Published By:धर्म पुराण डेस्क

अष्टांग योग: यम और नियम का महत्व

महर्षि पतंजलि ने योग को अष्टांग यानी आठ अंगों में विभाजित किया है, जिसमें यम और नियम पहले दो अंग हैं। यम और नियम का पालन करने से व्यक्ति दुराचार, दुर्गुण, और विकारों से मुक्त होकर आत्मा को प्राप्त होता है।

1. यम: आधार नैतिकता का

अहिंसा (Non-Violence): योग का पहला यम है अहिंसा, जो शारीरिक और मानसिक हिंसा से बचाव करता है। यह दुराचारों को दूर करने में मदद करता है और समृद्धि की दिशा में मार्गदर्शन करता है।

सत्य (Truthfulness): यम का दूसरा अंग है सत्य, जो सत्य का पालन करने की अपेक्षा है। इससे मानव आत्मा को सत्य की अनुभूति होती है और उसका जीवन सत्य, ईमानदारी और निष्कलंक बनता है।

अस्तेय (Non-Stealing): योगी को अनधिकृत अपहरण से बचने के लिए अस्तेय का अनुसरण करना चाहिए। यह व्यक्ति को संपत्ति और धन को सम्मान देने में मदद करता है।

ब्रह्मचर्य (Celibacy): ब्रह्मचर्य का मतलब है ब्रह्मा की ओर प्रवृत्त होना, यानी ब्रह्मा जी की उपासना में लग जाना। इससे व्यक्ति अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करता है और आत्मा की ऊर्जा को ब्रह्मा की ओर प्रवृत्त करता है।

अपरिग्रह (Non-Possessiveness): योगी को स्वार्थी और लोभी नहीं बनने के लिए अपरिग्रह का पालन करना चाहिए। इससे उसे आत्मसमर्पण और संयम की भावना मिलती है।

2. नियम: आधार आत्म-शोध का 

शौच (Purity): योगी को शरीर, मन, और आत्मा की पवित्रता बनाए रखने के लिए शौच का पालन करना चाहिए। यह उसे आत्म-शोध और स्वयं को पवित्र बनाए रखने में मदद करता है।

संतोष (Contentment): नियम में संतोष विशेष महत्वपूर्ण है, जो योगी को आत्मा की सन्तुलन स्थिति में रहने के लिए उत्साहित करता है।

तपस् (Austerity): तपस्या योगी को शरीर, मन, और आत्मा की शुद्धि के लिए समर्पित करती है। इससे उसे आत्मा की उच्चतम श्रेणी की प्राप्ति होती है।

स्वाध्याय (Self-Study): नियम में स्वाध्याय से तात्पर्य स्वयं की अध्ययन और समीक्षा से है, जिससे योगी अपनी गलतियों को सुधार सकता है और आत्मसमर्पण में बढ़ सकता है।

ईश्वर-प्रणिधान (Surrender to God): आखिरी नियम में ईश्वर-प्रणिधान है, जो योगी को ईश्वर के सामर्थ्य, न्याय, और दया में विश्वास दिलाता है। यह उसे आत्म-समर्पण में ले जाता है और आत्मा के साथ दिव्य एकता की प्राप्ति होती है।

यम और नियम, योग के साधना मार्ग का प्रमुख आधार हैं, जो व्यक्ति को आत्म-समर्पण और उच्चतम ज्ञान की प्राप्ति की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। इनका सही अनुसरण करने से योगी आत्मा के साथ समर्थ हो जाता है और उच्चतम ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति की ओर बढ़ता है।

धर्म जगत

SEE MORE...........