सुकून भरी और कष्टभरी मौतों का क्या रहस्य है?
क्या इसका पाप पुण्य से कोई संबंध है?
हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि हर व्यक्ति को पापों का दंड ज़रूर भुगतना पड़ता है| पाप पुण्य के रहस्य को हम भले ही समझ नहीं पायें लेकिन जीवन चक्र पूर्ण कर मृत्यु के आगोश में जाने के पहले, हर पर्सन को पाप पुण्य के अपने कर्म भुगतना ज़रूर पड़ता है| हम ऐसी भी मौतें देखते हैं जिसमें जगत में भौतिक रूप से सक्सेसफुल माने जाने वाले लोगों को सालों तक कोमा में रहना पड़ता है| भारत में तो अनेक ऐसी डेथ देखी गई हैं जहां सफलतम इंसान मृत्यु से पहले कष्टकारी life बिताता है|
कोमा में चला जाना क्या कहा जाएगा?
व्यक्ति जीवित है, लेकिन जीवित रहते हुए मौत के आगोश में बैठा होना सवाल पैदा करता है|
कोई सुकून भरी मौत प्राप्त करता है और किसी को कष्टकारी मौत क्यों मिलती है?
ऐसा सवाल हर व्यक्ति के मन में उठता होगा, लेकिन इसका उत्तर बहुत गूढ़ होता है|
भारतीय शास्त्रों के मुताबिक 84 लाख योनियों में जन्म मृत्यु का चक्र लगातार चलता है| पृथ्वी पर भौतिक सुख और दुख की परिस्थितियों को ही जीवन की सफलता और असफलता के तौर पर देखा जाता है| इसे प्राणी के कर्मफल के रूप में माना जाता है| पृथ्वी पर अमीर, गरीब, स्वस्थ, अस्वस्थ सभी प्रकार के लोग रहते हैं| हर परिवार में जीवन चक्र के अनुरूप नया जीवन पैदा होता है|
भौतिक रूप से देखा जाए तो कोई शिशु अमीर घर में पैदा होता है, तो कोई गरीब के घर| अभी तो बच्चा पैदा ही हुआ है|
इस जीवन में उसने कोई कर्म नहीं किया है| फिर भी उसे अलग अलग परिस्थितियां क्यों मिली?
इससे पहली नज़र में यही समझ आता है कि जन्म लेने वाला बच्चे ने अपने पूर्व जन्म(पास्ट लाइफ) के कर्म और भाग्य के साथ नया जन्म लिया है| अभी तक इस सीक्रेट के बारे में कोई साफ़ तौर से कुछ नहीं बता सका है| एक बच्चा करोड़पति परिवार में पैदा होता है और दूसरा भिखारी के घर|
इसमें पैदा होने वाली आत्मा की क्या भूमिका है?
डेथ के समय भी इसी तरह का सवाल पैदा होता है| एक प्राणी अचानक हुई मौत प्राप्त करता है और दूसरा प्राणी सालों तकलीफ भोगने के बाद मृत्यु को प्राप्त करता है| इसमें एक आश्चर्यजनक तथ्य और देखने में आता है कि जीवन में अच्छे कर्म के कारण भौतिक रूप से सफल व्यक्ति भी मृत्यु के मामले में असफल हो जाते हैं| उन्हें बहुत कष्टकारी मौत प्राप्त होती है|
इसका एक मतलब ये हुआ कि भौतिक रूप से जो सफल दिख रहा है वह मन से, वचन से और कर्म से ऐसा कुछ करता है जो ईश्वरीय विधान में उपयुक्त नहीं होता|
हमारे शास्त्रों में 10 पुण्य और 10 पाप बताए गए हैं| पुण्यों में “धृति” मतलब हर परिस्थिति में धैर्य रखना, सबसे बड़ा पुण्य है|
बदला ना लेना, क्रोध ना करना, उद्दंड न होना, दूसरों की वस्तु हथियाने का विचार न करना, आहार,शरीर और इंद्रियों की शुद्धता, धर्म अर्थ काम और मोक्ष का ज्ञान, झूठ और अहितकारी वचन न बोलने को, पुण्यकर्म माना गया है|
इसी तरह दूसरों के धन हड़पने की इच्छा, निषिद्ध कर्म करना, देह को ही सब कुछ समझना, कठोर वचन बोलना, झूठ बोलना, निंदा करना, चोरी करना, किसी को भी तन मन कर्म से दुखी करना और पर स्त्री या पुरुष से संबंध बनाने को पाप की श्रेणी में माना गया है|
आज प्राणी से सबसे बड़ी भूल ये हो रही है कि वह कर्म से तो पाप नहीं करने की कोशिश करता है, लेकिन मन और वचन से, हर दिन ऐसे पाप करता रहता है, जिसके बारे में उसे आभास ही नहीं होता| हमें दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन मन से किया हुआ पाप, सबसे बड़ा पाप होता है, जो लोग मन से दूसरों को बद्दुआ देते हैं, दूसरों के साथ दुर्व्यवहार और उनकी धन-संपत्ति हडपने का भाव रखते हैं, उन्हें यह आभास नहीं होता कि उन्होंने कोई पाप किया है| उन्होंने मन में सोचा ही तो है, कुछ किया तो नहीं लेकिन सोचने से ही पाप हो गया और उसका पनिशमेंट भुगतना ही पड़ेगा|
मनुष्य आज ऐसी ही मानसिकता के कारण कष्टकारी मौत पाता है| पर स्त्री के बारे में मन में कुविचार को व्यक्ति खुद पाप नहीं मानता, लेकिन उसके सोचने भर से उस पर पाप चढ़ गया| मन विचार की शुद्धता को इसीलिए सबसे अहम माना जाता है| भौतिक जीवन को त्याग कर जो लोग साधु संत बन कर ईश्वर की आराधना में लगे रहते हैं, वह भौतिक रूप से तो कोई पाप कर्म नहीं करते, लेकिन मानसिक स्थिति जो दिखती नहीं होती, उसके बारे में तो वही व्यक्ति समझ सकता है|
वचन से भी जो पाप हम करते हैं, उसके प्रति हम बहुत गंभीर नहीं होते, कटु वचन बोल कर, दूसरे को कष्ट पहुंचाना, झूठ बोलना, किसी का मजाक उड़ाना, किसी को बेइज्जत करना, गाली गलौज करना, वचन से किए जाने वाले पाप हैं|
इसे लोग पाप के रूप में शायद मानते ही नहीं हैं| इसलिए आये दिन वचन से ऐसी परिस्थितियां निर्मित करते हैं जो उन्हें पाप का भागी बनाती हैं| आपको भले ही यह पाप नहीं लगे लेकिन यह ईश्वरीय विधान में बड़े पाप के रूप में माने जाते हैं|
कर्म का पाप तो प्राणी को स्वयं दिखाई पड़ता है| कोई ऐसा कार्य करना जो किसी को हानि पहुंचाता है| चोरी करना, मारपीट करना, पाप की श्रेणी में आते हैं| जो भी ऐसा पाप करता है वह उसे दिखाई पड़ता है, इसके निदान के लिए तो वह कई बार, तरह तरह के प्रयास भी करता है| लेकिन मन वचन से किए जाने वाले पाप के प्रति सजग नहीं रहता| उसका हिसाब किताब तो जीवन के अंत में, मृत्यु के समय ही समझ में आता है|
अब वही प्रश्न कि कोई अच्छी मौत पाता है| अच्छी मौत से मतलब बिना किसी कष्ट के मृत्यु के आगोश में जाना|
मौत तो सभी की होना है| कई उदाहरण हमने देखे हैं और आपने भी देखे और सुने होंगे| जब कोई व्यक्ति बैठे बैठे एक सेकंड में मृत्यु को प्राप्त हो जाता है| कोई ईश्वर के सामने दंडवत करते हुए मृत हो जाता है| ऐसी मौतों को ही अच्छी मौत कहा जाता है| जीवन के अंत में मृत्यु की प्रतीक्षा में बिस्तर पर कष्टकारी जीवन गुजारना मृत्यु के ही समान होता है| दशकों तक कोमा में रहने के बाद मौत जिनको आती है| उनकी मौत को सुकून भरी मौत तो नहीं कहा जा सकता|
जीवन में मन वचन और कर्म से पाप कर्मों से बचना जरूरी होता है| कर्म के प्रति तो व्यक्ति सचेत होता है| लेकिन मन और वचन के पाप को महसूस नहीं कर पाता और यही पाप उसे कष्टकारी मौत के रूप में भुगतना पड़ता है| बिना भुगते कोई भी व्यक्ति इस दुनिया से नहीं जा सकता| इसलिए हमें हमेशा मन वचन और कर्म से पाप से बचना चाहिए| आज कितने भी सफल हों लेकिन आपको सफल तभी माना जाएगा जब मौत भी सुकून भरी मिले| यह कहावत ऐसे ही नहीं बनी है कि “अंत भला तो सब भला” |