कोई भी हो वह यह शौक पूरा करने के लिए श्लाघा-शृगालों की टोली पालने लगा है। राजनीति में तो यह बीमारी महामारी का रूप ले चुकी है। श्लाघा शृगाल उसे जमीन पर पैर भी नहीं रखने देते। 

कुछ लोगों ने तो बाक़ायदा इसे पेशे के रूप में अपना रखा है। ऐसे श्लाघा शृगाल आपको राजनेता से लेकर साहित्यवेत्ता, सरकारी अधिकारी से लेकर ब्रह्मचारी तक और मंत्री से लेकर संतरी तक प्रत्येक क्षेत्र में बहुतायत में मिल जाएँगे। जो अपने नेता या आका के गौरवगान, महिमामंडन में खून-पसीना एक कर देते हैं। 

कुछ लोगों ने तो इसमें महारत हासिल कर रखी है। ये श्लाघा-शृगाल अपनी सेवा के बदले विभिन्न रूपों में मेवा प्राप्त करते रहते हैं। जिसमें स्वयं के अलावा अपने परिजनों, मित्रों और ग्राहकों तक की सभी ज़रूरतों या अभिलाषाओं की सशर्त आपूर्ति शामिल होती है। यानी आम के आम गुठली के भी दाम। 

ये श्लाघा-शृगाल अपने आका को हमेशा पलकों पर बैठाए रहते हैं। वे उसकी परछाई की तरह हरकदम, हरसमय उसके साथ रहते हैं। परछाई तो अँधेरे पीछा छोड़ देती है, लेकिन ये सार्वजनिक स्थानों से लेकर उसके बेडरूम तक अपनी सेवायें अबाध रूप से देते रहते हैं। 

कई बार तो इन सेवादारों से महत्वाकांक्षी व्यक्तियों की गृहस्थी भी बनते-बिगड़ते देखी गई है। श्लाघा-श्रवण का यह शौक आम गृहस्थ व्यक्तियों के अलावा काम, क्रोध, लोभ, मोह से परे साधु-संतों एवं सन्यासियों में भी बहुतायत से देखा गया है। यह श्लाघा शृगाल भी अलग-अलग क्षेत्रों में अलग- अलग नाम से जाने जाते हैं। जिसमें प्रशंसक, चमचे, अनुयायी, शुभचिंतक फैन्स प्रमुख हैं।

इन श्लाघा-शृगालो की सेवादारी से महत्वाकांक्षी व्यक्ति स्वयं को अति महत्वपूर्ण (वीवीआईपी) समझने लगता है। जिससे उसका सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, महत्व बढ़ जाता है। उसे समाज में सेलिब्रिटी का दर्जा प्राप्त हो जाता है। जब व्यक्ति सेलिब्रिटी हो जाता है तो उसके पद, प्रतिष्ठा के साथ-साथ उसकी व्यस्तता, आवभगत और आमदनी भी बढ़ जाती है। लोग उसके स्वागत में पलक-पाँवड़े बिछाए रहते हैं। उसके असंख्य प्रशंसक हो जाते हैं। उसके पंख (फेन्स) लग जाते हैं। 

कभी -कभी वह स्वनिर्मित प्रतिष्ठा के बल पर आसमान में उड़ने लगता है। बस, यहीं से उसके पराभव के अवसर बढ़ जाते हैं। अतः आप महत्वाकांक्षी अवश्य बनें। लेकिन उड़ान से पहले अपने पंखों और हौसलों को परखने का ध्यान रखें।

कमल किशोर दुबे