Published By:बजरंग लाल शर्मा

अक्षर पुरुष एक बाजीगर...      

अक्षर पुरुष एक बाजीगर...      

"कोई कहे ए भरम की बाजी, ज्यों  खेलत  कबूतर ।        

तो  कबूतर  जो  खेल  के, सो  क्यों  पावे  बाजीगर ।। "                

महामति प्राणनाथ जी कहते हैं कि यह संसार इंद्रजाल है । यह जादूगर के खेल की भांति कल्पना मात्र है । इस संसार की रचना करने वाला अक्षर पुरुष भी एक जादूगर है । वह अपनी नींद में इस स्वप्निक संसार को अपनी माया शक्ति के द्वारा बनाता है ।   

इस संदर्भ में संत कहते हैं कि एक जादूगर दर्शकों को अपनी जादुई शक्ति का खेल दिखलाने के लिए स्टेज पर आता है । वह दर्शकों को दिखलाता है कि उसके हाथ में कुछ नहीं है , फिर वह अपने हाथ में एक थैला प्रकट कर देता है । उस थैले को भी उलट-पुलट कर दर्शकों को दिखलाता है कि उसमें कुछ नहीं है ।

फिर वह उसी थैले में हाथ डालकर एक कबूतर को बाहर निकालता है और वह कबूतर गुटर-गु, गुटर-गु बोलता हुआ एक पाइप पर बैठ जाता है। इसी प्रकार वह पांच कबूतर निकालता है और सभी कबूतर गुटर-गु, गुटर-गु बोलते हुए पाइप पर बैठ जाते  हैं। दर्शक सभी हैरान रहते हैं कि ये कबूतर कहां से आ गए? सभी कबूतर किस प्रकार बोल रहे हैं? 

फिर वह बाजीगर प्रत्येक कबूतरों को बारी-बारी से उस थैले में डाल देता है, और फिर वह दर्शकों को दिखाता है कि थैले में कुछ नहीं है ।

वे आश्चर्यचकित होते हैं कि कबूतर कहां गायब हो गए , फिर उसके हाथ से थैला भी गायब हो जाता है । जादूगर के इस खेल को देखकर दर्शक बड़े प्रसन्न होते हैं और तालियां बजाते हैं । अगर बाजीगर के उन कबूतरों से यह पूछा जाए कि तुम्हें किस प्रकार बनाया गया है ? तुम्हें किसने बनाया है ? किस प्रकार वे लय को प्राप्त हुए ? परन्तु इसका उत्तर ये कबूतर नहीं दे पाएंगे ।       

इसी प्रकार जादूगर के खेल की तरह यह संसार अक्षर पुरुष की मन की कल्पना का खेल है । यह सभी जीव बाजीगर के कबूतर के समान है । इन्हें यह पता नहीं है कि इन्हें किस प्रकार बनाया गया ? क्यों बनाया गया ? किस प्रकार ये आवागमन से मुक्त होंगे ? मुक्ति के पश्चात इनका घर कहां होगा ?

अक्षर पुरुष भी एक बाजीगर हैं, ये भी उस बाजीगर की तरह संसार तथा इन जीवों को बनाते हैं और मिटाते हैं । परंतु बाजीगर के द्वारा बनाए गए जादुई खेल में तथा अक्षर पुरुष के द्वारा बनाए गए संसार के खेल में अंतर है । बाजीगर के  कबूतर के पास कोई विवेक नहीं होता है तथा वे कर्म नहीं करते हैं । परंतु जीवों में विवेक होता है तथा वे कर्म करते हैं तथा आवागमन में रहते हैं । सतगुरु के ज्ञान के द्वारा जीवों का उद्धार हो सकता है, परन्तु बाजीगर के कबूतरों का नहीं ।

बजरंग लाल शर्मा 

           


 

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