शास्त्रों में जीव की 84 लाख योनियां बताई है जिसमें जीव भ्रमण करता रहता है। ये 84 लाख योनियां निम्न प्रकार की हैं।
04 - लाख मनुष्य,
09 - लाख जलचर,
10 - लाख पक्षी,
30 - लाख चार पैर वाले पशु,
11 - लाख कीट पतंग,
20 - लाख स्थावर वृक्ष आदि,
कुल - 84 लाख।
संतवाणी में कुछ भिन्नता है परंतु इन्होंने भी संख्या 84 लाख बताई है।
नवलाख जल के जीव बखाना, पक्षीगण दसलक्ष प्रमाना।
किरमि कीट एकादश लाखा, तेईस लाख चतुष्पद भाखा।।
सत्ताईस लाख स्थावर जानो, चार लाख मानुष तन मानो।
अन्य योनि निश्चय नहीं गावा, मुक्ति द्वार मानुष तन पावा।।
निम्न वाणी में महामति प्राणनाथ जी ने भी 84 लाख योनियों की बात कही है तथा इन चौरासी लाख योनियों को चार खंडों में बांटा गया है।
"लाख चौरासी जीव जन्त, ए बांधे सब निरवाण।
थिर चर आद अनाद लो, ए भरी चारों खान।।" (किरन्तन -27-13)
ये चार प्रकार के खंड निम्न प्रकार की हैं -
1- स्वेदज (पसीने से उत्पन्न होने वाले जीव)।
2- उद्भज (जमीन फोड़कर उत्पन्न होने वाले जीव)।
3- अंडज (अंडे से उत्पन्न होने वाले जीव)।
4- जरायुज (जेर से उत्पन्न होने वाले जीव)।
कबीर जी ने जीव को तत्वों के अनुसार पांच श्रेणियों में बांटा है -
1- जल तत्व से - स्थावर
जैसे - पेड़, पौधे।
2- वायु तथा अग्नि से - उखमज
जैसे - मक्खी, मच्छर।
3- वायु, अग्नि, तथा जल से - अंडज
जैसे - अंडे से उत्पन्न होने वाले।
4- वायु, अग्नि, जल, तथा मिट्टी से -
पिंडज - जैसे - बच्चा देने वाले।
5- वायु, अग्नि, जल, मिट्टी तथा
आकाश से- जैसे - मनुष्य।
तमोगुण से पंचभूत निम्न क्रम से उत्पन्न हुए हैं --
1- आकाश - जब पंचमहाभूतओं के कारण रूप तामस अहंकार में विकार उत्पन्न हुआ, तब उससे आकाश की उत्पत्ति हुई। आकाश की तन्मात्रा और गुण शब्द है। इस शब्द के द्वारा ही दृष्टा एवं दृश्य का बोध होता है।
2- वायु - जब आकाश में विकार हुआ तब उससे वायु की उत्पत्ति हुई। उसका गुण स्पर्श है। अपने कारण का गुण आ जाने पर यह शब्द वाला भी है। इन्द्रियों में स्फूर्ति, शरीर में जीवनी शक्ति, ओज और बल इसी के रूप हैं।
3 - तेज - काल कर्म और स्वभाव से वायु में भी विकार हुआ। उससे तेज की उत्पत्ति हुई। उसका प्रधान गुण रूप है, साथ ही इसके कारण आकाश और वायु के गुण शब्द एवं स्पर्श भी इसमें है।
4 - जल - तेज के विकार से जल की उत्पत्ति हुई इसका गुण है - रस; कारण तत्वों के गुण शब्द, स्पर्श और रूप भी इसमें है।
5 - पृथ्वी - जल के विकार से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई, इसका गुण है गंध। कारण के गुण कार्य में आते हैं इस न्याय से शब्द, स्पर्श, रूप और रस- ये चारों गुण भी इसमें विद्यमान हैं।
बजरंग लाल शर्मा
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