 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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जीवन परेशानियों का घर है लेकिन परेशानियों का कारण हमारी ही दुर्बलता है हमारी ही कमियां हमारी परेशानियों को बढ़ा देती हैं। हम दुर्बलताओं के दास बनकर कई तरह की गलत आदतों को अपना लेते हैं। और यही आदतें हमें अपने मूल स्वरूप और क्षमताओं से दूर कर देते हैं।
हम अपने आपसे इतने दूर चले जाते हैं और गलत आदतों के चक्कर में न जाने कितने पाप कर देते हैं। इन पापों से बचने का एक ही उपाय है अपने अंदर सभ्यता का विकास।
मुंशीराम तथा श्रद्धानंद एक ही व्यक्ति के दो नाम हैं, पर दोनों में बड़ा अंतर है। मुंशीराम का जीवन भोगप्रधान था। उनकी पत्नी शिवदेवी भारतीय नारीत्व की जीती-जागती मूर्ति थीं। एक रात देरी से आने पर पत्नी ने वस्त्र बदलवा कर लिटा दिया। सारी रात सेवा करती रहीं। उस दिन पश्चाताप की अग्नि में जले मुंशीराम के अंदर से श्रद्धानंद पैदा हुआ।
सारी दुर्बलताओं को तिलांजलि दे दी। धीरे-धीरे आप आर्य संन्यासी के रूप में विख्यात हो गए। रौलट एक्ट के विरुद्ध उनने 'छाती पर पिस्तौल' शीर्षक से लेख लिखे। इन पाँच लेखों ने लाखों स्वयंसेवक पंजाब क्षेत्र में खड़े कर दिए। उनका जीवन त्याग तथा सेवा की कहानी है।
हरिद्वार में गंगा पार चंडी पर्वत की उपत्यकाओं में कांगड़ी गांव में उनने गुरुकुल की स्थापना की। यह गुरुकुल कांगड़ी उनके जीवन का एक अनूठा प्रयोग था। इस विश्वविद्यालय को सौ वर्ष पूरे हो गए हैं एवं बाढ़ से बहे कांगड़ी गांव से यह हरिद्वार नगरी में स्थापित हो गया, पर अभी भी इसका वही नाम है। पूरे देश की यह शान है। 'संस्कृति व विद्या का शिक्षा में प्रवेश' ही उनका उद्देश्य था, वह उनने पूरा किया।
समाज-सुधार की जो गतिविधियां श्रद्धानंद जी ने चलाईं, वे आज भी याद की जाती है। 23 दिसंबर, 1926 को एक धर्मोन्मादी ने उन्हें गोली से मार डाला, पर वे भारत के आकाश में उज्ज्वल नक्षत्र की तरह सदा के लिए अमर हो गए।
 
 
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