हमारे शात्रों में विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से जीवन के बहुत महत्वपूर्ण संदेश दिये गए हैं. हम कभी न कभी जाने-अनजाने किसी का उपहास कर देते हैं. यह हमारी आदत भले ही नहीं हो, लेकिन अनेक ऐसे अवसर आते हैं, जब जाने-अनजाने हम से यह हो ही जाता है. कुछ लोगों की तो यह आदत ही हो जाती है. वे किसीका उपहास करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते. लेकिन यह बात याद रखी जानी चाहिए, कि हम जिसका उपहास उड़ाते हैं, आगे चलकर उस जैसे ही हो जाते हैं. इस विषय में कबंध राक्षस की एक बहुत सुंदर कथा मिलती है.
भगवान् श्रीराम और लक्ष्मण जब सीताजी की खोज में भटक रहे थे तब वन में उनका जिन घोर राक्षसों से युद्ध हुआ उनमें कबंध बहुत प्रमुख है. उसका मुँह उसके कंधे के भीतर धंसा था और उसकी सारी ताकत उसकी भुजाओं में थी. वह दोनों भाइयों का भक्षण करना चाहता था. श्रीराम ने उसकी भुजाओं को काट दिया था. भुजाएं कटने के बाद उसे श्रीराम की दिव्यता का अहसास हुआ. लक्ष्मण ने उससे पूछा कि तुम कौन हो? कबंध के समान रूप धारण करके क्यों वन में पड़े हो? छाती के नीचे चमकता हुआ मुँह और टूटी हुयी जंघा लेकर तुम किस कारण इधर-उधर लुड़कते फिरते हो ?
कबंध ने बताया कि यह सब उसकी उद्दंडता का फल है. उसने कहा कि पूर्वकाल में मेरा रूप महान बल पराक्रम से संपन्न और तीनों लोकों में विख्यात था. मेरा शरीर सूर्य, चन्द्रमा और इंद्र के सामान तेजस्वी था. लेकिन में लोगों को भयभीत करने के लिए भयंकर राक्षस रूप धारण कर इधर-उधर घूमता था. वन में रहने वाले ऋषियों को डराया करता था. एक दिन मैंने जंगली फल-मूल एकत्रित कर रहे स्थूलशिरा नाम के महर्षि को डरा दिया. मुझे ऐसे विकट रूप में देखकर उन्होंने मुझे घोर शाप दिया कि हे दुरात्मा ! आज से तू सदा के लिए इसी रूप में रह कर निन्दित होगा. यह सुनकर मैंने उन महर्षि से प्रार्थना की कि इस शाप का मोचन कैसे होगा. उन्होंने कहा कि जब श्रीराम तुम्हारी भुजाओं को काटकर तुम्हारे शरीर को निर्जन वन मे जलाएंगे, तब तुम फिर से अपने सुंदर रूप में वापस आ जाओगे.
कबंध ने बताया कि मेरा यह रूप इंद्र के कोप से युद्धभूमि में प्राप्त हुआ. पूर्वकाल में राक्षस होने के बाद मैंने घोर तपस्या कर ब्रह्माजी से लम्बी आयु का वर प्राप्त किया. मुझे यह अहंकार हो गया कि इंद्र मेरा क्या कर लेगा. मैंने इंद्र पर आक्रमण कर दिया. इंद्र ने मुझ पर अपने वज्र से प्रहार किया, जिससे मेरी जांघें और मस्तक मेरे शरीर में घुस गये. मैंने इंद्र से कहा कि अब मैं भोजन कैसे ग्रहण करूंगा. इंद्र में मेरी भुजाएं इक-एक योजन लम्बी कर दीं और मेरे पेट में तीखे दाढ़ों वाला एक मुख बना दिया. इंद्र ने बताया कि श्रीराम जब तुम्हारी भुजाएं काटेंगे तब तुम स्वर्ग में जाओगे.
श्रीराम ने कबंध से कहा कि तुम मेरी खोई हुयी पत्नी का पता लगाने में मदद करो. उसने कहा कि इस समय मुझे दिव्य ज्ञान नहीं है. जब मेरे शरीर का दाह हो जाएगा और मुझे अपना पूर्व स्वरूप प्राप्त हो जाएगा, तभी आपको कुछ उचित परामर्श दे पाऊंगा. श्रीराम और लक्ष्मण ने उसके शरीर का अग्नि संस्कार कर दिया. वह अपने सुंदर तेजस्वी स्वरूप में आ गया. उसने कहा कि आप सुग्रीव से मैत्री कीजिए. वह अपने भाई से दुखी है. एक दुखी को दूसरे दुखी से मदद लेना चाहिए. सुग्रीव बहुत क्षमतावान है और वह हर हाल में सती-साध्वी सीताजी का पता लगा ही लेगा. उसीकी सलाह पर श्रीराम और लक्षमण सुग्रीव से मित्रता करने के मकसद से पम्पापुर गये.
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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