 Published By:अतुल विनोद
 Published By:अतुल विनोद
					 
					
                    
गुरु बनाने का अर्थ कोई विधि, यज्ञ या कर्मकांड करना नहीं है| हमने किसी अच्छे से देखने वाले प्रसिद्ध व्यक्ति के पैर छू लिए उसे दक्षिण दे दी और उससे एक मंत्र ले लिया तो दीक्षा हो गयी, ये सनातन धर्म के गुरुदीक्षा का मर्म नहीं है| सन्मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन की ज़रूरत पड़ती है|
धर्म में गुरु बनाने की प्रक्रिया का कोई सांकेतिक अर्थ नहीं है| दरअसल जीवन में पल पल पर हमें गुरु की आवश्यकता होती है| ईश्वर ने हमें हर स्तर पर गुरु की व्यवस्था करके दी है| जब हम छोटे होते हैं तो हमारे मां-बाप हमें चलना सिखाते हैं| हमारी मां हमारी पहली गुरु होती है| इसके बाद जब हम स्कूल जाते हैं तो वहां पर अलग-अलग विषयों के अलग-अलग शिक्षक होते हैं| एक ही शिक्षक सभी विषयों में हमें पारंगत नहीं कर सकता|
जीवन में हमें उत्तरोत्तर तरक्की के लिए हर स्तर पर उस स्तर के सुयोग्य गुरु की जरूरत पड़ती है| इसी तरह से जीवन के परम लक्ष्य यानी आत्मा से परमात्मा के मिलन के लिए भी हमें एक गुरु की आवश्यकता होती है| धर्म में उसी गुरु की आवश्यकता पर जोर दिया गया है|
यदि आपके जीवन में आध्यात्मिक उन्नति की कोई अभिलाषा नहीं है तो आपको इस तरह की गुरु की जरूरत भी नहीं है| धर्म में हर व्यक्ति को अपने जीवन के वास्तविक अर्थ को जानने और अपने अंदर मौजूद आत्म तत्व को पहचानने की जरूरत बताई गई है|
इसलिए इस रास्ते पर चलने के लिए एक अच्छे गुरु की आवश्यकता भी पड़ती है| हम खुद किसी रास्ते का शुरू से लेकर आखिर तक का अनुभव लेने चलेंगे, तो हो सकता है कि हमारी पूरी जिंदगी निकल जाए| बुद्धिमानी यह है जो लोग इस रास्ते पर चल चुके हैं, जहां तक भी पहुंचे हैं, आपको यदि उनका सानिध्य मिल जाता है, तो आपको कम से कम उस परिश्रम से राहत मिलेगी| और आप गुरु के सानिध्य में जल्द ही अपनी मंजिल तक पहुंच पाएंगे|
एक वास्तविक गुरु अपने गुरु के पद पर कई जन्मों की साधना के बाद पहुंचता है| और आपको यदि उसका सानिध्य मिल जाता है तो यह आपका भी कर्म फल है| व्यक्ति अपने लिए सामर्थवान गुरु की तलाश करता है| लेकिन आपको उसी स्तर का गुरु मिलेगा जिस स्तर के आप शिष्य हैं|
आप यदि वशिष्ठ जैसे गुरु चाहते हैं तो आपको राम जैसा बनना पड़ेगा| व्यास, शक्ति, पाराशर, जैसे गुरु चाहने वालों को सुखदेव जैमिनी गौड़पाद, गोविंद पाद, शंकराचार्य जैसी योग्यता प्राप्त करनी पड़ेगी| यदि आप इस तरह की योग्यता हासिल कर लेते हैं तो आप जहां मौजूद रहेंगे वही आपको उस स्तर के गुरु मिल जाएंगे| अकर्मण्य, प्रमादी और आलसी लोगों को संसार में बांधने वाले गुरु मिलेंगे|
लोग पहले योग्य शिक्षक की तलाश करते हैं, लेकिन पहले खुद योग्य शिष्य बनने की नहीं सोचते, यदि आपको तत्वज्ञान चाहिए तो आपको यम, नियम, आसन, प्राणायाम से परायण होना पड़ेगा| आपके अंदर कुछ गुण होने चाहिए, शील, ईमानदारी, शरीर स्वच्छ, शुद्ध होना चाहिए, आपके अंदर दूसरों के प्रति नफरत और गुस्सा नहीं होना चाहिए| आपके अंदर दूसरों के प्रति प्रेम और सहायता का भाव होना चाहिए| आपको आस्तिक होना चाहिए| दान शील होना चाहिए| विश्वास और विनय युक्त होना चाहिए| और यदि आप ऐसे बन जाते हैं, आपको गुरु खुद मिल जाते हैं|
यदि आपको संसार में अच्छे गुरु नहीं मिले, और गुरुओं के साथ आपके अनुभव अच्छे नहीं है तो इसका मतलब यह है कि आप में ही कोई खोट रही होगी, जिसकी वजह से आपको सद्गुरु नहीं मिला|
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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