प्रश्न 1: परब्रह्म में निषेधात्मकता का तत्त्व है, इसका क्या मतलब है?
उत्तर: परब्रह्म में निषेधात्मकता आते ही, भान्तरिकता और अस्तित्व (नाम-रूप) की प्रक्रिया प्रकट होती है, जिससे आत्मा की गहराइयों का अद्भुत सफर आरंभ होता है।
प्रश्न 2: सत् और असत् के बीच संघर्ष कैसे उत्पन्न होता है?
उत्तर: सत् और असत् के बीच संघर्ष, परमात्मा की ऊपरी सीमा से नीचे तक फैला होता है, जहां असत् का प्रभाव न्यूनतम होता है, और यह आत्मा की सत्यता को अनुभव का एक माध्यम बनता है।
प्रश्न 3: संसार का क्या कारण है और इसका समाधान क्या है?
उत्तर: संसार का होना सत् और असत् के बीच चल रहे संघर्ष की प्रक्रिया का एक परिणाम है, जिसमें प्रकृति सत् की प्रवाह को अविराम बनाए रखने का कारण बनती है। समाधान, आत्मा की सत्यता को स्वीकार करने में है, जिससे संसार की सभी अविशेषताओं का अनुभव होता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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