महान लोगों के नाम के साथ कुछ विशेषण जोड़ दिए जाते हैं, जो उनकी चारित्रिक विशिष्टताओं और गुणों पर आधारित होते हैं. भक्तराज हनुमान जी के साथ वैसे तो बहुत से विशेषण जुड़े हैं, लेकिन कुछ विशेषण बहुत महत्वपूर्ण हैं. हनुमान जी को अधिकतर विशेषण संत तुलसीदास ने रामचरितमानस के सुन्दरकाण्ड के श्लोक में दिए हैं. रामरक्षास्त्रोत और वाल्मीकि रामायण में भी उन्हें अनेक विशेषण दिए गए हैं.
आइये, हम यहाँ उनके कुछ ख़ास विशेषणों पर चर्चा करते हैं.
अतुलितबलधामं- यह विशेषण हनुमान जी की अतुलनीय शक्तियों के कारण दिया गया है. उनके बल की कोई सीमा नहीं है. न उसकी कोई तुलना की जा सकती और न उसकी कोई सीमा है. उन्होंने बचपन से ही ऐसे ऐसे चमत्कारिक काम किये हैं, जिनके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता- जैसे सूर्य का भक्षण कर जाना. एक ही छलांग में उन्होंने शत योजन समुद्र को लांघ लिया, लक्ष्मण के जीवन की रक्षा के लिए हिमालय से जड़ी-बूटियों के पहाड़ को उठा लाये, रावण के घर में जाकर उसकी लंका का दहन कर आये, बड़े-बड़े राक्षसों का संहार कर दिया. ऐसे कितने ही कार्य उन्होंने किये जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका बल अतुलनीय है.
दनुजबनकृशानुम- हनुमान जी दानव कुल रूपी वन के लिए अग्नि के समान है. उन्होंने राक्षसों को मच्छरों के समान मसल डाला. राक्षसों का संहार करने में हनुमान जी ऐसी अग्नि के समान हैं जो वन को जलाकर राख कर देती है. उनके सामने कोई भी दानव टिक नहीं सकता. रावण के अत्यंत वीर और बलशाली बेटे इन्द्रजीत को उन्होंने उसी के नगर में मार डाला. कालनेमि जैसे दानव को मारने में उन्होंने ज़रा भी देर नहीं की. राम-रावण युद्ध में हनुमान जी ने रावण की सेना में जो तांडव मचाया वह बहुत प्रलयंकारी था.
ज्ञानिनाम अग्रगण्यम- हनुमान जी सिर्फ बलवान ही नहीं बल्कि परम ज्ञानी भी हैं. उन्हें ज्ञानियों में प्रथम गिना जाता है. जिन्होंने अपने बुद्धिबल को हर जगह सिद्ध किया. सीता की खोज में समुद्र पार करते समय सुरसा और लंका में प्रवेश के समय लंकिनी को उन्होंने अपने बुद्धिबल से ही मार्ग से हटाया. इतना ही नहीं, उनसे आशीर्वाद तक ले लिया. अपने बुद्धिबल से ही उन्होंने श्रीराम का सेवक बनने का सौभाग्य प्राप्त किया.
हनुमान जी ने अशोक वाटिका को उजाड़ने का काम केवल अपनी भूख मिटाने के लिए नहीं किया. उनका मकसद रावण को श्रीराम की शक्ति का अनुमान करवाना था. यह भी उनकी बुद्धिमत्ता का द्योतक है. उनकी बुद्धिमत्ता को श्रीराम ने पहली भेट में ही समझ लिया था.
पम्पापुर में जब हनुमान जी ब्राह्मण के रूप में उनसे मिले तो उनकी वार्ता से श्रीराम बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण से कहा कि इस व्यक्ति ने समग्र व्याकरण शास्त्र का बहुत अध्ययन किया है. यही कारण है की हमारे साथ इतनी विस्तृत वार्ता करते हुए इसने एक भी अपशब्द नहीं कहा. हनुमान जी के किसी भी शब्द में न उच्चारण का दोष था न व्याकरण का. हनुमान जी की बुद्धिमत्ता के कारण ही सुग्रीव ने उन्हें अपना प्रधानमंत्री बनाया था. उन्हीं की बुद्धिमत्ता के कारण श्री राम और सुग्रीव की मित्रता हो सकी.
सकलगुणनिधानं- हनुमानजी सकल गुणों के धाम हैं. उन्हें दुष्ट के साथ दुष्टता और सज्जन के साथ सज्जनता का व्यवहार करना आता है. उन्हें शास्त्रों के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान भी है. अशोक वाटिका में जब मेघनाद ने उन पर ब्रह्मास्त्र चलाया तब उन्होंने नागपाश में बंधना सहर्ष स्वीकार कर लिया. उन्होंने ब्रह्मा जी की अवहेलना नहीं की. साथ ही, रावण की सभा में उन्होंने जिस व्यावहारिकता और वाक्पटुता का परिचय दिया वह अद्भुत है. बहुत ही व्यंग्यात्मक शैली में उन्होंने रावण को उसकी पराजयों की याद दिलाते हुए भरी सभा में नीचा भी दिखाया.
मनोजवम- हनुमान जी मन की गति के समान गति वाले हैं. पलक झपकते ही कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं. हिमालय से सुबह होने से पहले संजीवनी बूटी लाना, उनकी इसी गति से संभव हो सका. उन्होंने अपने वेग से समुद्र को गौ के खुर से बने हुए गड्ढे के समान क्षुद्र बना डाला. भरत को सुबह होने से पहले श्रीराम के आगमन की सूचना देने का कार्य भी उनकी इसी गति के कारण संभव हो सका, अन्यथा भरत अपने प्रण के अनुसार अपना जीवन समाप्त कर लेते.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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