Published By:धर्म पुराण डेस्क

आचार्य वराहमिहिर: भारतीय ज्योतिष के प्रवर्तक

Acharya Varahamihira

आचार्य वराहमिहिर, भारतीय ज्योतिष शास्त्र के महान प्रवर्तकों में से एक थे। उन्हें भारतीय त्रिस्कन्ध ज्योतिष शास्त्र के पितामह कहा जाता है, और उनके योगदान ने ज्योतिष को एक विज्ञान का दर्जा दिलाया। आइए, हम आचार्य वराहमिहिर के जीवन और कार्य के बारे में थोड़ी जानकारी प्राप्त करें।

जीवन और शिक्षा:

आचार्य वराहमिहिर का जन्म ईसा पूर्व 505 में हुआ था। वराहमिहिर ने अपने पिता से ज्योतिष शास्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी और वे खुद एक विशेषज्ञ ज्योतिषी बन गए।

ग्रंथों का निर्माण:

वराहमिहिर ने अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे, जिनमें 'बृहज्जातक' और 'पंचसिद्धांतिका' शामिल हैं। उनके ग्रंथों में ज्योतिष शास्त्र के महत्वपूर्ण सिद्धांत, संहिता और होरा के विषय में जानकारी उपलब्ध है।

योगदान:

आचार्य वराहमिहिर के योगदान से ज्योतिष शास्त्र को एक विज्ञान का दर्जा मिला। उनके ग्रंथों का आज भी ज्योतिष अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण आधार माना जाता है।

भविष्यवाणी:

आचार्य वराहमिहिर की एक अद्भुत भविष्यवाणी भी है। उन्होंने एक राजकुमार की जन्मकुण्डली देखकर उसकी मृत्यु के बारे में बताया था, और यह भविष्यवाणी बाद में पूरी हो गई।

नामकरण:

आचार्य वराहमिहिर का पहला नाम 'मिहिर' था, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है 'सूर्य'। उन्हें भगवान सूर्य के वरदान से वाक्सिद्धि प्राप्त थी। बाद में वराहमिहिर के नाम में 'वराह' जोड़ा गया, जिससे उनका नाम 'वराहमिहिर' हुआ।

समापन:

आचार्य वराहमिहिर के योगदान से हमें भारतीय ज्योतिष शास्त्र की महत्वपूर्ण धारा मिली, और उनके ग्रंथ आज भी उपयोगी हैं। वराहमिहिर का जीवन हमें यह सिखाता है कि अच्छे कामों का महत्व हमारे समाज और सांस्कृतिक धरोहर के लिए हमेशा बना रहता है, और वे सदैव हमारे समृद्धि और सामाजिक सुधार के लिए कार्यरत रहते हैं।

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