 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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घर और दफ्तर के बीच कोआर्डिनेशन इतना आसान नहीं है लेकिन मुश्किल भी नहीं है यदि वूमेन सोच समझकर रणनीति के साथ आगे बढ़े तो घर और दफ्तर दोनों को ही संभाला जा सकता है।
दोहरी जिम्मेदारियों में बंधी आज की नारी के सामने यह अहम सवाल है कि यहां पर व दफ्तर के बीच कैसे सामंजस्य बिठाए यह बहुत आसान नहीं तो इतना मुश्किल भी नहीं है। यह बड़ी सूझबूझ का काम है, तभी तो महिलाएं, अकसर मात खा जाती है और तनाव की शिकार हो जाती है।
यदि सूझबूझ से निपटा जाए, तो तनाव कम किए जा सकते हैं, जैसे दफ्तर में अपने सहकर्मियों से मित्रवत व्यवहार रखें। उनसे ना तो अलग-थलग रहे और ना ही खुद को अलग-थलग समझे। उनके बोलने चालने का हमेशा गलत अर्थ ना लगाएं। सोचिए, दिन का बड़ा हिस्सा उन्हीं लोगों के बीच व्यतीत होता है, सहकर्मियों से मदद लेने या उनकी मदद करने में कोई हर्ज नहीं है।
अपनी छोटी-मोटी परेशानियां उनके ही साथ तो बांटते हैं. फिर बोलने चालने में क्या हर्ज है? सहकर्मी कई तरह से मदद करते हैं। उनसे मदद लेने या उनकी मदद करने में कोई बुराई नहीं है। हल्के- फुल्के माहौल में काम करने से तनाव हावी नहीं हो पाता।
हम प्रसन्नचित्त रह कर काम करते हैं, तो काम भी ज्यादा कर सकते हैं। साथ ही घर पहुंच कर तरोताजा रह कर घर के काम निपटा सकते हैं। घर में पति व बच्चों के साथ भी अगर दोस्ताना व्यवहार रखें, तो बात ही कुछ और होगी। उन्हें घर के कामों में आपको सहयोग देने को प्रेरित करें। इससे बातचीत करते हुए काम कैसे निपट गया, पता ही नहीं चलेगा।
वो काम के बोझ से दबी कामकाजी महिलाओं के लिए यह अचूक नुस्खा है न? थोड़ी सी सूझबूझ, थोड़ा सा सब और थोड़ा सा प्रयास !
 
 
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