Published By:धर्म पुराण डेस्क

क्या आप अक्सर अशांत रहते हैं अशांति का कारण क्या है

अशांत मस्तिष्क के कारण -

तेजी से बदलती दुनिया में इंसान को टेक्नोलॉजी के साथ बहुत सारी चीजें मिल रही है तो उसके अंदर की शांति खो रही है। 

दिन भर मोबाइल के साथ व्यस्त रहने के कारण व्यक्ति को हानिकारक रेडिएशन से दो-चार होना पड़ता है। यह हानिकारक रेडिएशन मानसिक संतुलन को खराब कर देता है आगे बढ़ने की होड़ में व्यक्ति खुद भी आपत्तियों और स्ट्रेस टेंशन को मोल ले लेता है। 

हमारी दुनिया सिपरेशन की प्रोग्रामिंग के आधार पर चलती है। माया के कारण व्यक्ति अपने आप को श्रेष्ठ और उत्कृष्ट बनाने में लगा रहता है डॉक्टर जेमिसन नरूदा के अनुसार व्यक्ति को इस तरह से प्रोग्राम किया गया है कि वह एकता सद्भाव और शांति के रास्ते पर चलने की वजह सेपरेशन पर चलना पसंद करता है। यह मानव की नियति है लेकिन अत्यधिक महत्वाकांक्षा अशांति का कारण बनती है।

आप अपनी दिनभर की गतिविधियों में बाह्य जगत में जिस ढंग से जीते हैं और तरह-तरह की तिकड़मों में व्यस्त रहकर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करते हैं, उससे आपका मस्तिष्क अशांत हो जाता है. 

आध्यात्मिकता के पथ को अपनाने वाले हमारे सिद्ध गुरुओं ने इसी वजह से इस बात पर जोर दिया है। कि कोई व्यक्ति यदि वास्तव में ध्यान करना चाहता है और जीवन में प्रसन्नचित रहना चाहता है, तो उसे अपनी आंखें हमेशा अधमुंदी रखनी चाहिए व उसे अपनी दृष्टि अपनी नाक के सिरे पर ही केंद्रित करके रखना चाहिए- यही वह क्रिया है, जिसे हर संत गुरु-यहां तक कि परमात्मा ने भी अपनाया है. 

जब हमारी आंखें पूरी खुली होती हैं, तो संपूर्ण वातावरण से हर समय हजारों तरह की तरंगे हमारी आंखों से टकराती हैं और हमारी आंखों से भी हजारों तरह की तरंगे निकलकर वातावरण में समा जाती हैं. इस क्रिया से एक व्यर्थ की गतिशीलता हमारे अंदर सक्रिय रहती है, जो हमारे मस्तिष्क में अनावश्यक उथल-पुथल का कारण बनती है.

दिनभर की इस तूफानी उथल-पुथल के बाद हमारा मस्तिष्क शांत व व्यवस्थित रूप में आना चाहता है, ताकि यह पुनः अपनी नैसर्गिक स्थिति में आ सके. यही वजह है कि हमारे लिए नींद इतनी महत्वपूर्ण है. हमारी नींद भी प्राकृतिक होनी चाहिए. नींद की गोलियां खाकर ली हुई नींद का कोई मतलब नहीं है. 

अगर आप नींद की गोलियां लेकर या शराब पीकर सोते हैं तो यह नींद और भी ज्यादा खतरनाक हो सकती है, क्योंकि इस स्थिति में हमारे शरीर के अवयव तो अचेतन की स्थिति में चले जाएंगे, लेकिन मस्तिष्क की उथल-पुथल जारी रहेगी. यह उथल- पुथल कालांतर में और ज्यादा शक्तिशाली होकर विस्फोटक स्थिति का कारण बन सकती है. 

इन्हीं स्थितियों में कैंसर जैसी या और कोई घातक बीमारी शरीर में घर लेती हैं. अगर आपका मस्तिष्क शांत नहीं है और आपके पास मस्तिष्क को शांत रखने के लिए समय नहीं है तो आपको इन परिस्थितियों का सामना करना ही पड़ेगा.

शांति के लिए हमें अपनी प्रोग्रामिंग को बदलने पर कार्य करना होगा इंसान अपनी प्रोग्रामिंग यानी माया के अधीन है सत्य और रजोगुण में घूमता रहता है कभी तमोगुण की प्रधानता हो जाती है कभी रजोगुण की। इन तीनों गुणों से पार होने के लिए व्यक्ति को सोबरन इंटीग्रिटी पर काम करना चाहिए। प्रकृति के साथ तालमेल विश्व के साथ एकात्मता और अपनी आत्मा को जानने के लिए वैश्विक हारमोनी का अभ्यास करने से व्यक्ति शांति के रास्ते पर चल सकता है।

भागीरथ H पुरोहित


 

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