दुनिया भर में जहाँ पहाड़ हैं, वहाँ अनेक प्रकार की गुफाएँ भी मिलती हैं. कुछ गुफाएँ तो इतनी बड़ी, लम्बी और रहस्यमयी हैं, कि उनके बारे में पूरी जानकारी अभी तक प्राप्त नहीं है. भारत में भी अनगिनत गुफाएँ हैं, जिनमें से अनेक को बंद कर दिया गया है या वे प्राकृतिक रूप से बंद हो गयी हैं. प्राकृतिक गुफाओं के अलावा, वनों में आत्मसिद्धि के लिए तपस्या करने वाले लोग अपनी सुविधानुसार स्वयं भी गुफाएँ निर्मित कर लेते रहे हैं. इन गुफाओं को देखकर लगता है, कि इन्हें किस कौशल के साथ बनाया गया होगा!
मध्यप्रदेश में ही “भीम बैठिका”, “उदयगिरी”, “बाघ” सहित अनेक गुफाएँ हैं. अनेक गुफाओं में मंदिर हैं. इस लेख में हम कुछ प्राचीन गुफा मंदिरों के विषय में बताएँगे. मिर्जापुर रीवाँ जाने वाले ग्रेट डेकन रोड पर “लाहोरिया दह” गाँव के पास अनेक गुफाएँ हैं, जो प्रागैतिहासिक काल की हैं. “सहबैया पथरी”, “मोराहना पथरी”, “बाघा पथरी” और “लहकर पथरी” नाम की पहाड़ियों में लगभग सौ गुफाएँ स्थित हैं. इनमें लाल, पीले और सफेद रंगों में चार-पांच हज़ार वर्ष पुराने चित्र आज भी विद्यमान हैं. कुछ लोगों का मानना है, कि ये चित्र जादू के लिए बनाए गये होंगे, क्योंकि एक जगह पर द्वार के भीतर एक चोंचदार आदमी बैठा दिखाया गया है. उसके सामने दो व्यक्ति उसकी पूजा करते दिखाए गए हैं.
काश्मीर की सुप्रसिद्ध “अमरनाथ गुफा” तो विश्व प्रसिद्ध है. इसमें उजले पक्ष में वर्फ का विशाल शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है और कृष्ण पक्ष में विगलित हो जाता है. अमरनाथ की यात्रा वर्ष में एक बार ही होती है और इसे बहुत सौभाग्य की बात माना जाता है. इसके विषय में पुराणों में कथाएँ मिलती हैं. इसकी यात्रा बहुत कठिन लेकिन आनंददायी होती है.
भारत में सबसे प्राचीन गुफाएँ गया से पटना लाइन पर बेला स्टेशन से आठ मील दूर पूर्व में स्थित हैं. इन्हें “बराबर पहाड़ी की गुफाएँ” कहते हैं. यहाँ पर सिद्धेश्वरनाथ का प्राचीन मंदिर और पातालगंगा नाम का झरना है. ये गुफाएँ बड़े-बड़े कमरों के रूप में बनी हैं. कहीं-कहीं दो कमरों के रूप में या एक बड़े हॉल के रूप में निर्मित हैं. गुफाओं की संख्या साथ-आठ है. इनके भीतर “वज्रलेप” नामक सुंदर पॉलिश हुई है. यही पॉलिश अशोक स्तंभों पर मिलती है. इनमें कहीं-कहीं तो व्यक्ति अपना चेहरा देख सकता है. इनमें बहुत से लेख भी उपलब्ध हैं. गुफाओं के नाम सुदामा, लोमश ऋषि, रामाश्रम, विश्वझोपड़ी, गोपी, वेदाथिक आदि हैं. ये गुफाएँ ईसा से बहुत पहले बनी थीं.
काठियावाड़ में “खपराखोड़िया” नाम की गुफाएँ भी बहुत प्राचीन हैं. इनका उपयोग कभी मठ के रूप में होता रहा होगा. ऊपर कोट में एक दो खंड की गुफा है, जिसमें नीचे का द्वार ग्यारह फुट ऊंचा है. ऊपर के खंड में एक तालाब है, जिसके चारों ओर गली आदि बनी हैं. कार्ली का प्रसिद्ध गुफा-मंदिर मुंबई-पुणे लाइन पर मलवाली स्टेशन से करीब चार मील दूर स्थित है. यह गुफा चैत्य रूप में बनी है. इसके बगल में अनेक छोटे-छोटे विहार हैं. इसके भीतर एक धातु-गर्भ अर्थात स्तूप बना है. इसके चारों ओर सुंदर स्तंभ और परिक्रमा पथ है. बाहर की ओर उन राजाओं और रानियों की मूर्तियाँ बनीं हैं, जिनके समय में इनका निर्माण हुआ था. इस गुफा मनानेक लेख मिलते हैं, जो ईसा से दो सौ वर्ष पुराने हैं.
नासिक की “पांडुलेण” गुफाएँ भी बहुत प्रसिद्ध हैं. नासिक से लगभग पांच मील आगे सडक के बायीं तरफ त्रिरश्मि पर्वत पर 23 गुफाएँ बनी हैं. इनमें कुछ तो चैत्य या पूजाघर हैं. कुछ विहार हैं, जिनमें बौद्ध भिक्खू रहते थे. इन गुफाओं का निर्माण आंध्रवंशी राजाओं द्वारा करवाया गया था. इनमें भी विस्तृत लेख मिलते हैं. मलवाली स्टेशन के पास “भाजा की गुफाएँ” स्थित हैं, जो ईसा से करीब तीन सौ वर्ष पहले बनी थीं. कुल अठारह गुफाएँ हैं, जिनमें बीच का चैत्य बहुत प्राचीन और कई अर्थों में अनूठा है. ये बहुत लम्बे समय तक मिट्टी में दबी रही थीं. यहाँ मिली मूर्तियों जैसी मूर्तियाँ अन्यत्र कहीं नहीं मिलतीं.
उड़ीसा में भुवनेश्वर से लगभग पाँच मील पश्चिम में उदयगिरी, खंडगिरी और नीलगिरी की गुफाएँ हैं, जो जैन गुफाएँ हैं. इनकी संख्या 66 है. इनका निर्माण इस प्रकार किया गया था, कि रहने वालों को अधिक से अधिक कष्ट हो. मध्यप्रदेश में विदिशा के पास गुप्तकाल 20 गुफाएँ हैं. इन्हें उदयगिरी की गुफाएँ कहा जाता है. ये सभी ब्राह्मणधर्मी हैं. इस पहाड़ी का पत्थर बलुआ है. इसकी छोटी-छोटी कोठरियों में हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं. इनमें तीन लेख संस्कृत में हैं. पांच नंबर की गुफा में वराह की एक बहुत भव्य मूर्ति है, जो पूरे विश्व में पसिद्ध है. इसकी सूंड के पास पृथ्वी की मूर्ति और बाएं पैर के नीचे शेष की मूर्ति है. अनेक देवता स्तुति करते दिखाई देते हैं. एक गुफा में बड़ी मूर्ति शेषशायी विष्णु की है, जो शिल्प की दृष्टि से अनूठी है.
महाराष्ट्र में अजन्ता की गुफाएँ तो अन्तराष्ट्रीय स्तर पर बहुत प्रसिद्ध हैं. गुफाओं कीसंख्या 29 है. इनके पास पारिजात के वन हैं. गुफाओं का निर्माणकाल ईसा से पूर्व दूसरी और ईसा के बाद छठी शाताब्दी माना जाता है. यहाँ पर पहाड़ी अर्धचंद्राकार है. उसीके बीच में धरतीतल तथा शिखर में मध्य गुफाएँ बनी हैं. सामने बाघोरा नदी बहती है. इन गुफाओं में बौद्ध भिक्खू रहते थे. यहाँ के चित्र बहुत अद्भुत हैं, जिनकी सुन्दरता आज भी आश्चर्य में डाल देती है. महाराष्ट्र में ही एलोरा की गुफाएँ भी विश्वप्रसिद्ध हैं. इसमें 34 गुफाएँ हैं. एक गुफा में बना कैलाश मंदिर भारतके सभी गुफा-मंदिरों में सर्वश्रेष्ठ है.
मध्यप्रदेश के धार जिले में बाघ की प्रसिद्ध गुफाएँ हैं, जिनकी संख्या नौ है. इनमें वाघेश्वरी देवी का प्राचीन मंदिर है. यहाँ की चित्रकारी अजंता की तरह अनूठी हैं. इनका सम्बन्ध बौद्ध धर्म के हीनयान सम्प्रदाय से है. तिरुअनंतपुरम के पास महाबलीपुर नामक स्थान पर बहुत अनूठे गुफा-मंदिर हैं. इनमें पंच पांडवों के मंदिर और त्रिमूर्ति, वराह और दुर्गा देवी के मंदिर हैं. एक चट्टान पर गंगावतरण का प्रसंग उत्कीर्ण है.
मुम्बई शहर के पास ही धारापुरी (एलिफेंटा) गुफाओं की श्रेणियां हैं, जिनमें योगेश्वरी, कान्हेरी, मरोल और मंडपेश्वर गुफाएँ शामिल हैं. ये गुफाएँ समुद्र में एलिफेंटा टापू पर स्थित हैं. इस टापू पर पहले एक पत्थर का हाथी बना था, जिसके कारण पुर्तगालियों ने इसका नाम एलिफेंटा रख दिया था. इसका प्राचीन नाम गिरिपुर है. इन पांच गुफाओं में सुंदर चित्रकारी आज भी विद्यमान है. हर गुफा में शिवलिंग स्थापित है. पुर्तगालियों ने इन गुफाओं को काफी नुकसान पहुंचाया.
जोगेशारीके पास योगेश्वरी गुफाएँ भी काफी सुंदर हैं. पास ही मरोल की गुफाएँ हैं. इनकी संख्या 20 है. मुंबई के पास ही माउंट पोयसर के पास मंडपेश्वर गुफाएँ हैं. रोमन कैथलिक लोगों ने यहाँ से योगियों को हटाकर गिरजाघर स्थापित किया. बोरीवली स्तातिओंके पास सुप्रसिद्ध कान्हेरी बौद्ध गुफाएँ हैं. इनकी संख्या 109 है.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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