आयुर्वेद (Ayurveda) एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है जो शरीर, मन, और आत्मा के समत्व और स्वास्थ्य को समर्थन करने के लिए विज्ञान, योग, औषधि, प्राणायाम और आहार का उपयोग करती है। आयुर्वेद शब्द संस्कृत भाषा का एक संयोजन है, जिसमें "आयु" शब्द जीवन को और "वेद" शब्द ज्ञान को दर्शाता है।
आयुर्वेद के अनुसार, मनुष्य को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य की पूर्णता के लिए संतुलित रहना चाहिए। यह प्रकृति के आधार पर अलग-अलग प्रकृतियों (दोष) को व्यक्ति के स्वास्थ्य को नियंत्रित करने के लिए बताती है। आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के रूप में मान्यता प्राप्त है और भारतीय संघीय संघ द्वारा मान्यता प्राप्त होती है।
आयुर्वेद के अनुसार, रोग और बीमारियों का कारण शरीर, मन और आत्मा के दोषों (वात, पित्त, कफ) का असंतुलन होता है। इसलिए, इस चिकित्सा पद्धति का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को दोषों को बनाए रखने और उन्हें संतुलित करने के लिए प्राकृतिक उपायों का प्रयोग करके स्वास्थ्य सुधारना है। इसमें जड़ी बूटियों, पौधों, मिश्रणों, आहार, और विशेष चिकित्सा तकनीकों का उपयोग होता है।
महर्षि वाग्भट (Maharshi Vagbhatt) एक प्रमुख आयुर्वेदिक वैद्य और चिकित्सक थे, जिन्होंने अपने जीवनकाल में 135 साल तक निरोगी रहने के बारे में अपने ग्रंथों में विवरण दिया है। उन्होंने आयुर्वेद के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है। यहां महर्षि वाग्भट के 10 मुख्य सूत्रों का वर्णन है:
1. समदोषः समाग्निश्च समधातु मलःक्रियाः।
यह सूत्र शरीर के त्रिदोषों (वात, पित्त, कफ) का संतुलन, अग्नि (जठराग्नि) का समत्व और मल क्रियाओं के संतुलन को विशेष महत्व देता है।
2. विशेष्यो विशेषणं च रोगीतु परिकल्प्यते।
यह सूत्र रोगी के विशेष स्थान (व्यक्ति, शरीर, मन) और विशेषण (लक्षण, रूप, प्रकृति) को परिकल्पित करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
3. स्निग्धस्यो लघुशीतस्य विर्यस्योपरि वर्धनम्।
यह सूत्र स्निग्ध औषधि के वीर्य को बढ़ाने के लिए लघु शीत द्रव्यों का उपयोग करने पर ध्यान केंद्रित करता है।
4. आहार विधिविशेषाद्धि पच्यते यत्रायुषः।
यह सूत्र सही आहार विधि का पालन करने पर जीवनकाल (आयु) का वृद्धि होती है जहां आहार को पचाने की क्षमता होती है।
5. सत्त्वात्मको आहारः सात्म्यं विधेयते यदृच्छया।
यह सूत्र सत्त्वपोषण (आत्मा) को विशेष महत्व देता है और शुद्ध आहार को सम्मानित करता है जिसके प्राकृतिक तत्व सात्विक होते हैं।
6. योगाभ्यासश्च व्यायामः स्वप्न स्नानं जलापनम्।
यह सूत्र योगाभ्यास, व्यायाम, निद्रा, स्नान और जल पान के महत्व को बताता है जो स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं।
7. अतुरस्य विकारेन्द्रियदृग्दर्शनम्।
यह सूत्र विकार (रोग) के द्वारा इन्द्रियों के दर्शन (अस्थायी प्रतिबिंब) का वर्णन करता है।
8. अनुवासनं चैवातुर्वं वामनं कर्म शोधनम्।
यह सूत्र प्राणायाम को अनुवासन (अंतरिक्ष श्वास) के माध्यम से, वामन (उत्कर्ष) के माध्यम से कर्म शुद्धि का वर्णन करता है।
9. स्निग्धोऽश्लेषान्न गर्भाध्यान्न वयह सूत्र।
स्निग्ध औषधि को अश्लेष (अंतर्निहित) अन्न के साथ लेने और गर्भाधान के बाद आहार को नियमित करने का वर्णन करता है।
10. स्नेहो गुरुः शरीरेषु धीरो धृतिमान योगी।
यह सूत्र स्नेह (मालिश और तेल आवेदन) को शरीरों में गुरु (महत्वपूर्ण) बनाने, धीर (शांति) और धृतिमान (स्थिर) बनाने के लिए योगी (साधक) को प्रेरित करता है।
ये सूत्र महर्षि वाग्भट की ग्रंथ "अष्टांग हृदय" में विवरणित हैं और व्यक्ति के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए महत्वपूर्ण है। इन सूत्रों का पालन करके, व्यक्ति अपने स्वास्थ्य को संतुलित रख सकता है और दीर्घायु की प्राप्ति कर सकता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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