 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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जी हां, हर जगह की अपनी कहानी और अद्भुत भव्यता है और इसका एक हिस्सा है 'विरुपाक्ष मंदिर'। यह मंदिर अपने आप में एक अनूठा मंदिर है।
आज हम आपको इस मंदिर के बारे में बताएंगे जो अपने आप में कई तथ्य समेटे हुए है। आपको बता दें कि यह मंदिर एक रहस्यमय मंदिर है जो भारत के प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है।
ये कर्नाटक के हम्पी में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि हम्पी रामायण काल का 'किष्किंधा' है और इस मंदिर में भगवान शिव के विरुपाक्ष रूप की पूजा की जाती है।
यह प्राचीन मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल भी है। इस मंदिर की कई विशेषताएं हैं और इसके साथ एक रहस्य भी जुड़ा हुआ है। अंग्रेजों ने भी इस मंदिर के रहस्य का पता लगाने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हुए।
भगवान विरुपाक्ष और उनकी पत्नी देवी पंपा को समर्पित इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां का शिवलिंग दक्षिण की ओर है। यह एक धार्मिक मान्यता है कि रावण ने भगवान राम के साथ युद्ध में जीत के लिए भगवान शिव की पूजा की थी। इसके बाद जब भगवान शंकर प्रकट हुए तो रावण ने उनसे लंका में स्थापित करने के लिए एक शिवलिंग माँगा।
रावण के बार-बार अनुरोध करने पर भगवान शिव मान गए, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि लंका ले जाते समय शिवलिंग जमीन पर नहीं रखा जाएगा। रावण शिवलिंग को लेकर लंका जा रहा था, लेकिन रास्ते में उसके वजन के कारण शिवलिंग को जमीन पर रख दिया। तब से यह शिवलिंग यहां है और हजारों कोशिशों के बाद भी इसे हिलाया नहीं जा सका।
उल्लेखनीय है कि विरुपाक्ष मंदिर की दीवारों पर इस घटना के चित्र बनाए गए हैं और यह दिखाया गया है कि रावण शंकर से शिवलिंग को फिर से उठाने की प्रार्थना कर रहा है, लेकिन भगवान शिव मना कर देते हैं।
यह भी माना जाता है कि यह भगवान विष्णु का निवास था, लेकिन उन्होंने इस स्थान को रहने के लिए बहुत बड़ा माना और वापस क्षीरसागर चले गए।
वहीं स्थानीय मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर करीब 500 साल पुराना बताया जाता है। द्रविड़ स्थापत्य शैली में बने इस मंदिर का गुम्मच 500 साल पहले बनाया गया था, जो 50 मीटर ऊंचा है।
भगवान शिव और देवी पम्पा के अलावा यहां कई छोटे-छोटे मंदिर हैं। विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण विक्रमादित्य की रानी लोकमहादेवी ने करवाया था। इस मंदिर को 'पम्पावती' मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
आपको बता दें कि इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि इसके कुछ खंभों से संगीत बजता है। इसलिए इन्हें 'म्यूजिक कॉलम' भी कहा जाता है। इस विषय के बारे में प्रचलित किवदंती यह है कि अंग्रेजों ने यह पता लगाने की कोशिश की, कि स्तंभों से संगीत कैसे निकला। इसके लिए उसने मंदिर के खंभों को तोड़ डाला। तो उसे आश्चर्य हुआ, क्योंकि स्तम्भ भीतर से खोखले थे और कुछ भी नहीं था। यह रहस्य आज तक नहीं खोजा जा सका है|
वहीं खास बात यह है कि तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी तट पर हाम कूट पहाड़ी की तलहटी में बने इस मंदिर का गोपुरम 50 मीटर ऊंचा है. इस मंदिर में भगवान शिव के अलावा भुवनेश्वरी और पंपा की मूर्तियां भी बनाई गई हैं। इस मंदिर के पास अन्य देवताओं को समर्पित छोटे मंदिर हैं।
विरुपाक्ष मंदिर का निर्माण विक्रमादित्य की रानी लोकमहादेवी ने करवाया था। मंदिर द्रविड़ शैली की वास्तुकला में ईंट और चूने से बना है। इसे यूनेस्को द्वारा घोषित राष्ट्रीय धरोहर में भी शामिल किया गया है।
 
 
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