Published By:बजरंग लाल शर्मा

अक्षर एवं अक्षर धाम…. 

अक्षर एवं अक्षर धाम….             

" एक पात न खिरे वन का, ना  गिरे  पंखी  का  पर ।

 नया   पुराना  न   होवहीं, जंगल  या  जानवर ।। "                  

अक्षरधाम (अविनाशी धाम) का एक पत्ता तक भी क्षय  होकर बिखरता नहीं है। पक्षी के पंख जीर्ण होकर झड़ते नहीं है। वहां नया पुराना कुछ भी नहीं है। वन अरण्य या पशु-पक्षी नित्य नूतन दिखाई देते हैं ।

 " पैदास  कतरे  नूर  की, ए जो हुई चल विचल ।

फेर समेत समानी नूर में, सो  नूर  सदा  नेहेचल ।। "                 

अक्षर ब्रह्म के नूर (ज्योति स्वरूप) के एक कतरे से समस्त तीनों लोक और त्रिदेव की रचना हुई । फिर उनमें सजीव (चल) तथा निर्जीव (विचल) सृष्टि की रचना का कार्य पूर्ण किया गया । सृष्टि की रचना का प्रयोजन (कारण) पूरा हो जाने पर उसे पुनः अविनाशी नूर में समेट लिया जाएगा । यह समस्त रचना ब्रह्म आत्माओं को दुख दिखाने के  लिए  की गई है । 

उपरोक्त वाणी में हम यह जान चुके हैं कि अक्षर ब्रह्म एवं उनका धाम अविनाशी है तथा अक्षरधाम की समस्त सामग्री भी अविनाशी है वहाँ ना तो कोई नया पैदा होता है और ना ही कोई पुराना होता है । वहाँ वन उपवन तथा पशु पक्षी भी हैं । वहाँ सब कुछ  एक समान रहता है अर्थात उसमे परिवर्तन नहीं होता है ।

अक्षर पुरुष अविनाशी हैं तथा उनके द्वारा सृष्टि की रचना करने का भी कारण है, और जब यह कारण समाप्त हो जाएगा तब सृष्टि की रचना का कार्य भी समाप्त हो जाएगा। फिर यह सृष्टि अखंड हो जाएगी ।

इस अक्षरधाम के स्वामी गोलोक धाम वासी श्रीकृष्ण हैं । ये बालस्वरूप है तथा इनका कार्य सृष्टि की रचना कर उसे मिटाना है , यह उनका स्वभाव है इनको अक्षर पुरुष कहा जाता है ।                         

परमधाम की ब्रह्म आत्माओं को इस नश्वर संसार को दिखाने के लिए पूर्णब्रह्म परमात्मा अक्षरातीत श्री कृष्ण के आदेश से अक्षर पुरुष ने इस संसार की रचना अपनी नींद में स्वप्नवत की।

स्वप्न की रचना करने वाले का शरीर होता है। जिसकी चित्त की वृत्तियों का अंडा नींद में तैरता है । जब उस अंडे में रचना करने वाले के मन की दृष्टि पड़ती है तब वह अंडा फूटता है और उसमें से रचना करने वाले की शकल का स्वप्न का पहला पुरुष खड़ा होता है । इस स्वप्न पुरुष के द्वारा आगे की रचना होती है।

परंतु यह बड़ा आश्चर्य है कि लोग बिना संतवाणी और शास्त्रों को समझे अपनी बुद्धि से निर्णय करते हैं कि रचना करने वाला  निराकार है । यह समस्त स्वप्न जगत रचना करने वाले के अव्यक्त स्वरूप अर्थात मन के द्वारा बना है तथा उनके अंदर है । मन का स्वरूप निराकार होने से लोग यही समझते हैं कि रचना करने वाला निराकार है परंतु मन का जो स्वामी है वह तो शरीर वाला है । 

स्वप्न में बनने वाले सजीव तथा निर्जीव आकार माया के तीन गुणों के द्वारा निर्मित होता है । जब माया अपने तीन गुण प्रकट करती है तब वह साकार हो जाती है और जब अपने तीनों गुणों को समेट लेती है तब वह निराकार हो जाती है । इस प्रकार साकार तथा निराकार दोनों रूप माया के हैं ।                        

बजरंग लाल शर्मा, चिड़ावा

             



 

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