Published By:दिनेश मालवीय

वाणी ही असली परिचय -दिनेश मालवीय

वाणी ही असली परिचय -दिनेश मालवीय

कहते हैं, किसी व्यक्ति का सही उसकी वाणी या भाषा परिचय उसकी वाणी या कुछ अलग अर्थों में उसकी भाषा से मिलता है. यानी कि वह क्या बोलता है और कैसे बोलता है. इस सम्बन्ध में कवियों और शायरों ने बहुत बातें लिखी हैं. दरअसल व्यक्ति की वाणी और भाषा के पीछे न केवल उसका पूरा व्यक्तित्व, बल्कि उसी परवरिश, उसके संस्कार और उसकी संगति का परिचय भी छुपा होता है. इस सन्दर्भ में रामायण का एक बहुत सुंदर प्रसंग याद आता है. भगवान श्रीराम सीता के वियोग में जब वन-वन भटक रहे थे, तब ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमानजी ब्राह्मण वेश में उनसे आकर मिलते हैं. हनुमानजी उनसे जो वार्तालाप करते हैं, उससे भगवान इतने प्रभावित हो जाते हैं कि वह अपने भाई लक्ष्मण से कहते हैं कि-“ भाई! इस व्यक्ति ने इतनी सारी बातें कीं, लेकिन उसकी वाणी से एक भी शब्द तो क्या अक्षर का भी उच्चारण अशुद्ध नहीं हुआ. उसने अवश्य ही सामवेद और अन्य ग्रंथों का का गहन अनुशीलन किया है. इसके बिना यह संभव ही नहीं है.” इस प्रकार के और भी अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिनमें किसी व्यक्ति द्वारा अपनी वाणी और वाक्चातुर्य से अनेक कठिन से कठिन कार्यों को संभव बना दिया गया. यहाँ वाक्चातुर्य का अर्थ सकारात्मक है. अनेक बार बाक्चातुर्य की आड़ में धूर्तता और पाखण्ड छुपा होता है. कहावत भी है कि “लंबा टीका माधुरी वाणी, दगाबाज की यही निशानी”. हालाकि यह अनिवार्य नहीं है कि जिस व्यक्ति ने लंबा टीका लगाया हो और मीठा बोलता हो, वह धूर्त या पाखण्डी होगा ही.

 

यह केवल धूर्त लोगों की एक विशेषता की ओर इशारा है. कौवे और कोयल का उदाहरण भी दिया जाता है. देखने में दोनों एक जैसे लगते हैं, लेकिन जैसे ही वे बोलते हैं, तो उनका परिचय स्पष्ट हो जाता है. कहा जाता है कि कोई मूर्ख जब तक चुप रहता है, तब तक उसकी मूर्खता छुपी रहती है, लेकिन जैसे ही वह बोलता है, वह उजागर हो जाती है. मैं यहाँ उस वाणी की बात कर रहा हूँ, जिसे प्राप्त करने के लिए प्रयास नहीं करना पड़ता. यदि आप निरंतर पवित्र मन से शास्त्रों का अध्ययन, जप, चिंतन और मनन करें तो आपकी वाणी में आकर्षण सहज ही आ जाएगा. यदि आप झूठ नहीं बोलते और सदा सत्य बोलने का प्रयास करते हैं, तो ऎसी स्थिति में भी आपकी वाणी में ऐसा सहज माधुर्य आ जाएगा, जिससे कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा. लेखन में भी भाषा की शुद्धि और माधुर्य का बहुत महत्त्व है. प्रकारांतर से लेखन भी वाणी के अंतर्गत आता है. कहते हैं कि यदि किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व, सोच, भाषाज्ञान, व्याकरण ज्ञान और इसकी गहराई को समझना है, तो उससे एक पेराग्राप लिखवा लिया जाए. स्कूल और कॉलेजों में जो गद्य लेखन की परीक्षा ली जाती है, उसका उद्देश्य भी यही होता है.

 

ऐसा भी होता है कि कई लोग बहुत ज्ञानी होते हैं और उन्हें सम्बंधित विषय का बहुत अच्छी जानकारी भी होती है, लेकिन वे उसे वाणी से समुचित रूप से अभिव्यक्त नहीं कर पाते. कई लोग अपने विषय को बहुत अच्छा जानते हैं और उसे वाणी से बहुत बेहतर तरीके से समझा भी देते हैं, लेकिन ठीक से लिख नहीं पाते. लेकिन वाणी की जिस शुद्धता की बात की जा रही है वह इन दोनों के बीच की बात है. इस विषय में एक और बात ध्यान देने की है कि सर्फ वाक्यज्ञान पर्याप्त नहीं होता. तुलसीदास ने “विनयपत्रिका” लिखा है कि –“वाक्यज्ञान अत्यंत निपुण भाव पार न पावे कोई. निसि गृह मध्य दीप की बातन तम निवृति नहीं होई”. अर्थात कोई सिर्फ वाक्यज्ञान से भवसागर से पार नहीं हो सकता, जैसे कि रात को घर में दीपक की बात करके अँधेरा दूर नहीं होता. कुल मिलाकर बात यह है कि आपकी वाणी आपका सही परिचय होती है. लेकिन इसमें बनावट नहीं होनी चाहिए. यह वास्तविक होनी चाहिए. यह ज़रूर है कि आप अभ्यास से इसे अधिक शुद्ध और प्रभावी बना सकते हैं. लेकिन इसका मकसद किसीको मीठी और बनावटी शुद्ध वाणी से ठगने या बेबकूफ बनाना नहीं होना चाहिए.

 

 

वाणी को शुद्ध और प्रभावी बनाने का एक बहत अच्छा उपाय यह बताया गया है कि अध्ययन के साथ व्यक्ति को मौन का संवरण करना चाहिए. मौन का मतलब चुप रहना या नहीं बोलना नहीं होता. इसका मतलब है कि उतना ही बोलो जितनी आवश्यकता है. ऐसा बोलो कि लोग आपके बोलने का इन्तजार करें; ऐसा नहीं कि लोग आपके चुप होने की प्रतीक्षा करें या आपसे चुप होने के लिए कह ही दें. इस विषय में स्वामी विवेकानंद की छोटी सी पुस्तिका The Power of Silence यानी मौन की शक्ति को जरूर पढ़ना चाहिए. आप स्वयं को जितना शुद्ध और निष्कलुष करेंगे, जितना अध्ययन और अभ्यास करेंगे, आपकी वाणी में उतनी ही शुद्धता और माधुर्य आ जायेगा. आपकी बात को सुनने की लोग प्रतीक्षा करेंगे. आप जो भी कहेंगे, वह सच होकर रहेगा. आपकी बात का लोग विशवास करेंगे. आपसे कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा. यहाँ तक कि आपके विरोधी और प्रतिद्वंद्वी भी आपकी मन ही मन सराहना किये बिना नहीं रहेंगे. लिहाजा, आइये हम अपनी वाणी को अपना सही परिचय देने योग्य अवश्य बनाने का प्रयास करें.      

 

 

      

 

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