सच्चा दोस्त कौन…रामायण क्या कहती है...दिनेश मालवीय

सच्चा दोस्त कौन…रामायण क्या कहती है...दिनेश मालवीय   

दुनिया में दोस्ती के जज्बे को बहुत ज्यादा तरजीह दी गयी है. कहा जाता है कि जिस शख्स का अगर एक भी सच्चा दोस्त हो, तो वो दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान होता है. लोग कई-कई दोस्त होने का दम भरते हैं. लेकिन वास्तव में जिसे दोस्ती कहते हैं, वह बहुत अलग ही बात है. दोस्तों की बेवफाई को लेकर भी जमकर शायरी हुयी है. 

श्रीरामचरितमानस को आदर्श जीवन का सर्वश्रेष्ठ सन्दर्भ ग्रन्थ माना जाता है. इसमें हर एक सम्बन्ध को इतने आदर्श रूप में परिभाषित किया गया है कि उसे ultimate के सिवा कुछ नहीं किया जा सकता. आइये देखते हैं कि इसमें दोस्ती को लेकर क्या कहा गया है. मानस के किष्किंधा काण्ड में श्री राम और सुग्रीव की मित्रता का प्रसंग सबसे महत्वपूर्ण प्रसंगों में शामिल है. इसमें श्री राम ने अच्छे और बुरे मित्र के बारे में जो कहा है वह सर्वदा और सर्वकालीन सच है. 

भगवान कहते हैं कि- जे न मित्र दुःख होहिं दुखारी तिन्हहिं विलोकतपातक भारी निज दुख गिरी सम राज करि जाना मित्रक दुःख राज मेरु समाना जिन्ह कें असी मति सहज न आई ते सठ कत हठी करत मिताई कुपथ निवारि सुपंथ चालावा गुण प्रगटे अवगुनहिं दुरावा देत लेत मन संक न धरई बल अनुमान सदा हित करहिं विपत काल कर सतगुन नेहा श्रुति कह संत मित्र गुण एहा. आगें कह मृदु बचन बनाई पाछें अनहित मन कुटिलाई जा कर चित अहि गति सैम भाई अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई 

इसका अर्थ यह है कि जो अपने मित्र के दुःख में दुखी नहीं होता, उस व्यक्ति को देखने में तक पाप लगता है. सच्चा मित्र अपने पहाड़ जैसे दुःख को धूल के कण के समान और मित्र के धूल कण के समान दुःख को पहाड़ के समान मानता है. 

जिन लोगों की ऐसी सहज बुद्धि नहीं है, वे लोग क्या मित्रता करेंगे? सच्चा मित्र सदा अपने मित्र को बुराई के मार्ग से हटाकर अच्छे रास्ते पर ले जाता है. वह दूसरों के सामने मित्र के गुणों को उजागर करता है और दोषों को छुपाता है. मित्र को कुछ देते और लेते हुए मन में शंका नहीं रखता और अपनी क्षमता के अनुसार सदा उसका हित करता है. 

विपत्ति के समय मित्र पर सौ गुना स्नेह करता है. जो मित्र सामने मीठी बात कर पीछे मन में कुटिलता रखता है और जिसके चित्त की गति सर्प चाल की तरह टेढ़ी है, उसका परित्याग कर देने में ही भलाई है. चाणक्य नीति में कहा गया है की परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम् । वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम् ।। अर्थात जो परोक्ष में काम बिगाड़े और सामने प्रिय बोले ऐसे मित्र का त्याग कर दें. वह विष से भरा हुआ घड़ा है, जिसके मुख पर देखने पर मात्र का दूध है| 

एक बार मुझे एक संत ने कहा था कि जो भी व्यक्ति तुम्हारे सामने तुम्हारी प्रशंसा करे, उससे एकदम सावधान हो जाना. निन्यानवे प्रतिशत सम्भावना यही होगी की वह किसी लाभ की आशा में प्रशंसा कर रहा होगा. एकाध कोई ऐसा हो सकता है जो तुम्हारी सच्ची प्रशंसा कर रहा हो. लेकिन उसमें भी यह खतरा होता है की इससे हमारे मन में अहंकार आ सकता है.

कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो हमारे किसी गुण को प्रोत्साहित करने के लिए हमारी सच्ची प्रशंसा करते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या नगण्य होती है. सच्चा मित्र आपके मुख पर अकेले में आपकी किसी बुराई की कड़ी आलोचना करता है ताकि आप उसे दूर कर सकें. लेकिन आपकी किसी बुराई को दूसरों के सामने कभी नहीं कहता. वह मित्र की निंदा कभी नहीं सुनता और निंदा करने वाले का मुंह बंद कर देता है. 

आजकल दुर्भाग्य से ऐसा वातावरण बन गया है कि हर कोई सिर्फ अपनी तारीफ़ सुनना चाहता है और तारीफ़ करने वालों को अपना हितैषी मानता है. ऊपर से कहता है कि मुझे खुशामद पसंद नहीं है, लेकिन खुशामद बहुत पसंद करता है. इस कमजोरी का लाभ चालाक और धूर्त लोग खूब लाभ उठाते हैं.

इसके विपरीत सच्चे प्रशंसक बहुत संकोची होते हैं. वे मुंह पर प्रशंसा नहीं कर पाते, लेकिन आपके गुणों की मन ही मन बहुत प्रशंसा करते हैं. हालाकि व्यवहारिक जगत में यह सब करना इतना आसान नहीं होता और अनेक प्रकार के समझोते जानबूझकर भी करने पड़ते हैं. 

लेकिन फिर भी रामायण के इस प्रसंग में श्रीराम द्वारा कही गयीं इन बातों को यथासंभव जीवन में उपयोग में लाने से हम अनेक बुराइयों और नकली दोस्तों से बाख सकते हैं .