 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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अम्लपित्त केवल असंतुलित आहार-विहार से होने वाली व्याधि नहीं है। दूसरों से आगे निकल जाने की आपाधापी और तनाव भी इसके कारण है।
अम्लपित्त के रोगी के पेट में पित्त की निर्मिति अधिक मात्रा में होती है। अतः पित्त बढ़ने से खाना खाते समय खाने में खट्टापन ज्यादा आता है। इससे खाया हुआ पदार्थ ज्यादा देर तक पेट में पड़ा रहता है। इसमें पित्त ज्यादा होने तथा अम्लविपाक बढ़ने से रोगी को खाना खाने के बाद मिचली जैसी होती है। खटटे डकार आने लगते हैं। गले में खट्टा या कड़वापन आने से उल्टी होती है।
पित्त बढ़ने से गले में सौम्य या तीव्र जलन भी होती है। रोगी को हमेशा खाना खाने के बाद या पहले उल्टी होती है, पेट में जलन भी होती है। अम्लपित्त की व्याधि जितनी पुरानी होगी उतनी ही उल्टी का प्रमाण ज्यादा रहता है।
रोगी के पेट में बढ़ा हुआ पित्त धीरे-धीरे संपूर्ण शरीर में फैलता है। इससे सिर भारी होता है, हल्का दर्द भी होता है। सिरदर्द की गोली लेने से सिरदर्द ज्यादा बढ़ता है और उल्टी होती है। उल्टी होने के बाद सिरदर्द कम होता है तथा आँखे लाल होना, छाती में जलन और शरीर में गर्मी मालूम होती है। पेशाब गर्म और पीले रंग की होती है मल त्याग करते समय मल गर्म होकर बाहर निकलता है तथा शरीर में दाह निर्माण होता है।
अम्लपित्त के आरंभ में उल्टी और जलन कम रहती है. पर जैसे-जैसे व्याधि बढ़ती जाती है, उल्टी होना, जलन होना ये लक्षण बढ़ते जाते हैं। रोगी को भूख भी कम लगती है, क्योंकि अम्लपित्त के कारण अग्नि में मंदता आ जाती है।
आहार कम लेने से शरीर में पोषक तत्व की कमी होकर कमजोरी बढ़ती है, थकावट आती है, जोड़ों में पैरो में दर्द, आंखों के सामने अंधेरा छाना, बेचैनी होना, कभी-कभी मल त्याग में अवरोध या दस्त होते हैं। शरीर में गर्मी बढ़ने से जलांश कम होता है, इस कारण चक्कर भी आते है मुंह सूखा रहता है और नींद नहीं आती।
अम्लपित बढ़ने से रोगी के शरीर पर छोटी-छोटी फुंसियां हो जाती है। कभी-कभी खुजली भी होती है। ज्यादा पित्त होने से रोगी के बाल झड़ने लगते हैं और बाल जल्दी सफेद भी होने लगते हैं। रोगी को छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आता है और वह मानसिक दृष्टि से बेचैन तथा भय से ग्रस्त रहता है।
डर हमेशा मन में रहने से वह अपने मित्र, स्नेह संबंधियों की ओर सशंकित होकर देखता है। दिमाग में हमेशा सोच-विचार चलते रहते हैं। यदि चिकित्सा जल्दी नहीं की तो आमाशय में व्रण बनता है और उल्टी होने से रक्त बाहर आता है। इस अवस्था में यह व्याधि कष्टसाध्य होती है।
अम्लपित्त के कारण अहित आहार का सेवन करने से पित्त बढ़ता है। मनुष्य की प्रकृति अगर पित्तज हो, तो इसमें अम्लपित्त होने की ज्यादा संभावना होती है। अहित आहार जैसे मिर्ची, मसाले, प्याज, लहसुन, काली मिर्च, अचार, चटनी तथा गरम पदार्थों का त्याग करना चाहिये। होटल का खाना भी अम्लपित्त का कारण है। समोसा, पाव-भाजी, कचोरी आदि का भी त्याग करना चाहिये। इमली, छाछ, बडा, मांसाहार, शराब, गुटखा, का सेवन भी वर्जित है।
अत्यधिक सोचने से भी अम्लपित्त की वृद्धि होती है। शरीर के नैसर्गिक वेग जैसे मल-मूत्र, छींक या डकार को रोकें नहीं। सही वक्त पर ये सब क्रियाएं होनी चाहिए। ज्यादा देर तक जागते रहने या रात में ठीक नींद नहीं आने पर भी अम्लपित्त बढ़ता है।
चिकित्सा -
अम्लपित्त की चिकित्सा करते समय मुख्यतः अहित आहार-विहार का त्याग करके चिंता रहित रहने का प्रयत्न करना चाहिए। रोज सुबह उठकर उषापान करके आसन करें। अम्लपित्त में आंवला खट्टा होकर भी पित्त का नाशक कहा गया है। अतः आंवले का बना मुरब्बा रोज 1–1 चम्मच सेवन करना चाहिये। आंवला चूर्ण 1-1 चम्मच पानी के साथ लें।
डॉ मोहन पडोळे
 
 
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