Published By:धर्म पुराण डेस्क

अल्जाइमर्स डिसीज (ALZEIMERS DISEASE) यानी ए.डी. वृद्धावस्था में होने वाला एक ऐसा रोग है जिसमें याददाश्त और बौद्धिक क्षमता का क्षय होने लगता है. इसके कारण वृद्धों की स्थिति दयनीय हो जाती है.
अल्जाइमर्स (ALZEIMERS डिसीज DISEASE) यानी ए.डी. नामक रोग वृद्धावस्था को नारकीय बना डालता है, क्योंकि इस रोग में बढ़ती उम्र के साथ साथ स्मरण शक्ति और बौद्धिक क्षमता में कमी आने लगती है.
यूं तो वृद्धावस्था में स्मरण शक्ति और बौद्धिक क्षमता में कमी का आना बुढ़ापे की एक सामान्य अवस्था मानी जाती है, परन्तु ‘अल्जाइमर्स डिसीज' में यह हास इतनी तीव्रता से होता है कि बीमारी के अंतिम चरण में रोगी की शारीरिक और बौद्धिक क्षमता शून्य के बराबर हो जाती है. यह रोग वृद्ध की स्थिति को अति दयनीय बना डालता है, इसलिए आम बोलचाल में इसे 'वृद्धावस्था का कोढ़' भी कहा जाता है.
बीमारी का स्वरूप:
यह बीमारी रोगी के जीवन भर की यादों और बौद्धिक क्षमताओं को धीरे-धीरे नष्ट करता चला जाता है. यूं तो हर बीमारी में व्यक्ति के कुछ कार्य-व्यापारों में स्थायी या अस्थायी तौर पर रुकावट आती है, लेकिन ए.डी. में मनुष्य के रूप में उसकी सारी गतिविधियां बंद हो जाती हैं.
आज भी अधिकांश चिकित्सक इस रोग के स्वरूप को लेकर अनजान हैं और निरर्थक औषधियों के साथ-साथ अनेक तरह की जांच करवाते रहने की सलाह देकर रोगी को और भी परेशान कर देते हैं.
नींद की गोलियों जैसे उपशामक और मस्तिष्क को सक्रिय करने के लिये अप्रमाणित क्षमता वाली दवाइयां भी दी जाती हैं जिनके प्रयोग से इन्द्रियां और भी अधिक शिथिल पड़ जाती हैं.
ए.डी. रोग का कारण:
अनुवांशिक एवं पर्यावरणात्मक कारणों के समन्वय से पैदा होने वाला ए.डी. रोग होता क्यों है. इसका भेद आज के वैज्ञानिकों ने खोज लिया है.
ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने इस अल्जाइमर रोग के अनोखे भेद का पता लगाते हुए कहा है कि इसके रोगियों के दिमाग का वह हिस्सा सिकुड़ जाता है, जिस पर रोग का असर होता है.
नीदरलैंड में 55 साल से अधिक आयु के 86000 स्त्री पुरुषों पर किए गए एक अध्ययन के दौरान यह पाया गया है कि धूम्रपान करने वालों को वृद्धावस्था में 'ए.डी.' से ग्रसित होने का खतरा बना रहता है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक धूम्रपान करने वालों को रक्तवाहिकाओं से संबंधित कई बीमारियों के शिकार होने का भी खतरा बना रहता है. रक्त वाहिकाओं से संबंधित इन गड़बड़ियों के चलते मस्तिष्क तक रक्त की आपूर्ति सुचारू रूप से नहीं हो पाती है, जिससे दिमागी क्रियाशीलता घट जाती है और वे पागलपन, मनोभ्रंश समेत कई मानसिक गड़बड़ियों के शिकार हो जाते हैं. उनकी याददाश्त की शक्ति कमजोर होते-होते 'अल्जाइमर्स डिसीज' का घातक प्रहार हो जाता है.
'राष्ट्रीय बुढ़ापा अनुसंधान' की एक अनुसंधानकर्ता अन्ना मेकारमाक ने ए.डी. के कारणों में से एक कारण यौन असंतुष्टि तथा अप्राकृतिक मैथुन को भी बताया है. श्रीमती अन्ना के अनुसार आज के युवक प्रवृत्ति वश यौवन के दहलीज पर पैर रखते ही यौन संतुष्टि के अनेक साधनों का प्रयोग करने लगते हैं.
यौनगत द्रव्यों के व्यर्थ रिसाव के कारणों से मस्तिष्क पर अनावश्यक तनाव पड़ता है और मानसिक असंतुलन के फल स्वरूप वृद्धावस्था में 'ए.डी.' से प्रकोपित हो जाना पड़ता है. श्रीमती अन्ना ने हस्तमैथुन, गुदामैथुन, अप्राकृतिक मैथुन, अमैथुन (मैथुन से वंचित लोग), अतिमैथुन आदि की मानसिक प्रवृत्तियों को भी 'ए.डी.' का एक कारण माना है.
ए.डी. का निदान:
वर्तमान में 'ए.डी.' (अल्जाइमर डिसीज) का पता तभी लग पाता है, जब यह रोग अपने पूरे लक्षण प्रकट कर देता है. आमतौर पर दिमाग के प्रभावित हिस्से के तेजी से सिकुड़ने की अवस्था के दो साल बाद ही रोग का निदान हो पाता है. वयस्कों में दिमाग की कोशिकाएं एक बार मर गयी, तो फिर उन्हें न तो जीवित ही किया जा सकता है और न ही उनकी संख्या भी बढ़ाई जा सकती है.
आयुर्विज्ञान में अनुसंधान का एक दीर्घकालिक लक्ष्य इस गतिरोध को दूर करना भी है. फिलहाल तो इसके कारगर उपचार का सबसे अच्छा तरीका यही है कि दवाओं को जल्दी से जल्दी और समय से दे दिया जाए, जिससे दिमाग का कम से कम नुकसान हो.
मस्तिष्क के ऊतकों के तेजी से सिकुड़ने की खोज से जहां शीघ्र निदान और उपचार का रास्ता खुला है, वहीं दवा लेने और न लेने वाले मरीजों की हालत की तुलना करना भी इस खोज के कारण आसान हो गया है.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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