Published By:धर्म पुराण डेस्क

चित्रकूट पर अद्भुत पर्यटन का संगम: जानिए क्यों 

70 फीट ऊंचे झरने से कल कल बहता पानी, हवा के झोंके से उड़ती पानी की फुहारों का विहंगम दृश्य विश्व प्रसिद्ध नियाग्रा जलप्रपात की याद दिलाता है, पर यह झरना उर्फ शबरी प्रपात उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच बसे चित्रकूट में स्थित है। शबरी प्रपात के आकर्षक सौंदर्य का आनंद कम ही देशी-विदेशी पर्यटक उठा सके हैं। 

चित्रकूट देश के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। काशी और प्रयाग की तरह चित्रकूट का भी पौराणिक महत्व है। भगवान श्रीराम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के बारह साल यहां बिताए थे। 

चित्रकूट की गिरि कंदराओं में श्रीराम के लंबी अवधि तक निवास करने के कारण राम भक्त चित्रकूट के प्रति अगाध आस्था रखते हैं। यहां तीन दर्जन से अधिक धार्मिक स्थल है, जहां पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगा रहता है।

चित्रकूट पर्यटन के लिहाज से भी उतना ही समृद्ध है। खूबसूरत और दूर-दूर तक फैली विंध्य पर्वत श्रृंखला की हरी-भरी घाटियां और उनसे निकलने वाले कल कल करते झरने यहां आने वालों का मन बरबस मोह लेते हैं। 

पर्वत श्रृंखला के बीच से निकलती छोटी- छोटी नदियां, कलरव करते पक्षी और घाटियों में कुलांचे भरते मृग इस क्षेत्र की सुरम्यता को बढ़ा देते हैं। रामघाट पर कल कल बहती मंदाकिनी नदी में चांदनी रात में नौका विहार रोमांचित कर जाता है, तो मुगल शासक औरंगजेब द्वारा बनवाया बाला जी का प्राचीन मंदिर हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है।

चित्रकूट धाम की शुरुआत इलाहाबाद जिले की दक्षिण-पश्चिम सीमा के दस किलोमीटर आगे बरगद क्षेत्र से होती है। बांदा मार्ग से करीब तीन किलोमीटर उत्तर की ओर सुरम्य वन क्षेत्र में एक धार्मिक स्थल परानू बाबा का मंदिर है। यह किसी समय बघेल राजाओं की गढ़ी हुआ करती थी। इन्हीं राजाओं के कुल पुरोहित प्राणनाथ ने आत्मोत्सर्ग किया था और पिशाच योनि को प्राप्त हुए थे। इसी क्षेत्र में उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिली थी।

परानू बाबा एक मनोरम क्षेत्र है। यहां पर एक छोटी झील और तेंदू पत्ते का जंगल है। लोग यहां मन्नतें मांगते हैं और पूरी होने पर ब्राह्मण भोज कराते हैं। परानू का रास्ता सुगम है। 

चित्रकूट के उपनगर मऊ से करीब अठारह किलोमीटर दूर मऊ-कोटरा मार्ग पर ऋषियन नामक सुरम्य स्थल है। यहां एक मंदिर के भग्नावशेष बिखरे हुए हैं। कहा जाता है यह महाभारत काल में ऋषिकुल था। यहां तमाम ऋषि-मुनि रहते थे। इसे चित्रकूट का प्रवेशद्वार भी कहा जा सकता है। 

ऋषियन के दक्षिण में एक सरोवर होने के प्रमाण व कई गुफाएं हैं। मंदिर के पास एक कुंड है, जहां पहाड़ों से पानी आता रहता है। इससे एक किलोमीटर पर बरहा- कोटरा में सुंदर पत्थरों से बना हुआ एक विशाल शिव मंदिर है। इसकी नक्काशी चंदेल युगीन वास्तुशिल्प की याद दिलाती है। 

कोटरा से चार किलोमीटर दूर मऊ-पदेवा मार्ग पर बरियारी कला में यमुना के बीच हनुमान जी की लेटी हुई विशाल मूर्ति है। इलाहाबाद-बांदा के लालता रोड चौराहे से चौदह किलोमीटर पर पहाड़ों के बीच करका नामक स्थल है। यह एक रमणीक आश्रम है, जहां हनुमान जी का मंदिर है। 

इसी के बगल में पेड़ों के बीच छुपे मंदिर का एक प्राचीन द्वार है। मंदिर के सरोवर में खिले कमल आसपास बहते झरने और बावड़ियां मन मोह लेती हैं। इसी के पास सीत पायन और दशरथ घाट जैसे रमणीक स्थल हैं।

चित्रकूट के जिला मुख्यालय कोरबा से चार किलोमीटर पर गणेश बाग है, जो छोटे खजुराहो के नाम से मशहूर है। इसका निर्माण उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में पेशवा नरेश विनायक राव ने करवाया था। इसमें तीन तलों की एक इमारत के दो तल तो पानी में डूबे रहते हैं। गर्मी में एक तल खुल जाता है, इसी के पास खजुराहो शैली का एक मंदिर और पास ही एक बावड़ी है। 

कोरबा नगर के ही पास तरौहा गांव के पास एक दुर्ग का भग्नावशेष है। वहीं भरत कूप से आठ किलोमीटर दक्षिण घुरेटनपुर गांव के पास पहाड़ पर मड़फा दुर्ग है। दुर्ग के सामने तांडव करती शिव प्रतिमा व मांडव्य ऋषि का आश्रम है।

चित्रकूट में कामदगिरि के अलावा राम घाट, अनसुइया आश्रम, लक्ष्मण मंदिर, जानकी कुंड, हनुमान धारा, स्फटिक शिला, गुप्ता गोदावरी, जानकीकुंड, प्रमोदवन, राम शैया, सीता रसोई, भरत मिलाप आदि धार्मिक स्थलों के साथ धारकुंडी, वाल्मीकि राघव प्रपात, शबरी प्रपात, आरोग्यधाम, ग्रामोदय विश्वविद्यालय आदि अनेक मनोहारी पर्यटन स्थल हैं। 

दीपावली पर चित्रकूट में श्रद्धालुओं की भारी संख्या कामदगिरि की परिक्रमा व दीपदान करती है। यह दृश्य अद्भुत होता है।


 

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