 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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ज्योतिष शास्त्र में विवाह और दांपत्य जीवन का अध्ययन विभिन्न भावों, ग्रहों और योगों के माध्यम से किया जाता है। तलाक या विवाह विघटन के कुछ ज्योतिषीय कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं:
भाव:
सप्तम भाव: यह भाव विवाह, जीवनसाथी और दांपत्य जीवन का प्रतिनिधित्व करता है।
अष्टम भाव: यह भाव रहस्य, परिवर्तन और अलगाव का प्रतिनिधित्व करता है।
द्वादश भाव: यह भाव खर्च, हानि और विदेशी भूमि का प्रतिनिधित्व करता है।
ग्रह:
मंगल: यह ग्रह क्रोध, आक्रामकता और संघर्ष का प्रतिनिधित्व करता है।
शनि: यह ग्रह विलंब, बाधाएं और अलगाव का प्रतिनिधित्व करता है।
राहु: यह ग्रह भ्रम, अस्थिरता और मोह का प्रतिनिधित्व करता है।
योग:
मंगल-शनि योग: यह योग विवाह में तनाव, झगड़े और संघर्ष का कारण बन सकता है।
शनि-राहु योग: यह योग अलगाव, विवाह विघटन और तलाक का कारण बन सकता है।
पितृ दोष: यदि जातक की कुंडली में पितृ दोष है, तो यह विवाह में बाधाएं और तलाक का कारण बन सकता है।
कुछ अन्य ज्योतिषीय संकेत जो तलाक की संभावना को दर्शाते हैं:
सप्तम भाव में पापी ग्रहों की उपस्थिति।
सप्तमेश का नीच राशि में होना या पापी ग्रहों से पीड़ित होना।
पंचम भाव में राहु या केतु की उपस्थिति।
शुक्र और चंद्रमा का पापी ग्रहों से पीड़ित होना।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि तलाक केवल ज्योतिषीय कारणों से नहीं होता है। सामाजिक, आर्थिक और व्यक्तिगत कारण भी तलाक में योगदान कर सकते हैं। ज्योतिष केवल संभावनाओं का संकेत देता है, निश्चितता नहीं।
यदि आप अपनी कुंडली में तलाक के योगों के बारे में जानना चाहते हैं, तो आप किसी अनुभवी ज्योतिषी से परामर्श कर सकते हैं।
यह भी ध्यान रखें कि ज्योतिष केवल मार्गदर्शन के लिए है, इसका उपयोग किसी भी निर्णय को लेने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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