संगीत का हमारे मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है, लोग इस बात को नहीं समझते हैं कि गलत संगीत हमारे मस्तिष्क पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है और यह जानलेवा भी हो सकता है डिस्कोथेक में जहां इस तरह का संगीत बजाया जाता है, वहां ऐसे मामले प्रायः देखने में आते हैं.
ध्वनि की शक्ति अपरिमित होती है और अगर आप अपने मस्तिष्क में ऐसी ध्वनियां पहुंचाएंगे, जो उसे अनुचित ढंग से उत्तेजित करें तो इससे आपका मस्तिष्क कभी शांत नहीं रह पाएगा. यह ठीक ऐसा ही जैसे पेट्रोल को माचिस दिखाना जिसका नतीजा होगा आगजनी, विस्फोट या विध्वंस|
अगर एक बार आपके मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया, तो उसके इलाज के लिए दुनिया में कोई दवा नहीं है, मस्तिष्क में कोई ट्यूमर हो तो उसे सर्जरी या ऑपरेशन कर हटाया जा सकता है, लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि मस्तिष्क के बिगड़ने के बाद उसे पुनः यथावत स्थिति में लाया जा सके.
अगर शरीर की धमनियां जाम हो जाएं तो उनका ऑपरेशन कर उनका इलाज किया जा सकता है और इस तरह कोई मरीज अधिकतम दो वर्ष और भी जी सकता है, लेकिन यदि आपके मस्तिष्क में कोई बीमारी है, तो फिर आप किसी भी उपचार पद्धति पर भरोसा नहीं कर सकते और आयुर्वेद में भी इसके लिए बहुत सीमित उपचार है.
ध्वनि की पहुंच मस्तिष्क तक है, हमारे संगीत और मंत्रों को इस ढंग से तैयार किया गया है कि ये मस्तिष्क की तरंगों को व्यवस्थित कर सके और उसे उसकी प्राकृतिक स्थिति में ला सकें|
उपचारी संगीत (हीलिंग म्यूजिक) सुनने और गाने (गुनगुनाने) मात्र से हमारा मस्तिष्क शांत व व्यवस्थित होने लगता है और इसमें मौजूद किसी भी तरह का अवरोध इस ध्वनि के प्रभाव से विलीन हो जाता है.
हमारे मस्तिष्क में ऐसे कई अवरोध है, जिनकी वजह से हम कई बार गलत निर्णय कर बैठते हैं और नित नई समस्याओं को जन्म देते हैं. कई बार मस्तिष्क की अपनी स्वायन प्रक्रिया भी उसके नियंत्रण से बाहर हो जाती है.
हमारा मस्तिष्क हमारे पूरे शरीर-तंत्र के लिए एक ट्रांसपोर्ट कंपनी की तरह कार्य करता है, मस्तिष्क शरीर के हर अंग को आवश्यक संदेश भेजता है, जब हमारा मस्तिष्क ही सही ढंग से काम नहीं कर रहा होगा, उसमें किसी तरह का अवरोध होगा तो फिर कई तरह की समस्याएं पैदा हो सकती हैं, उदाहरण के लिए ऐसा भी हो सकता है कि शरीर के सभी अंगों तक हमारा रक्त यथोचित ढंग से नहीं पहुंचे.
मस्तिष्क को सुव्यवस्थित रखने के लिए पहली आवश्यकता है। नींद और संगीत, मस्तिष्क को सुव्यवस्थित व गतिशील बनाए रखने व इसमें बदलाव लाने के लिए कुछ प्रार्थनाएं हमें आवश्यक रूप में करना चाहिए.
संगीत या ध्वनि सुनने से मस्तिष्क पर नाम मात्र का प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इस दौरान ध्वनि के साथ आपकी भागीदारी शत-प्रतिशत नहीं होती है.
यदि आपके मस्तिष्क में पहले से ही किसी भी तरह की कोई समस्या है तो फिर आपकी मेरु रेखाएं (मेरिडियंस) भी यथोचित ढंग से ध्वनि की तरंगों को स्वीकार नहीं कर सकेंगी. हमारे शरीर के दायीं व बायीं दोनों ओर पांच-पांच मेरु रेखाएं (मेरिडियंस) हैं. जब कोई एक विशेष ध्वनि गूंजती है या कोई ध्वनि तरंग प्रवाहित होती है तो उसी के अनुरूप हमारे शरीर की कोई विशेष मेरु रेखा सक्रिय होती है.
उदाहरण के लिए हम मूत्राशय वाली मेरु रेखा से इस बात को समझने का प्रयास करें. अगर इस मेरु रेखा में किसी तरह का कोई अवरोध है, तो इस तक हमारी सुनी हुई ध्वनि को पहुंचने में लंबा समय लगेगा.
लेकिन यदि आप किसी मंत्र का उच्चारण करेंगे अथवा गाएंगे तो हमारे शरीर में उपस्थित वायु सक्रिय होकर उन अवरोधों पर ऐसा दबाव निर्मित करेगी कि ये मेरु रेखाएं ध्वनि के संकेतों को ग्राह्य कर सकें.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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